Bihar liquor ban: बिहार के लखीसराय में शराबी को छुड़ाने के लिए 30 से 40 महिलाओं ने थाने का किया घेराव, फिर हुआ कुछ ऐसा की पुलिस को उठाना पड़ा बड़ा कदम

बिहार के लखीसराय में शराबबंदी के बावजूद एक आरोपी को छुड़ाने के लिए दर्जनों महिलाएं थाने पहुंच गईं। जानें कैसे अपहरण की झूठी कहानी से शराब सेवन का खुलासा हुआ और पुलिस को विरोध झेलना पड़ा।

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Bihar lakhisarai- फोटो : AI

Bihar lakhisarai liquor ban: बिहार में शराबबंदी एक ऐतिहासिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। विशेषकर महिलाओं ने इस कानून का सबसे अधिक समर्थन किया और इसे अपने परिवारों और समाज की सुरक्षा से जोड़ा। लेकिन लखीसराय जिले से आई एक खबर ने इस धारणा को उलझन में डाल दिया है। यहां एक शराब के नशे में गिरफ्तार व्यक्ति के समर्थन में महिलाएं थाने तक पहुँच गईं, और आरोपी की रिहाई की मांग करने लगीं।

यह घटना बड़हिया थाना क्षेत्र की है, जहाँ मंगलवार देर शाम सातो यादव नामक व्यक्ति को नशे की हालत में हंगामा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। पुलिस के लिए यह एक सामान्य कार्रवाई थी, लेकिन जिस तरह से महिलाओं की भीड़ थाने पर पहुंची, उसने सवाल खड़े कर दिए हैं — क्या बिहार में शराबबंदी की स्वीकार्यता अब उतनी मजबूत नहीं रही?

अपहरण की झूठी सूचना से हुआ शराब सेवन का खुलासा

सातो यादव की गिरफ्तारी की शुरुआत उस वक्त हुई जब उनके बेटे ने पुलिस को फोन कर सूचना दी कि उनके पिता का अपहरण हो गया है। इस कॉल के बाद पुलिस हरकत में आई, लेकिन जांच के दौरान सच्चाई कुछ और ही निकली। यादव अपहरण का शिकार नहीं हुए थे, बल्कि वे खुद शराब के नशे में गाली-गलौज और हंगामा कर रहे थे, जिसे स्थानीय लोगों ने काबू में कर पुलिस के हवाले कर दिया।मेडिकल जांच में यह स्पष्ट हो गया कि यादव ने शराब का सेवन किया था, और उसी आधार पर पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। यह मामला शराबबंदी कानून के अंतर्गत सीधे कार्रवाई का उदाहरण बन गया।थाने का घेराव कर कानून के खिलाफ उतरी भीड़

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बुधवार की सुबह, जैसे ही खबर फैली कि सातो यादव को हिरासत में लिया गया है, लगभग 30 से 40 महिलाएं और कुछ पुरुष थाने पर जुट गए। इनका उद्देश्य था — सातो यादव को छोड़ने के लिए दबाव बनाना। ये महिलाएं आरोपी के समर्थन में इस हद तक चली गईं कि उन्होंने थाने का घेराव कर दिया।

पुलिस ने पहले शांति और कानून की जानकारी देकर भीड़ को समझाने की कोशिश की, लेकिन जब महिलाएं नहीं मानीं तो भीड़ को हटाने के लिए सख्ती बरतनी पड़ी। स्थिति को संभालने के लिए महिला पुलिस बल की अतिरिक्त तैनाती भी की गई।

क्या शराबबंदी कमजोर हो रही है?

यह घटना केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी या भीड़ के आक्रोश तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बिहार में शराबबंदी की वर्तमान स्थिति पर बड़ा प्रश्न भी उठाती है। जिस नीति को महिलाओं ने अपना समर्थन दिया था, अब उसी नीति के विरुद्ध महिलाएं खड़ी दिखाई दे रही हैं।

यह दो संभावनाओं की ओर इशारा करता है — या तो शराबबंदी का प्रभाव सामाजिक रूप से कम हो रहा है, या फिर कानून की प्रवर्तन प्रक्रिया में असंतोष बढ़ रहा है। इस स्थिति में सरकार को यह विचार करना होगा कि शराबबंदी कानून का सामाजिक समर्थन बनाए रखने के लिए पुनः जनजागरण और संवाद की आवश्यकता है।

कानून और समाज के बीच दूरी?

लखीसराय की घटना यह स्पष्ट करती है कि कानून तब तक प्रभावी नहीं होता जब तक उसे सामाजिक समर्थन न मिले। बिहार में शराबबंदी कानून का उद्देश्य समाज को व्यसनमुक्त बनाना था, लेकिन यदि समाज का ही हिस्सा उसके विरुद्ध खड़ा हो जाए, तो इसके प्रभाव पर पुनर्विचार आवश्यक हो जाता है।

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