Bihar Politics: तेलांगना के सीएम रेवंत रेड्डी के पुराने बयान से बिहार की राजनीति में कांग्रेस को हो सकता है बड़ा घाटा! जानें पूरा माजरा

Bihar Politics: तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी को वोटर अधिकार यात्रा में शामिल कर कांग्रेस ने बिहारी अस्मिता पर चोट की, जिससे बीजेपी ने बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना लिया।

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रेवंत रेड्डी को लेकर मच सकता है बवाल!- फोटो : SOCIAL MEDIA

Bihar Politics: बिहार की राजनीति लंबे समय से सामाजिक न्याय, जातीय समीकरण और क्षेत्रीय अस्मिता के इर्द-गिर्द घूमती रही है। महागठबंधन द्वारा शुरू की गई वोटर अधिकार यात्रा का उद्देश्य था जनता को यह संदेश देना कि बिहार की आवाज और वोट की ताकत को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलनी चाहिए। इस यात्रा ने खासकर ग्रामीण इलाकों और मजदूर वर्ग में गहरी पकड़ बनानी शुरू कर दी थी।

लेकिन जैसे ही कांग्रेस ने इस यात्रा में तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी को शामिल किया, पूरा राजनीतिक समीकरण बदल गया। इसका कारण सिर्फ एक चेहरा नहीं था, बल्कि बिहारी अस्मिता से जुड़ी पुरानी यादें थीं, जो एक बार फिर ताज़ा हो गईं। बीजेपी ने इसे तुरंत पकड़ लिया और इसे बिहारियों के स्वाभिमान पर हमला बताते हुए पूरे राज्य में चर्चा का मुद्दा बना दिया। यह दिखाता है कि बिहार की राजनीति में अस्मिता का सवाल कितना संवेदनशील और निर्णायक है।

बिहारी नजर में रेवंत रेड्डी क्यों विलेन बने?

रेवंत रेड्डी का नाम बिहारियों के लिए नया नहीं है। वर्ष 2023 में तेलंगाना के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने एक बयान दिया था, जिसमें कहा था मेरा डीएनए तेलंगाना का है। केसीआर का डीएनए बिहार का है और तेलंगाना का डीएनए बिहार से बेहतर है। यह बयान बिहारियों को गहरी चोट पहुंचा गया। बिहार की मेहनतकश जनता, जो देशभर में अपनी पहचान और परिश्रम के लिए जानी जाती है, उसे नीचा दिखाना न सिर्फ भावनात्मक चोट था, बल्कि राजनीतिक रूप से भी अस्वीकार्य।

आज जब वही रेवंत रेड्डी मिथिलांचल जैसे बीजेपी गढ़ में महागठबंधन की पदयात्रा में शामिल होते हैं, तो यह आम बिहारी मतदाता के लिए पुराना जख्म कुरेदने जैसा था। इस वजह से रेड्डी, कांग्रेस के बजाय सीधे तौर पर बीजेपी के प्रचारक बन बैठे, क्योंकि बीजेपी को एक बड़ा नैरेटिव हाथ लग गया।

चन्नी और प्रियंका का जुड़ा विवाद

रेवंत रेड्डी से पहले भी कांग्रेस के नेताओं ने बिहार और यूपी के लोगों पर अपमानजनक टिप्पणी की थी।पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा था कि “यूपी और बिहार के लोगों को पंजाब में घुसने नहीं दिया जाएगा। उस समय प्रियंका गांधी उनके साथ खड़ी थीं और तालियां बजा रही थीं।आज जब रेवंत रेड्डी बिहार की राजनीति में उतरे, तो सोशल मीडिया पर यह तस्वीर और बयान फिर से वायरल हो गए। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस की कोशिशों के बजाय बिहारियों की नाराजगी बढ़ गई। खासकर वह तबका, जो बिहार से पलायन कर रोज़गार के लिए बाहर जाता है, इस अपमान को अपनी निजी पीड़ा से जोड़कर देखने लगा।

बीजेपी ने बनाया अस्मिता का मुद्दा

बीजेपी ने इस पूरे विवाद को तुरंत हवा दी।केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि “कांग्रेस जब भी मौका पाती है, बिहार का अपमान करती है।बीजेपी कार्यकर्ताओं ने रेवंत रेड्डी और प्रियंका गांधी के खिलाफ जुलूस तक निकाला।मजदूर वर्ग और युवा, जो बाहर पढ़ाई और नौकरी करने जाते हैं, इस मुद्दे से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।इस तरह कांग्रेस का एक कदम न सिर्फ रणनीतिक चूक साबित हुआ, बल्कि बीजेपी के लिए सोने पर सुहागा बन गया।

राहुल गांधी की रणनीतिक चूक

राहुल गांधी ने रेवंत रेड्डी को शामिल करके जो संदेश दिया, वह पूरी तरह उल्टा पड़ गया।ऐसे नेता को लाना, जिसने बिहार को नीचा दिखाया था, कांग्रेस की छवि पर भारी पड़ा।चन्नी-प्रियंका का विवाद फिर से उठ खड़ा हुआ।बिहारी अस्मिता को बीजेपी ने पूरी ताकत से भुनाना शुरू कर दिया।राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राहुल गांधी ने स्थानीय अस्मिता की संवेदनशीलता को समझने में बड़ी भूल की।