Bihar Animal Report: बिहार पशुगणना रिपोर्ट में सामने आए चौंकाने वाले नतीजे, गधों और घोड़ों की संख्या में भारी गिरावट, जानें कैसी है बाकी जानवरों की स्थिति
Bihar Animal Report: बिहार में हालिया पशुगणना में ऊंट, गधा और घोड़े की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है।

Bihar Animal Report: बिहार में हालिया पशुगणना रिपोर्ट ने चिंताजनक तस्वीर पेश की है। ऊंटों की संख्या में पिछले एक दशक में 99 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।2012 की पशुगणना के अनुसार राज्य में ऊंटों की संख्या 8860 थी, जो 2019 तक घटकर केवल 88 रह गई।यह गिरावट बताती है कि ऊंट बिहार में लगभग विलुप्ति की स्थिति में पहुँच चुके हैं। इस गिरावट का कारण परिवहन साधनों का आधुनिकरण और ऊंटों के परंपरागत उपयोग में कमी को माना जा रहा है।आशंका यह भी जताई जा रही है कि 21वीं पशुगणना में ऊंटों की संख्या और भी कम हो सकती है।
गधे, घोड़े और खच्चरों की हालत भी खराब
ऊंटों के साथ-साथ अन्य जानवरों की भी स्थिति दयनीय है। राज्य में 47% गधे घटे हैं।घोड़े में 34% की कमी आई है।खच्चर में 94% की भारी गिरावट देखी गई है।ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन और माल ढुलाई के लिए पारंपरिक रूप से इन जानवरों का उपयोग होता था, लेकिन अब ट्रैक्टर, ऑटो और अन्य आधुनिक साधनों ने इनकी जगह ले ली है।
कुत्तों और भेड़ों की संख्या में भी गिरावट
केवल कामकाजी जानवर ही नहीं, पालतू जानवरों में भी गिरावट देखी गई है। कुत्तों की संख्या साल 2012 में 1,45,690 थी, जबकि 2019 में 1,08,381। भेड़ों की संख्या में भी 8 प्रतिशत की कमी आई है। यह दर्शाता है कि पशुपालन की पारंपरिक आदतें और ग्रामीण जीवनशैली में बड़ा परिवर्तन आ रहा है।
बढ़ते बकरी पालन और डेयरी उद्योग
हालांकि कुछ सकारात्मक संकेत भी देखने को मिले हैं। गायों की संख्या में 26% वृद्धि हुई है।भैंस पालन में 2% वृद्धि देखी गई है।बकरी पालन में 6% वृद्धि दर्ज की गई है।गाय के दूध की मांग बढ़ने से डेयरी उद्योग का विस्तार हुआ है, लेकिन व्यक्तिगत गोपालन यानी घर पर गाय पालने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है।
खरगोश और मुर्गीपालन में उछाल
एक दिलचस्प ट्रेंड यह भी है किखरगोश पालन में 77% की वृद्धि हुई है।मुर्गीपालन में 30% का इजाफा हुआ है।यह बदलाव दिखाता है कि छोटे जानवरों का पालन अब व्यवसायिक दृष्टिकोण से अधिक लोकप्रिय हो रहा है।
पशुचिकित्सा सेवाओं की खराब हालत
बिहार में 1137 पशुअस्पताल तो हैं, लेकिन पशुचिकित्सकों की भारी कमी है। इसके लिए 2090 स्वीकृत पद है, लेकिन सिर्फ 1230 लोग काम कर रहे हैं।यानी 40 प्रतिशत पद खाली हैं। इसके कारण पशुओं के इलाज में बाधा आ रही है। राज्य में 3 करोड़ से अधिक पशुओं की स्वास्थ्य देखभाल की जिम्मेदारी सीमित संसाधनों के सहारे निभाई जा रही है।नई नियुक्ति नियमावली अब तक स्वीकृत नहीं हुई है, जिससे भर्ती प्रक्रियाएँ लंबित हैं और पशुपालकों को समय पर सेवाएँ नहीं मिल पा रही हैं।