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वर्ल्ड ट्रॉमा डे पर बोले मेडाज हॉस्पिटल के एमडी डॉ जेड आजाद, कहा दुर्घटना में घायल को समय पर पहुंचाएं अस्पताल, बच सकती हैं लाखों जिंदगियां

पटना के न्यूरो एवं ट्रॉमा स्पेशलिस्ट मेडाज हॉस्पिटल के चीफ कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट सह प्रबंध निदेशक डॉ जेड आजाद ने कहा कि अगर दुर्घटना के तुरंत बाद पीड़ित को प्राथमिक चिकित्सा या विशेषज्ञ डॉक्टर की सेवा मिले तो हर साल लाखों लोगों की जान बचायी जा सकत

बच सकती है लाखों जिंदगियां

PATNA :  पटना के न्यूरो एवं ट्रॉमा स्पेशलिस्ट मेडाज हॉस्पिटल के चीफ कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट सह प्रबंध निदेशक डॉ जेड आजाद ने कहा कि अगर दुर्घटना के तुरंत बाद पीड़ित को प्राथमिक चिकित्सा या विशेषज्ञ डॉक्टर की सेवा मिले तो हर साल लाखों लोगों की जान बचायी जा सकती है. वर्ल्ड ट्रॉमा डे पर अस्पताल परिसर में उन्होंने बताया कि किस तरह हर साल सिर्फ सड़क दुर्घटना में 1.68 लाख लोग मौत का शिकार जबकि 75 लाख लोग घायल हो जा रहे हैं. हम शपथ लें कि अपने आस-पास ऐसी किसी दुर्घटना दिखने पर तत्काल आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर (102, 108 या 112) पर कॉल करेंगे और पीड़ित को नजदीकी अस्पताल पहुंचाना नहीं भूलेंगे. शिविर में हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट न्यूरो एवं ट्रॉमा सर्जन डॉ सौरभ कुमार झा ने बताया कि ट्रॉमा दुनिया भर में मृत्यु और विकलांगता का सबसे बड़ा कारण है. इसमें भी अकेले 40 फीसदी मौत सड़क दुर्घटना में जबकि अन्य 60 फीसदी मौत स्वास्थ्य कारणों व अन्य आपदाओं से होती है. अगर पीड़ित व्यक्ति को तत्काल नजदीकी अस्पताल पहुंचाया जाये और लोगों को इन परिस्थितियों से निपटने की सही जानकारी और प्रशिक्षण दिया जाये तो काफी हद तक ट्रॉमा के कारण होने वाली विकलांगता और मौतों को रोका जा सकता है.

अस्पताल के सीनियर कंसल्टेंट क्रिटिकल केयर एंड ट्रॉमाटोलॉजी डाॅ अतिकुर रहमान ने बताया कि घायल व्यक्ति के लिए हर एक मिनट बहुत महत्वपूर्ण होता है, इसलिए हादसे के गोल्डर आवर यानि एक घंटे के भीतर पीड़ित को चिकित्सा मुहैया कराने की पूरी कोशिश की जानी चाहिए. दुर्घटना की जानकारी देने के लिए पुलिस को फोन करना बिल्कुल भी न भूलें. उन्होंने बताया कि ट्रॉमा की स्थिति में मरीज को स्थायी विकलांगता से बचाने के लिए प्री-हॉस्पिटल केयर के साथ हॉस्पिटल में सही उपचार और पुनर्वास जरूरी है. मेडाज हॉस्पिटल ट्रॉमा के लिए विश्वस्तरीय संस्थान है, जहां पर अत्याधुनिक सुसज्जित उपकरणों के साथ ही बेहतर डॉक्टरों की सेवाएं उपलब्ध है.

सड़क दुर्घटना में हर साल 1.68 लाख लोगों की मौत व 75 लाख लोग घायल हो रहे हैं. सड़क दुर्घटना से होने वाली मौत में 78 फीसदी 20 से 44 आयुवर्ग के लोग होते हैं. सड़क दुर्घटना के बाद पीड़ित को अस्पताल लेकर आने वालों में 63 फीसदी रिश्तेदार ही होते हैं, जबकि मदद करने से अनजान लोग कतरा रहे हैं. ऐसे 50 फीसदी से अधिक मामलों में पुलिस गाड़ी या ऑटो रिक्शा से ही पीड़ित अस्पताल लाये जा रहे हैं. समय पर एंबुलेंस भी नहीं मिल पा रहा है. हालाँकि सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होने वालों में 60 फीसदी बाइक सवार होते हैं. 

ट्रॉमा से बचने के लिए कुछ सावधानी बरतनी हैं. सड़क सुरक्षा और ट्रैफिक से जुड़े नियमों का सख्ती से पालन करें. वाहन चलाते समय यातायात एवं चेतावनी संकेतों पर ध्यान दें. बाइक जैसे दुपहिया वाहन चलाते समय हमेशा हेलमेट पहनें. सड़क पर मोबाइल फोन का इस्तेमाल या ऊंची आवाज में संगीत सुनने से बचें. लगातार ड्राइविंग करते समय बीच-बीच में छोटा सा ब्रेक जरूर लें. अपने घर और वाहन में फर्स्ट एड किट जरूर रखें. यह सुनिश्चित करें कि घर की सीढ़ियां, खिड़कियां, बालकनी या छत गिरने से सुरक्षित हैं. थकान, नींद या शराब पीने के बाद नशे की हालत में गाड़ी न चलाएं. जल्दबाजी में गाड़ी चलाते समय किसी भी तरह का जोखिम उठाने से बचें. किसी भी बेहोश या आघात से पीड़ित अर्द्ध चेतन व्यक्ति को तरल पदार्थ न पिलाएं. बेसिक लाइफ सपोर्ट तकनीक के बारे में जानकारी प्राप्त करें और घायलों की मदद करें. किसी घायल को देख कर मोबाइल पर वीडियो या सेल्फी लेने की बजाय उसकी मदद करें.

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