Bihar Voter List: बिहार का वोटर लिस्ट विवाद पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, मताधिकार पर मंडराते सवालात, अब निगाहें सर्वोच्च न्यायालय पर

Bihar Voter List: मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकरअब सुप्रीम कोर्ट की चौखट खटखटाई गई है....

Supreme Court
बिहार का वोटर लिस्ट विवाद पहुंचा सुप्रीम कोर्ट- फोटो : social Media

Bihar Voter List: बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पूर्व मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण  को लेकर सियासी और संवैधानिक बहस तेज हो चुकी है। चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए इस निर्देश पर अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट खटखटाई गई है, जहाँ एडीआर (Association for Democratic Reforms) ने इस निर्णय को न केवल असंवैधानिक बल्कि लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध बताया है।

एडीआर का तर्क यह है कि मतदाता सूची में सुधार की मौजूदा प्रक्रिया, विशेषकर दस्तावेज़ीकरण की कठोर शर्तें, राज्य के हाशिये पर खड़े समुदायों—जैसे मुस्लिम, अनुसूचित जातियाँ, अनुसूचित जनजातियाँ और प्रवासी मज़दूर—के लिए मताधिकार से वंचित होने का रास्ता खोल रही हैं। जिनके पास जन्म प्रमाण-पत्र, निवास प्रमाण या माता-पिता के रिकॉर्ड जैसे दस्तावेज नहीं हैं, उनकी नागरिकता संदेह के घेरे में डाल दी गई है, जो संविधान के अनुच्छेद 326 के सरासर खिलाफ है।सवाल उठाया जा रहा है कि 90 साल की महिला के पास आखिर कौन सा दस्तावेज होगा?

विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम संवेदनशील राजनीतिक समय में उठाया गया है, जब चुनाव नजदीक हैं और राज्य में मतदाता समीकरण निर्णायक भूमिका निभाने वाले हैं। एडीआर का दावा है कि यदि इस गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से रोका नहीं गया, तो तीन करोड़ से अधिक मतदाता—जो पहले से ही प्रशासनिक उपेक्षा और सामाजिक बहिष्कार का शिकार हैं—चुनाव प्रक्रिया से बाहर हो सकते हैं।

चुनाव आयोग द्वारा मतदाता पंजीकरण की ज़िम्मेदारी नागरिकों पर डाल देना एक प्रकार की संवैधानिक जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना है। जो जनता पढ़ी-लिखी नहीं है, जिनके पास संसाधनों की कमी है, उनके लिए यह प्रक्रिया एक दुर्गम पहाड़ की तरह बन गई है।

इस समूचे घटनाक्रम ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता और संवेदनशीलता पर सवालिया निशान लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल याचिका इस बात की गवाही देती है कि अब देश को केवल कानूनी नहीं, नैतिक हस्तक्षेप की भी जरूरत है ताकि लोकतंत्र का आधार स्तंभ—सर्वजन मताधिकार—किसी भी सूरत में कमजोर न हो।अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं—क्या वो इस मुद्दे को सिर्फ़ तकनीकी समझेगा या संवेदनशील लोकतांत्रिक चिंता के रूप में देखेगा?