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Sharda Sinha ki Yaadein:शादी के ठीक 5 दिन बाद शारदा सिन्हा पहुंची ससुराल के ठाकुरबाड़ी,फिर ऐसा शमा बांधा कि लोग हुए निहाल..फिर पति और ससुर ने कह दिया....

शारदा सिन्हा का जीवन उनके संघर्ष, उनके परिवार के समर्थन और उनके लोक संगीत के प्रति समर्पण का प्रतीक था। उनका निधन भारतीय लोक संगीत के लिए एक बड़ी क्षति है, लेकिन उनके गाए गीत उनकी विरासत को जीवित रखेंगे।

Sharda Sinha ki Yaadein:शादी के ठीक 5 दिन बाद शारदा सिन्हा पहुंची ससुराल के ठाकुरबाड़ी,फिर ऐसा शमा बांधा कि लोग हुए निहाल..फिर पति और ससुर ने कह दिया....
लोक गायिका शारदा सिन्हा की अनसुनी कहानियां- फोटो : social media

Sharda Sinha Yaadein: लोक संगीत की प्रसिद्ध गायिका और बिहार कोकिला शारदा सिन्हा का 72 वर्ष की आयु में दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। वो बीते 11 दिनों से वे अस्पताल में भर्ती थीं। हिंदी, मैथिली, और भोजपुरी में गाए गए उनके गीतों ने उन्हें एक अद्वितीय पहचान दिलाई। शारदा सिन्हा का जीवन संघर्ष, समर्पण और संगीत के प्रति अटूट प्रेम का प्रतीक था। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और पद्मभूषण जैसे प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त किए, लेकिन उनका सफर आसान नहीं रहा।

बचपन से ही संगीत में गहरी रुचि के चलते उनके पिता ने उन्हें भारतीय नृत्य कला केंद्र में प्रवेश दिलाया, जहां उन्होंने संगीत की औपचारिक शिक्षा ली। शादी के बाद हालांकि, उनके सामने एक नई चुनौती आ खड़ी हुई। शारदा सिन्हा की सास ने गाना गाने पर पाबंदी लगा दी थी और गाने की जिद करने पर उन्होंने कई दिनों तक खाना नहीं खाया। लेकिन उनके ससुर और पति बृजकिशोर सिन्हा ने उनका पूरा समर्थन किया। ससुर की प्रेरणा से उन्हें ठाकुरबाड़ी में भजन गाने का मौका मिला, जिससे उनके संगीत का सफर फिर से शुरू हो पाया। बता दें कि उनके ससुर से जुड़ा एक किस्सा है, जब उन्होंने सिर पर पल्लू लेकर तुलसीदास जी का भजन मोहे रघुवर की सुधि आई गाया। गाने के बाद समारोह स्थल पर मौजूद सभी लोगों ने उन्हें आशीर्वाद दिया। 

शारदा सिन्हा संघर्ष और प्रतिबद्धता का प्रतीक

भास्कर को दिए एक साक्षात्कार में शारदा सिन्हा ने बताया था कि उनकी सास सिर्फ भजन-कीर्तन तक सीमित गाने की अनुमति देना चाहती थीं। शादी के कुछ ही दिनों बाद उनके ससुर ने गांव के मुखिया के कहने पर ठाकुरबाड़ी में भजन गाने की इजाजत दी। हालांकि, उनकी सास इस बात से नाराज हो गईं और दो दिनों तक खाना नहीं खाया। लेकिन शारदा सिन्हा ने अपनी कला के प्रति समर्पण को बनाए रखा। उन्होंने तुलसीदास का भजन गाया और इस मौके पर गांव के बुजुर्गों से आशीर्वाद प्राप्त किया। धीरे-धीरे, गांव के लोगों द्वारा उनकी प्रशंसा के बाद उनकी सास का भी मन बदल गया।

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