बड़हिया की उपेक्षा पर जनाक्रोश, जिस ऐतिहासिक मंदिर में डिप्टी सीएम विजय सिन्हा जरुर करते हैं पूजा उसे ही भूला लखीसराय जिला प्रशासन, मृणाल माधव ने जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मृणाल माधव ने लखीसराय जिला प्रशासन पर बड़ा सवाल उठाते हुए ऐतिहासिक महत्व के शहर बड़हिया की उपेक्षा का आरोप लगाया है.

Bihar News : बिहार का बड़हिया, जिसे 12वीं शताब्दी में बसाया गया था, न केवल ऐतिहासिक रूप से गौरवशाली रहा है, बल्कि धार्मिक आस्था, स्वतंत्रता संग्राम और सांस्कृतिक चेतना का एक जीवित प्रतीक भी है। यह क्षेत्र सदियों से आध्यात्मिक प्रकाश, क्रांति की चिंगारी और सामाजिक समरसता का केंद्र रहा है। परंतु, आज यही बड़हिया जिला प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है। यह कहना है सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मृणाल माधव का जिन्होंने लखीसराय जिला प्रशासन पर बड़ा सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि सूबे के उप मुख्यमंत्री और स्थानीय विधायक विजय सिन्हा हों या केंद्रीय मंत्री ललन सिंह हर कोई बड़हिया की ऐतिहासिक महत्ता से अवगत हैं. यहां के महारानी स्थान मंदिर में जरुर पूजा करते हैं लेकिन जिला प्रशासन अपने ही इतिहास को भूल गया है.
जगदंबा स्थान: आस्था की चमत्कारी परंपरा
बड़हिया की महत्ता बताते हुए मृणाल माधव ने कहा कि बड़हिया का जगदंबा स्थान मंदिर एक ऐसा तीर्थ है, जिसकी स्थापना शांडिल्य गोत्रीय पंडित श्रीधर ओझा ने मां जगदंबा के स्वप्नादेश पर की थी। इस मंदिर में मां वैष्णो देवी की अंशरूपा की पिंड के रूप में स्थापित है और यहां स्थित चमत्कारी कुएँ को लेकर यह मान्यता है कि साँप के काटे व्यक्ति को यदि यहां लाकर कुएँ का जल पिलाया जाए और मां के चरणों में श्रद्धा से प्रार्थना की जाए, तो बिना औषधि के ही जीवन बच सकता है। आज भी, आधुनिक चिकित्सा के बावजूद, लोग अस्पताल नहीं बल्कि पहले जगदंबा स्थान की ओर दौड़ते हैं। यह आस्था नहीं, अनुभव है — पीढ़ियों से संचित विश्वास है।
तिलक मैदान और क्रांतिकारी चेतना
उन्होंने कहा कि इसी तरह बड़हिया का तिलक मैदान स्वतंत्रता संग्राम की उस भूमि का नाम है, जहाँ देश के कोने-कोने से आए क्रांतिकारी वेश बदलकर फुटबॉल खेलते थे और रात में "हा-हा बंगला" में क्रांति की रणनीतियाँ बनाते थे। 1904-05 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के आगमन के बाद इस मैदान का नाम 'तिलक मैदान' रखा गया। यह वही भूमि है जिसे महात्मा गांधी, गोपाल कृष्ण गोखले, चंद्रशेखर आजाद, खुदीराम बोस जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने चरणों से पवित्र किया। नेशनल स्पोर्टिंग क्लब का बड़का मैदान सिर्फ खेल का केंद्र नहीं, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चलने वाली योजनाओं का छिपा हुआ मंच था।
बड़हिया की विरासत की हो रही उपेक्षा
मृणाल माधव ने कहा कि हाल ही में लखीसराय जिला स्थापना दिवस पर जो डॉक्यूमेंट्री फिल्म जारी की गई और नगर में जो होर्डिंग्स लगाए गए, उनमें बड़हिया की किसी भी ऐतिहासिक या धार्मिक धरोहर — जगदंबा स्थान, तिलक मैदान, हा-हा बंगला — का कोई उल्लेख नहीं था। यह केवल एक चूक नहीं, बल्कि एक सुनियोजित विस्मरण प्रतीत होती है। इससे पहले भी बड़हिया को योजनाओं और प्रचार से वंचित किया गया है।
संस्कृति को मिटाने की साजिश?
उन्होंने कहा कि इतिहास यह बताता है कि किसी भी समाज को कमजोर करने के लिए सबसे पहले उसकी शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति पर प्रहार किया जाता है। बिहार में शिक्षा और स्वास्थ्य की दशा पहले ही चिंताजनक है, और अब बड़हिया की संस्कृति और ऐतिहासिक पहचान को भी जानबूझ कर हाशिये पर डाला जा रहा है।
मृणाल माधव की दो टूक चेतावनी
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मृणाल माधव ने जिला प्रशासन के इस रवैये पर गहरी नाराज़गी जताते हुए कहा कि "बड़हिया के बिना लखीसराय की कल्पना ही नहीं की जा सकती। जब इतिहास लिखा जाएगा, तो बड़हिया उसका पहला अध्याय होगा—not a forgotten footnote." "कुछ महीने पहले बनी डॉक्यूमेंट्री में बड़हिया की किसी भी धरोहर की चर्चा नहीं की गई। जगदंबा स्थान जैसे चमत्कारी और ऐतिहासिक स्थल को भी जानबूझ कर भुला दिया गया। स्थापना दिवस पर लगाए गए होर्डिंगों में भी बड़हिया पूरी तरह गायब रहा।" "इतिहास गवाह है कि अगर किसी क्षेत्र की जड़ों को काटना हो तो सबसे पहले उसकी शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति को तोड़ा जाता है। यही अब बड़हिया के साथ हो रहा है।"
रिकनेक्ट या डिसकनेक्ट
उन्होंने कहा कि "Reconnect Lakhisarai" नामक पहल, जो जिलाधिकारी द्वारा प्रवासी लखीसरायवासियों को पुनः जोड़ने के लिए चलाई जा रही है, अपने मूल उद्देश्य से भटकती दिख रही है। जब बड़हिया जैसे ऐतिहासिक कस्बे को ही इस जुड़ाव से काट दिया जाए, तो यह प्रयास केवल सजावटी कार्यक्रम बनकर रह जाता है। "Reconnect Lakhisarai कार्यक्रम में बड़हिया की पूरी तरह उपेक्षा कर दी गई है। क्या यह Reconnect है या एक सोची-समझी Disconnect की नीति?" उन्होंने कहा कि "लेकिन अब हम चुप नहीं बैठेंगे। बड़हिया की जनता अब केवल दर्शक नहीं, अपनी संस्कृति और विरासत की प्रहरी बनेगी। हम अपने इतिहास को मिटने नहीं देंगे. उन्होंने कहा कि यह संकल्प भी है और चेतावनी भी।
कमलेश की रिपोर्ट