Dhanteras 2024: धनतेरस का पर्व देशभर में बड़े उल्लास के साथ मनाया गया, और इस अवसर पर पीतल के बर्तन खरीदने की परंपरा का खास महत्व होता है। बिहार की राजधानी पटना के करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित परेव गांव इस परंपरा से गहराई से जुड़ा हुआ है। इस गांव को ‘पीतल नगरी’ के नाम से जाना जाता है, जहां हर घर में पीतल के बर्तन बनाए जाते हैं। यहां के लोग, विशेषकर महिलाएं, इन बर्तनों को चमकाने में अहम भूमिका निभाती हैं।
पीतल नगरी का इतिहास और वर्तमान स्थिति
परेव गांव में पीतल उद्योग की परंपरा काफी पुरानी है। फैक्ट्री मालिक रोशन बताते हैं कि उनके दादा और परदादा के समय से ही यहां पीतल के बर्तन बनाए जा रहे हैं। उनके अनुसार, स्क्रैप पीतल को भट्टी में गर्म करके गलाया जाता है, और फिर उससे विभिन्न प्रकार के बर्तन बनाए जाते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में पीतल के बर्तनों की मांग में कमी आई है, जिससे इस उद्योग से जुड़ी कमाई और रोजगार पर असर पड़ा है। लगभग 500 फैक्ट्रियों में काम करने वाले कारीगरों को डिमांड में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है।
महिलाओं की भागीदारी और गांव की जीविका
स्थानीय निवासी बबीता देवी ने बताया कि वे पिछले 10 सालों से पीतल के बर्तनों को बनाने और चमकाने का काम कर रही हैं। परेव गांव में लगभग 300 कुटीर उद्योग हैं, जिनमें 200 से अधिक कुशल कारीगर काम करते हैं। यहां 80% काम हाथ से होता है, जबकि बाकी 20% बिजली पर निर्भर है। महिलाएं भी इस काम में शामिल होती हैं और इसे अपनी आजीविका का मुख्य साधन मानती हैं।
पीतल की घटती मांग के बावजूद धनतेरस की रौनक
दिवाली और धनतेरस के अवसर पर इस गांव में उत्साह बना रहता है। स्थानीय दुकानदार शुभम कुमार कहते हैं कि इस त्योहार के दौरान लोगों का पीतल के बर्तनों के प्रति लगाव बना रहता है, चाहे बाजार में स्टेनलेस स्टील के बर्तन आ गए हों। धनतेरस पर पीतल के बर्तनों की मांग में कोई कमी नहीं आती, चाहे इसकी कीमत कुछ भी हो।