बिहार के मुजफ्फरपुर में चलने वाली गाड़ी का राजस्थान पुलिस ने काटा चलान! जानें क्या है गड़बड़झाला

बिहार में ट्रैफिक चालानों को लेकर बड़ा विवाद सामने आया है। मुजफ्फरपुर में एक वाहन का ओवर स्पीडिंग चालान काटा गया, जबकि गाड़ी की गति शून्य दर्ज थी। जानिए इस तकनीकी गड़बड़ी की पूरी कहानी।

बिहार ट्रैफिक पुलिस चालान
Bihar Traffic Challan- फोटो : social media

बिहार के मुजफ्फरपुर में ट्रैफिक पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वाला एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। सुपौल डीटीओ के नाम से रजिस्टर्ड एक वाहन को ओवर स्पीडिंग के लिए 2000 रुपये का चालान थमाया गया, जबकि चालान की रिपोर्ट में गाड़ी की गति "शून्य" दर्ज है।यह वाकया 30 जून 2023 को हुआ, जब सुपौल से पटना की ओर जा रही गाड़ी का चालान मुजफ्फरपुर शहर में काटा गया। और हैरानी की बात तो ये कि चालान पर बिहार पुलिस के बजाय राजस्थान पुलिस का नाम अंकित था।

वाहन मालिक के अनुसार, उन्होंने गाड़ी की गति जानबूझकर 20-30 किमी/घंटा तक कम की थी, क्योंकि रास्ते में उन्हें किनारे रुकना था। फिर भी चालान आया और उन्हें कानूनन दोषी ठहरा दिया गया। इससे स्पष्ट है कि केवल सिस्टम ही नहीं, डेटा संग्रहण और सत्यापन की प्रक्रिया भी दोषपूर्ण है।

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 तकनीकी गड़बड़ी या भ्रष्टाचार का नया तरीका?

ट्रैफिक विभाग ने इस पूरी घटना को एक "तकनीकी गलती" बताया है। लेकिन जब ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही हो, तो क्या इसे केवल तकनीकी खामी मान लेना पर्याप्त है?सवाल ये है कि जब गाड़ी की गति "0" दर्ज है, तो फिर ओवर स्पीडिंग कैसे मानी गई? क्या ये "स्मार्ट चालान" प्रणाली के गलत कोडिंग का मामला है या जानबूझकर राजस्व बढ़ाने का नया तरीका? लोगों की शिकायत है कि ये कोई अकेला मामला नहीं है। कई वाहन चालकों को ऐसे ही संदिग्ध परिस्थितियों में चालान भेजे जा रहे हैं, जिसमें या तो गाड़ी की स्पीड बिल्कुल सामान्य होती है या कैमरा एंगल से गाड़ी की पहचान ही गलत होती है। ऐसे मामलों में पुलिस और ट्रैफिक विभाग आमतौर पर "सिस्टम एरर" कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं, लेकिन जुर्माना भुगतान फिर भी जनता से ही वसूला जाता है।

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डिजिटल चालान सिस्टम 

बिहार में ई-चालान प्रणाली का उद्देश्य था ट्रैफिक नियमों का पालन सख्ती से कराना और भ्रष्टाचार को रोकना। लेकिन अब यही प्रणाली आम लोगों के लिए मुसीबत बनती जा रही है। इसकी वजह से रजिस्ट्रेशन नंबर की गलत पहचान की जा रही है। लो स्पीड को हाई स्पीड रिकॉर्ड कर दिया जा रहा है। कैमरा और GPS डेटा में तालमेल नहीं बैठ पा रहा है।

अन्य राज्यों की पुलिस का नाम चालान

अन्य राज्यों की पुलिस का नाम चालान पर होना। अगर ट्रैफिक प्रणाली में कोई गलती हो तो उसे तत्काल सुधारने की जिम्मेदारी विभाग की बनती है ना कि वाहन चालक को दंडित करने की। लेकिन "कोई सुधार की गुंजाइश नहीं" जैसे बयान से साफ़ है कि सिस्टम का झुकाव नागरिक के बजाय खुद के बचाव में ज्यादा है।

नियम का पालन करने पर भी सज़ा?

इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आम नागरिक, जो ईमानदारी से ट्रैफिक नियमों का पालन करता है, उसे भी ऐसे चालानों की मार क्यों झेलनी पड़ रही है? प्रज्ञा कुमारी की गाड़ी के चालक सनी कर्ण की शिकायत से यह स्पष्ट है कि न केवल चालान गलत तरीके से जारी हुआ, बल्कि विभाग ने यह भी कहा कि इस पर कोई सुधार नहीं किया जा सकता।