MP Veena Devi: बिहार की सियासत में 'दो-दो वोटर पहचान पत्र' का संग्राम, सांसद-एमएलसी पर विपक्ष का वार
MP Veena Devi:दो-दो EPIC नंबर पर वैशाली की लोजपा (रा) सांसद बीना देवी ने कहा कि मुज़फ़्फ़रपुर में नाम बहुत पहले था, उसे हटाने के लिए आवेदन दे चुकी हूँ। अब ये कैसे रह गया, इसकी जानकारी नहीं है...

MP Veena Devi: बिहार की सियासी ज़मीन पर इन दिनों एक नया विवाद ज़ोर पकड़ चुका है। दो-दो EPIC नंबर यानी एक ही व्यक्ति के नाम पर अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में मतदाता पहचान पत्र। पहले मुज़फ़्फ़रपुर की मेयर निर्मला साहू का नाम आया, और अब इस सूची में दो और बड़े नाम जुड़ गए हैं वैशाली की लोजपा (रामविलास) सांसद बीना देवी और जदयू के एमएलसी दिनेश प्रसाद सिंह। इस खुलासे ने राजनीति में भूचाल ला दिया है और विपक्ष ने इस मुद्दे को हाथों-हाथ उठा लिया है।
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने चुनावी व्यवस्था की पारदर्शिता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। उनका कहना है कि "जब बड़े-बड़े नेताओं के नाम पर दो-दो वोटर कार्ड हों, तो आम जनता को न्याय और निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद कैसे बचेगी?"
मामले की तह तक जाएँ तो खुलासा हुआ है कि एमएलसी दिनेश प्रसाद सिंह का एक EPIC नंबर मुज़फ़्फ़रपुर नगर विधानसभा में दर्ज है, जबकि दूसरा साहेबगंज विधानसभा में। यही नहीं, उनकी पत्नी और वैशाली की सांसद बीना देवी का भी एक EPIC नंबर मुज़फ़्फ़रपुर नगर में और दूसरा साहेबगंज में पाया गया है।
जब इस बाबत सांसद बीना देवी से पक्ष जानने की कोशिश की गई, तो वह कैमरे के सामने आने से बचती रहीं। हालांकि, बिना कैमरे के उन्होंने सफ़ाई देते हुए कहा कि "मेरा घर साहेबगंज विधानसभा में है, मैं यहीं वोट डालती हूँ और चुनाव भी यहीं से लड़ती हूँ। मुज़फ़्फ़रपुर में नाम बहुत पहले था, उसे हटाने के लिए आवेदन दे चुकी हूँ। अब ये कैसे रह गया, इसकी जानकारी नहीं है, शायद कर्मियों की गलती हो।"
लेकिन सवाल यहीं थमता नहीं। जब हाल ही में मतदाता सूची पुनः निरीक्षण का काम हुआ, तो क्या उस समय यह ग़लती पकड़ी नहीं जानी चाहिए थी? क्या बिना मतदाता के व्यक्तिगत सत्यापन के यह प्रक्रिया पूरी कर दी गई? यही वह बिंदु है, जिस पर विपक्ष सरकार और चुनाव आयोग को घेर रहा है।
इस विवाद के बाद चुनावी व्यवस्था की साख पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है। जानकारों का कहना है कि दो-दो EPIC नंबर रखना न केवल चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में आता है, बल्कि यह मतदाता सूची के दुरुपयोग की संभावनाओं को भी जन्म देता है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा गर्म है क्या यह केवल प्रशासनिक चूक है, या फिर सुनियोजित ढंग से मतदाता सूची में हेरफेर? विपक्ष इसे “लोकतंत्र के साथ छल” बता रहा है, जबकि सत्तापक्ष इसे “मानवीय त्रुटि” कहकर टालने की कोशिश में है।
जैसे-जैसे यह मुद्दा तूल पकड़ रहा है, जनता भी सवाल पूछ रही है"अगर नेताओं के नाम पर दो-दो पहचान पत्र हों, तो वोट की पवित्रता कैसे बरक़रार रहेगी?"
फिलहाल, मामला चुनाव आयोग की अदालत में है, और बिहार की राजनीति में यह एक और सियासी तूफ़ान बनकर उभर चुका है एक ऐसा तूफ़ान, जिसमें भरोसे का दीपक डगमगाने लगा है।
रिपोर्ट- मणिभूषण शर्मा