DULARCHAND MURDER : मोकामा की सियासत में ‘दबदबा’, पटना में भी धमक, लेकिन खुद दो चुनावों में एक हज़ार वोट नहीं ला पाए दुलारचंद

DULARCHAND MURDER : मोकामा की सियासत में दबंग दबदबा रखने वाले दुलारचंद यादव खुद एक हज़ार से अधिक वोट कभी नहीं ला पाए.....पढ़िए सियासी सफ़र

DULARCHAND MURDER : मोकामा की सियासत में ‘दबदबा’, पटना में भ
दुलारचंद का दबदबा - फोटो : SOCIAL MEDIA

PATNA : मोकामा में दुलारचंद यादव की हत्या से हड़कंप मच गया है। घुमावदार मूंछे, कड़कती आवाज के लिए जाने जानावाला यह शख्स बिहार की सियासत के दो ध्रुवों नीतीश कुमार और लालू यादव के लिए अनजाने नहीं थे। लालू यादव के वे करीबी माने जाते थे। हालाँकि उन्हें राजद से एक बार भी टिकट नहीं मिला। 1990 में जब लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने तो दुलारचंद यादव की ताकत और बढ़ गयी। तब विपक्ष के नेता जगन्नाथ मिश्र ने आरोप लगाया था कि लालू यादव जाति के आधार पर अपराधियों को संगठित कर रहे हैं। उस समय लालू यादव की पार्टी (जनता दल) से दिलीप सिंह मोकामा के विधायक थे।

अपराध से राजनीति का सफ़र: लालू ने क्यों नहीं दिया टिकट?

अपराध की दुनिया में अपनी ताकत स्थापित करने वाले दुलारचंद यादव ने राजनीतिक महत्वकांक्षा भी पाली थी। वे लालू यादव के करीबी थे, लेकिन लालू ने उन्हें कभी अपनी पार्टी से टिकट नहीं दिया। इसकी मुख्य वजह जनता दल के भीतर जॉर्ज फर्नांडीस और शरद यादव जैसे नेताओं का विरोध था, जो राजनीति के अपराधीकरण के सख्त खिलाफ थे। बाद में, राजद के गठन के बाद भी लालू ने अपनी पार्टी की छवि बचाने के लिए दुलारचंद से दूरी बनाए रखी। राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जाता है कि लालू यादव ने अपने 'पिछड़ावाद' के एजेंडे को चमकाने के लिए दुलारचंद यादव का केवल इस्तेमाल किया।

1995 का चुनावी पदार्पण: यादव समाज ने नकारा

दुलारचंद यादव ने पहली बार 1995 में बाढ़ विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। 40 उम्मीदवारों की भीड़ में दुलारचंद की दाल नहीं गली। 'गोली-बंदूक' की पहचान वाले दुलारचंद को इस चुनाव में महज 105 वोट मिले, जो यह दर्शाता है कि यादवों ने उन्हें अपना नेता मानने से साफ इनकार कर दिया था।

बाढ़ सीट का मुकाबला: लालू के उम्मीदवार की जीत

1995 के इस चुनाव में, बाढ़ सीट पर लालू यादव (जनता दल) ने विजय कृष्ण (राजपूत) को उम्मीदवार बनाया था, जबकि नीतीश कुमार की समता पार्टी से भुवनेश्वर प्रसाद सिंह मैदान में थे। दोनों के बीच कांटे की टक्कर थी। दुलारचंद जैसे बाहुबली की मौजूदगी के बावजूद, अंततः विजय कृष्ण ने भुवनेश्वर प्रसाद सिंह को करीब चार हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की थी।

2010 में दूसरी कोशिश, फिर मिली करारी हार

अपनी पहली हार के 15 साल बाद, दुलारचंद यादव ने 2010 में एक बार फिर चुनावी राजनीति में वापसी की कोशिश की। 60 वर्ष की आयु में उन्होंने बाढ़ विधानसभा सीट से जनता दल सेक्युलर के टिकट पर चुनाव लड़ा। अपनी सामाजिक हैसियत बनाने के बावजूद, उन्हें इस चुनाव में भी बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा और उन्हें सिर्फ 598 वोट मिले। चुनावी जीत न मिलने के बावजूद, दुलारचंद यादव का दबदबा बाढ़-मोकामा के टाल क्षेत्र में कायम रहा।

2019 लोकसभा चुनाव में अनंत सिंह की पत्नी का समर्थन

चुनावी मैदान में लगातार विफल रहने के बावजूद, दुलारचंद यादव राजनीतिक गतिविधियों में शामिल रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान, जब राजद और कांग्रेस में गठबंधन था और बाहुबली अनंत कुमार सिंह राजद में शामिल हो गए थे, तब कांग्रेस ने मुंगेर सीट से अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को प्रत्याशी बनाया था। इस चुनाव में दुलारचंद यादव ने नीतीश कुमार की पार्टी (जदयू) के ललन सिंह के खिलाफ नीलम देवी के लिए जमकर प्रचार किया था।