Acharya Kishor Kunal: आचार्य किशोर कुणाल के मन में 1989 के कुंभ के बाद अध्यात्म की एक नई ज्योति प्रज्वलित हुई, जो जीवनभर जलती रही। इसके पश्चात उन्होंने अध्यात्म के मार्ग को नहीं छोड़ा। कुंभ के बाद उन्हें एक विशेष अनुभव हुआ था। यह घटना शिवरात्रि के दूसरे दिन की है। संगम के निकट एक नया शिव मंदिर स्थापित हुआ था, जहाँ कांची पीठ के शंकराचार्य ठहरे हुए थे। आचार्य किशोर कुणाल उनसे मिलने के लिए जा रहे थे। वह जीप में थे, लेकिन मंदिर से दो-तीन किलोमीटर पहले ही जीप छोड़कर पैदल चलने लगे। उन्हें दाएं और बाएं देखने की आदत थी। इसी दौरान, उन्होंने एक तेजस्वी व्यक्ति को अपनी ओर आते देखा। उत्तरीय धारण किए हुए वह व्यक्ति उनके पास आए और आचार्य किशोर कुणाल ने उनसे पूछा, "आप कौन हैं?" उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि वह प्रतिदिन आपके मंदिर में कथा सुनने आते हैं। उन्होंने अपनी पहचान को विस्तार से बताते हुए कहा कि वह अयोध्यापति, द्वारकाधीश जगन्नाथ के दूत हैं और कलयुग में धर्म का प्रचार करते हैं। यह सुनकर आचार्य किशोर कुणाल को लगा कि कोई कोई विक्षिप्त है ।
आचार्य कुणाल ने विलंब के बारे में बताते हुए आगे बढ़ने का निर्णय लिया। कुछ ही क्षणों बाद, जब उन्होंने यह विचार किया कि 'मैं प्रतिदिन आपकी कथा सुनने आता हूं', तब उन्हें भगवान हनुमान के दर्शन का अनुभव हुआ। जब उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, तो वह व्यक्ति कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आया। आचार्य कुणाल ने प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ के संदर्भ में एक कार्यक्रम में यह संस्मरण साझा किया। उन्होंने बताया कि वह एक वर्ष तक उस व्यक्ति की खोज में मंदिर में रहे, लेकिन वह उन्हें कहीं नहीं मिले। यह उल्लेखनीय है कि किशोर कुणाल केवल बजरंगबली के ही नहीं, बल्कि भगवान शिव के भी परम भक्त थे। उन्होंने मई 2001 में भारतीय पुलिस सेवा (1972 बैच) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली और इसके बाद पूरी तरह से आध्यात्मिक और सामाजिक सेवा में संलग्न हो गए।
आचार्य किशोर कुणाल एक प्रतिष्ठित धार्मिक और सामाजिक नेता के रूप में भारतीय समाज में अपने कार्यों के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए जाने जाते रहे। उन्होंने महावीर मंदिर न्यास के सचिव के रूप में कार्य किया, जहां उन्होंने धार्मिक गतिविधियों और समाज सेवा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त, वे राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य भी रहे, जहाँ उन्होंने राम मंदिर के निर्माण के लिए अपने योगदान और समर्थन से धार्मिक समुदाय को प्रेरित किया। आचार्य किशोर कुणाल को नमन।