PATNA : ‘बिहार कोकिला’ के नाम से मशहूर शारदा सिन्हा का 5 नवंबर की रात 9 बजकर 20 मिनट पर निधन हो गया। छठ महापर्व के नहाय खाय की संध्या पर आई इस खबर ने पूरे राज्य को गमगीन कर दिया। चूँकि शारदा सिन्हा का नाम छठ पूजा के साथ इतना गहराई से जुड़ा था कि उनके बिना यह पर्व अधूरा-सा लगता है। ऐसे में उनका जाना भक्ति में डूबे बिहार को गम से भर दिया है। आज से ठीक डेढ़ महीने पहले शारदा सिन्हा के पति ब्रिजभूषण सिन्हा का निधन हो गया था।
हालाँकि पति के निधन के बाद लोक गायिका सदमे में चली गयी थी। कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपने सोशल मीडिया पेज पर भावुक करनेवाला पोस्ट लिखा। जिसमें उन्होंने लिखा था की ‘लाल सिंदूर बिन मंगियों न सोभे....लेकिन सिन्हा साहब की मधुर स्मृतियों के सहारे संगीत यात्रा को चलायमान रखने की कोशिश रहेगी।‘ सिन्हा साहब को मेरा प्रणाम समर्पित।‘
वहीँ पति की स्मृतियों को लेकर शारदा सिन्हा ने अपने जन्मदिन के मौके पर लिखा की जब सब घर में सो रहे होते थे, आज के दिन सिन्हा साहब , चुपके से उठ कर फूल वाले के पास जाते थे, दो गुलाब और कुछ चटपटा नाश्ता, हाथ में लिए, एक नटखट सी हंसी अपने आंखों में दबाए, घर आते थे। बिना आवाज किए, मेरे सिरहाने में रखी कुर्सी पर बैठ कर, इंतजार करते थे कि कब मैं उठूं, और वो मुझे वो दो गुलाब दे कर कहें, "जन्मदिन हो आज तुम्हे मुबारक, तुम्हे गुलसितां की कलियां मिले, बहारे न जाएं तुम्हारे चमन से, तुम्हे जिंदगी की खुशियां मिलें"। फिर मैं अर्धनिद्रा में, आंखे मलते हुए उठती, उन्हें हाथ जोड़ प्रणाम करती, और इससे पहले कि मैं अच्छी शब्दावली का चयन कर उन्हे धन्यवाद कहती, वे अधीर हो पूछ बैठते थे। " अरे भाई, आज तो कुछ खास होना चाहिए खाने में, फिर वो चटपटा नाश्ता मेरे ठीक सिरहाने रख कर कहते, हांजी ये सबके लिए है"। मैं उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखने के हिसाब से उन्हें मना करती, "मत खाइए ये सब , तबियत खराब हो जाएगी.... अरे छोड़ो जी...मस्ती में रहो कह कर चल देते।आगे शारदा सिन्हा ने लिखा की बिना सिन्हा साहब के ये दिन शूल सा गड़ता है मुझे।
बेटे अंशुमन की मानें तो उनकी मां पिता के निधन के बाद काफी निराश रहने लगी थीं। शायद उनके अंदर से जीने की ललक खत्म हो गई थी। फिर भी किसी भी महिला की अंतिम इच्छा होती है कि वह अपने पति का साथ जिंदगीभर न छोड़े। शारदा सिन्हा ने भी अपनी अंतिम इच्छा अपने बेटे अंशुमन सिन्हा के साथ शेयर की थी। उनके बेटे अंशुमन सिन्हा ने केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को कहा, ‘उनकी मां की अंतिम इच्छा यही थी कि जहां उनके पिता का अंतिम संस्कार हुआ, वहीं मेरा भी बेटा अंतिम संस्कार कर देना। मेरी इच्छा सुहागन बनकर ही इस दुनिया से जाने की थी, लेकिन वो हो नहीं सका। इसलिए मेरा भी अंतिम संस्कार वहीं करना जहां अपने पिता का किया था।’ यहीं वजह है की बेटे ने उनका अंतिम संस्कार पटना के गुलबी घाट पर करने का फैसला किया। जहाँ कल यानी 7 नवम्बर को शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार किया जायेगा।