बिहार में भूमिहार-ब्राह्मण पहचान पर छिड़ी बहस; सवर्ण आयोग में एकराय नहीं, सरकार के फैसले पर टिकी निगाहें

बिहार में भूमिहार जाति को सरकारी दस्तावेजों में 'भूमिहार-ब्राह्मण' लिखने की मांग पर सवर्ण आयोग में एकराय नहीं बन पाई है। 1931 की जनगणना और खतियान के आधार पर किए जा रहे दावों के बीच अब गेंद राज्य सरकार के पाले में है।

बिहार में भूमिहार-ब्राह्मण पहचान पर छिड़ी बहस; सवर्ण आयोग मे

Patna - बिहार में भूमिहार जाति की पहचान को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। विभिन्न भूमिहार संगठनों ने मांग की है कि सरकारी रिकॉर्ड में उनकी जाति का नाम केवल 'भूमिहार' न रखकर 'भूमिहार-ब्राह्मण' किया जाए। इस संवेदनशील मुद्दे पर राज्य सवर्ण आयोग की पिछले एक महीने में तीन बार बैठकें हुईं, लेकिन सदस्यों के बीच मतभेद के कारण कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका। अंततः आयोग ने मार्गदर्शन के लिए मामले को राज्य सरकार को सौंप दिया है।

1931 की जनगणना और खतियान का तर्क 

भूमिहार संगठनों का दावा है कि 1931 की जनगणना में उनकी जाति 'भूमिहार-ब्राह्मण' के नाम से ही दर्ज थी। इसके अलावा, पुराने भू-राजस्व अभिलेखों और जमीन के खतियान में भी इसी शब्द का प्रयोग होता रहा है। राष्ट्रीय भूमिहार ब्राह्मण परिषद का आरोप है कि साल 2023 की जाति आधारित गणना में इस जाति को केवल 'भूमिहार' लिखकर ऐतिहासिक दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ की गई है, जिससे भविष्य में जमीन के मालिकाना हक को लेकर कानूनी संकट पैदा हो सकता है।

सवर्ण आयोग में खींचतान 

सवर्ण आयोग के अध्यक्ष महाचंद्र प्रसाद सिंह का कहना है कि 1931 के सरकारी रिकॉर्ड को आधार मानकर फैसला लिया जाएगा। हालांकि, आयोग के कुछ सदस्य इस बदलाव का विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि कोई जाति खुद को किस नाम से पुकारती है, यह उनका निजी मामला हो सकता है, लेकिन इसे सरकारी दस्तावेजों में अनिवार्य करना विवादित हो सकता है।

ब्राह्मण समाज का समर्थन 

दिलचस्प बात यह है कि इस मांग को ब्राह्मण समाज का भी समर्थन मिल रहा है। ऑल बिहार ब्राह्मण फेडरेशन के अध्यक्ष और पूर्व आईपीएस एसके झा के अनुसार, पारंपरिक रूप से भूमिहारों को भूमिहार-ब्राह्मण ही कहा जाता रहा है और दोनों समुदायों के बीच इसे लेकर कोई विवाद नहीं है। अन्य ब्राह्मण संगठनों का भी मानना है कि इस नामकरण से उनकी सांस्कृतिक एकता पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।