Bihar News: मानसून की दस्तक के साथ सांप काटने से दो मासूमों की मौत, अस्पताल व्यवस्था पर भड़का आक्रोश, स्वास्थ्य विभाग की तैयारियों की खुली पोल
मानसून की दस्तक के साथ ही सांप काटने की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। हालात इतने गंभीर हो चले हैं कि एक ही दिन में दो थाना क्षेत्रों में दो मासूमों की मौत हो गई...

Bihar News: बिहार के कटिहार जिले में मानसून की दस्तक के साथ ही सांप काटने की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। हालात इतने गंभीर हो चले हैं कि एक ही दिन में दो थाना क्षेत्रों में दो मासूमों की मौत हो गई, जिससे स्वास्थ्य विभाग की तैयारियों और जिला अस्पताल की लचर व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं।
पहली घटना 12 वर्षीय प्रियांशी को सांप ने काट लिया। उसे परिजन आनन-फानन में कटिहार सदर अस्पताल लेकर पहुंचे। परिजनों का आरोप है कि इलाज के अभाव और लापरवाही के चलते उसकी मौत हो गई।दूसरी घटना 6 साल का मासूम फराद की है जो सांप के काटने का शिकार हुआ। परिजन उसे भी सदर अस्पताल लेकर आए, पर वहां समुचित इलाज नहीं मिला। नतीजतन, मासूम की मौत हो गई।इन दोनों घटनाओं में परिजनों ने अस्पताल पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाया और सदर अस्पताल परिसर में जमकर हंगामा किया।इन मौतों ने कटिहार सदर अस्पताल की वर्तमान स्थिति को उजागर कर दिया है।
डॉक्टर इलाज करने के बजाय रेफर करने में लगे हैं।सांप काटने के मामलों में जरूरी एंटीवेनम दवाओं की व्यवस्था नहीं है।आपातकालीन स्थिति में ट्रेंड स्टाफ, उपकरण और त्वरित उपचार की व्यवस्था नदारद है।पीड़ितों के परिजन कह रहे हैं कि “इलाज की जगह खाना पूर्ति” की जाती है।
बाढ़ और मानसून से पहले हर साल सरकार तैयारियों के बड़े-बड़े दावे करती है—विशेष टीमें, दवाइयों का स्टॉक, ट्रेन्ड स्टाफ, आपातकालीन वार्ड आदि की बातें की जाती हैं। लेकिन कटिहार में दो मासूमों की मौत ने इन दावों को जमीनी हकीकत में बदलकर रख दिया है।
रेड जोन घोषित इलाकों में भी सांप काटने जैसी आम मौसमी घटनाओं से निपटने की पुख्ता व्यवस्था नहीं है।कटिहार जैसे बाढ़ प्रभावित जिलों में जहां हर साल इस तरह की घटनाएं आम हैं, वहां स्थायी समाधान की जरूरत है।इन घटनाओं के बाद कई सामाजिक कार्यकर्ता और जन संगठनों ने भी स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन पर कड़ी टिप्पणी की है।सवाल यह है कि हर साल ऐसी घटनाओं के बावजूद क्या सिस्टम सिर्फ मौतों के बाद ही जागेगा?
रिपोर्ट- श्याम कुमार सिंह