नाला बना या नोटों की नाली, बड़हिया बाईपास पर लाखों के खर्च से निर्मित नाला बरसात के पहले ही चंद बूंदों में बहा !
लखीसराय जिले के कथित विकास कार्यों का हाल ये है यहां जिस नाले का निर्माण लाखों की लागत से हुआ वह तेज बरसात झेलने के पहले ही ध्वस्त सा हो गया है. अब बड़हिया बायपास पर लोग इसे लेकर परेशानी झेल रहे हैं.

Bihar News: लखीसराय जिले के बड़हिया में आम लोगों को सुगम सफर मुहैया कराने के लिए बड़हिया बाईपास पर बना नाला अबूझ पहेली की तरह बन गया है. जिस नाले का निर्माण कुछ महीने पूर्व ही हुआ वह अब जर्जर होकर विकास के बदले भ्रष्टाचार के दलदल का रूप ले चुका है. स्थानीय लोगों ने इसे लेकर वीडियो और तस्वीरें जारी कर बदहाली और बदइन्तजामी पर चिंता जताई है. लोगों का कहना है कि लाखों की लागत से बना बड़हिया बाईपास इन दिनों अपनी किस्मत पर नहीं, नाले के पानी पर फिसल रहा है। बरसात शुरू भी नहीं हुई और विकास की पोल यूँ खुली कि राहगीर अब सड़क नहीं, नाले पर चलने को मजबूर हैं।
नगर परिषद के कथित विकास कार्यों का हाल ये है कि बाईपास पर बना नाला कुछ महीनों में ही धराशायी हो गया। लाखों खर्च कर जो निर्माण हुआ, वह बरसात कि पहली बूंदों से पहले बह गया। नाले के निर्माण में इस कदर लापरवाही बरती गई कि लगता है ठेकेदार ने सीमेंट की जगह ‘जिम्मेदारी’ ही घोलकर डाली थी।
और हद तो तब हो गई...
लोगों का कहना है कि इसी नाले के पानी को सड़क से हटाने के लिए, फिर से उसी नाले का निर्माण कराया गया. यानी उसी जगह फिर से लाखों रुपए बहाए गए। अफसरों की फाइलें फिर सरकीं, टेंडर फिर छपे, फोटो फिर खिंचे, फीते फिर कटे — लेकिन हाल वही ढाक के तीन पात! अब भी वही पानी, वही बदबू, वही बहाव और वही बेहाल जनता।
सवाल यह है कि...
नगर परिषद के नए सभापति को पद संभाले दो साल हो गए, लेकिन जनता अब भी गंदे पानी में भविष्य की तलाश में है। विकास के नाम पर जो सपना दिखाया गया था, वह अब लोगों के पैरों के नीचे बहते बदबूदार पानी में सड़ रहा है।
स्थानीय जनता का दर्द:
लोगों का कहना है कि "पहले सोचा था सड़क बनेगी तो विकास दौड़ेगा, अब हालत ये है कि स्कूल जाना हो या बाजार — पहले नाला पार करना पड़ता है। लगता है बाईपास नहीं, कोई पानी से भरा ट्रेंच है।" ऐसा लगता है कि बड़हिया में सड़कें कागज पर बनती हैं, हकीकत में सिर्फ नालियां बहती हैं। और नेताओं का विकास मॉडल? "जहां गंदा पानी रुके, वहां फिर से टेंडर फूके! लोगों का कहना है कि हम तो पूछेंगे कि लाखों खर्च कर एक नाला बना — बह गया। फिर लाखों खर्च कर उसी नाले को फिर से बनाया — फिर वही हालत। तो बनाने वाले नेता और अधिकारी बताएं कि "नाला बना या नोटों की नाली?"
कमलेश की रिपोर्ट