Bihar Vidhansabha Chunav 2025 : बिहार के इन चुनावी मैदानों में दशकों से रहा हैं "बाबू साहेब" का दबदबा, लोकसभा और विधानसभा चुनाव जीतकर कई बार बने "माननीय"

Bihar Vidhansabha Chunav 2025 : बिहार के इन चुनावी मैदानों म

PATNA : कहा जाता है की बिहार की राजनीति से देश की दशा और दिशा तय होती है। यहाँ की सियासत में आये दिन नए नए प्रयोग होते हैं, जिसका असर देश की राजनीति पर भी पड़ता हैं। कभी जयप्रकाश नारायण तो कभी कर्पूरी ठाकुर और लालू नीतीश ने देश की राजनीति में अपना परचम फहरा दिया। फिलहाल बिहार विधानसभा चुनाव में अब कुछ महीने ही शेष बचे हैं। ऐसे में हम बिहार की उन लोकसभा और विधानसभा सीटों की बात करने जा रहे हैं, जहाँ पिछले कई चुनावों में 'बाबू साहेब' का दबदबा रहा है। इन सीटों में औरंगाबाद(लोकसभा), वैशाली(लोकसभा), पूर्वी चंपारण(लोकसभा), बाढ़(विधानसभा) और जमुई विधानसभा क्षेत्र का नाम शिद्दत से लिया जाता है। 

सबसे पहले बात औरंगाबाद की करें तो इसे बिहार का चितौड़गढ़ कहा जाता है। लोकसभा क्षेत्र के रूप में यह 1957 में ही अस्तित्व में आ चुका था। औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र शुरू में कांग्रेस का गढ़ रहा। कांग्रेस यहां से सात बार विजयी रही है। तेरह बार हुए लोकसभा चुनावों में यहाँ से दो राजपूत परिवारों ने अपना अपना दबदबा कायम रखा। अनुग्रह नारायण सिंह आजादी की लड़ाई के योद्धा रहे थे, जिन्हें बिहार विभूति की संज्ञा दी गई। आजादी के बाद वह बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री रहे। उनके पुत्र सत्येंद्र नारायण सिन्हा मुख्यमंत्री और छह बार सांसद रहे। एक-एक बार उनके बेटे निखिल कुमार व बहू श्यामा सिंह जीतीं। राम नरेश सिंह दो बार और उनके बेटे सुशील सिंह चार बार सांसद चुने गए। 

वहीँ वैशाली लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो यहाँ का चुनाव अक्सर राजपूत बनाम राजपूत होता रहा है। कुछ ही मौके ऐसे है जहां राजपूत बनाम भूमिहार का मुकाबला हुआ है। पर 90 के दशक के बाद बाजी हमेशा राजपूत उम्मीदवार के पास रही। यह दीगर है कि हारने वाले भी अक्सर राजपूत ही रहे। पिछले कुछ लोकसभा की मिसाल ले तो राजपूत बनाम राजपूत संघर्ष हुए और जीत किसी एक राजपूत की हुई। 2019वीणा देवी, 2014 रामा किशोर सिंह, 2009रघुवंश प्रसाद सिंह, 2004रघुवंश प्रसाद सिंह, 1999 रघुवंश प्रसाद सिंह, 1998रघुवंश प्रसाद सिंह, 1996    रघुवंश प्रसाद सिंह, 1991 शेओ शरण सिंह, 1989     उषा सिंह, 1984 किशोरी सिन्हा, 1980 किशोरी सिन्हा और 1977 में दिग्विजय नारायण सिंह इस सीट से विजयी रहे हैं। यानी की पांच बार यहाँ से राजपूत जाति के रघुवंश सिंह जीत हासिल की थी। 

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उधर पूर्वी चम्पारण लोकसभा सीट पर भी सवर्ण जातियों का वर्चस्व रहा है। 1952 से लेकर 2019 तक 17 बार लोकसभा चुनाव हुए। इसमें 15 बार सवर्ण जाति के नेता सांसद बने, जिसमें राजपूत जाति के नेता सात और ब्राह्मण उम्मीदवार पांच बार चुनाव जीते। वहीं, भूमिहार प्रत्याशी की जीत तीन बार हुई है। पूर्वी चंपारण सीट से सिर्फ प्रभावती गुप्ता 1984 में तो रमा देवी 1998 में गैर सवर्ण सांसद बनने वालों में शामिल हैं। प्रभावती गुप्ता और रमा देवी वैश्य समाज से हैं। पूर्वी चंपारण कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। लेकिन बीजेपी की सीट बनाने में राधा मोहन सिंह की अहम भूमिका रही है। राजपूत जाति से आने वाले राधा मोहन सिंह छह बार यहां से सांसद रहे हैं। 2009 से 2019 तक वो हैट्रिक लगा चुके हैं। 

बिहार के जमुई विधानसभा के इतिहास पर गौर करें तो अब तक सबसे अधिक 11 बार राजपूत नेताओं ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। विधानसभा अध्यक्ष रहे स्वर्गीय त्रिपुरारी प्रसाद इस क्षेत्र से चार बार विधायक चुने गए थे। सुशील कुमार सिंह ने लोजपा और जेडीयू से तीन बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है।  क्षेत्र की जनता ने सूबे के कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह, उनके पुत्र स्वर्गीय अभय सिंह और अजय प्रताप को भी प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया। पहली बार यादव जाति से विजय प्रकाश ने 2015 में सफलता हासिल की।  लेकिन अगले ही चुनाव यानी 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी की श्रेयसी सिंह के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा।  इस सीट पर पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी 1980 में जीता था।  

पटना जिले का बाढ़ विधानसभा क्षेत्र में राजपूत जाति का हमेशा दबदबा रहा है। राजपूत बाहुल्य होने के कारण इस सीट को पटना का मिनी चितौड़गढ़ भी कहा जाता है। यहां से 15 बार राजपूत प्रत्याशी तथा एक बार अन्य जाति के प्रत्याशी ने जीत हासिल की है। यहां से विधायक रहे राणा शिव लाखपति सिंह विधि मंत्री और विजय कृष्ण राजभाषा मंत्री रह चुके हैं। सर्वाधिक बार विधायक बनने का रिकॉर्ड राणा शिव लाखपति सिंह को है।