Bihar News: बाढ़ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिससे प्रत्येक वर्ष जान माल की भारी तबाही होती है। भारत का 12%भूभाग बाढ से प्रभावित है। वहीं बिहार का 73% भूभाग बाढ से प्रभावित है। ऐसे में बाढ़ रोधी, चक्रवात रोधी एवं भूकंप रोधी भवन निर्माण तकनीक को बढ़ावा देने की जरूरत है जो पर्यावरण के अनुकूल हो। ये बातें आपदा रोधी समाज निर्माण को कृतसंकल्पित पथ निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता ,बेसा के पूर्व महासचिव एवं इण्डेफ (पूर्व) के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सुनील कुमार चौधरी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चंडीगढ में देश के विभिन्न इंजीनियरिंग कॉलेज के प्राध्यापकों के लिए आयोजित शॉर्ट टर्म कोर्स में बाढरोधी, चक्रवात रोधी, भूकंप रोधी एवं पर्यावरण के अनुकूल भवन निर्माण तकनीक के बारे में व्याख्यान देते हुए कही।
उन्होंने पर्यावरण के अनुकूल बाढ रोधी एवं चक्रवात रोधी भवन निर्माण के विभिन्न तकनीक पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि भवन उच्च बाढ स्तर से कम से कम डेढ फीट की ऊंचाई पर होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि मकान बनवाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बीम कॉलम एवं नींव सभी आपस में एक दूसरे से मजबूती से बंधे रहे | आपदा से बचाने के लिए सरल आयताकार रूपरेखा वाले घर बनाएं | द्वारों एवं खिड़कियों का आकार सीमित रखें | क्ले ब्रीक की जगह फाल जी ईट का प्रयोग करें। लागत कम करने के लिए बाँस का पीलर एवं दीवार,फ्लोरिन्ग में सेल्फ क्यूरिन्ग कंक्रीट एवं प्लास्टर में मिट्टी,नारियल के रेशे एवं बाँस के फाइबर का प्रयोग करें।
चारों तरफ ढाल वाले छत दीवारों को बरसात से बचाते हैं | अगर दो तरफ ढाल वाले भवन बनाना हो तो तिकोना दीवारों को छत के साथ बांधे | एक तरफ ढाल वाले छत नहीं बनाए | कीड़ों से बचाव हेतु बाँस एवं बत्ती का रासायनिक उपचार करें। 4 घंटे के अंदर कटे बाँसो के जड़ वाले सिरे पर पंप से दबाव डालकर रसायनिक परिक्षण करें | पीलर के लिए हरौत बांस का उपयोग करें जिसे जमीन में मत गारे, सड़ जाएगा | बांस के पीलर को कंक्रीट के खूंटा के ऊपर रखकर खूंटा के साथ जकड़ दे। डॉ. चौधरी ने "रूम फौर रिभर" एवं फ्लड रेजिलिएन्ट हाउसिंग लिटरेसी" की आवश्यकता पर बल दिया।
बाढ रोधी भवन निर्माण में फ्लोटिंग फाउंडेशन तकनीक की उपयोगिता पर उन्होंने विस्तार से प्रकाश डाला। साथ ही बाढ रोधी भवन निर्माण में प्रीफैब्रीकेटेड एवं प्रीस्ट्रेस कंक्रीट पैनल के दीवार का उपयोग ,ड्राइ एवं वेट फ्लड प्रूफिन्ग तकनीक की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। ज्ञातव्य हो कि डॉ. चौधरी "डिजास्टर रेजिलिएन्स फोरम " के माध्यम से विभिन्न तरह के आपदा एवं जलवायु परिवर्तन के खतरों एवं उसके प्रबंधन की जानकारी समाज के अन्तिम पंक्ति के लोगों तक पहुंचाने का काम करते रहे है। विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय कान्फ्रेस एवं प्रतिष्ठित जर्नल में डॉ. चौधरी के 235 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं तथा उन्हें 35 अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं। अंत में डॉ. चौधरी ने अपनी बाते इन पंक्तियो के साथ समाप्त की-
हो गई है पीड़ पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
सिर्फ व्याख्यान देना ही मेरा मकसद नहीं
सारी कोशिश है कि ए सूरत बदलनी चाहिए।