जदयू हुई दो फाड़ ! एसआईआर की टाइमिंग के विरोध में उतरे नीतीश के सांसद गिरधारी यादव, 'सच नहीं बोल सकते, तो MP क्यों बने '

मतदाता सूची के 'विशेष गहन पुनरीक्षण' पर जदयू में दो राय देखने को मिली है. नीतीश कुमार जहां इसका समर्थन कर रहे हैं वहीं उनके सांसद गिरधारी यादव ने इस पर चुनाव आयोग को आड़े हाथों लिया है.

Girdhari Yadav
Girdhari Yadav - फोटो : news4nation

Girdhari Yadav: बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले राज्य में चल रहे मतदाता सूची के 'विशेष गहन पुनरीक्षण' पर विपक्ष की आपत्तियों के बीच अब जदयू सांसद भी इसkकी टाइमिंग को अव्यवहारिक बता रहे हैं. एसआईआर विवाद में बुधवार को  सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड के एक सांसद ने इस प्रक्रिया की आलोचना और  चुनाव  आयोग को आड़े हाथों लिया.  बिहार के बांका से सांसद गिरधारी यादव ने कहा कि चुनाव आयोग को "कोई व्यावहारिक ज्ञान नहीं" है.  उसे न तो बिहार का इतिहास पता है और न ही भूगोल. मुझे सारे दस्तावेज़ इकट्ठा करने में 10 दिन लग गए. मेरा बेटा अमेरिका में रहता है. वह फॉर्म पर हस्ताक्षर कैसे करेगा. 


संसद के मानसून सत्र के तीसरे दिन बुधवार सुबह संसद के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए गिरिधारी यादव ने कहा, "यह 'विशेष गहन पुनरीक्षण' हम पर ज़बरदस्ती थोपा गया है. उन्होंने कहा कि अगर हम सच नहीं बोल सकते, तो MP क्यों बने हैं? जदयू के एसआईआर के समर्थन करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हम पार्टी के साथ सिर्फ वोट डालने के समय हैं.  जब मैं वोट डालने जाऊंगा तब मेरा पार्टी से नाता है यह मेरा स्वतंत्र विचार है. यह मेरा पार्टी के खिलाफ बयान नहीं है बल्कि यह सच्चाई है कि एसआईआर के लिए छह महीने या उससे ज्यादा ज्यादा समय लेना चाहिए था. उन्होंने कहा कि इस समय मानसून चल रहा है. लोगों के खेती का समय है. ऐसे में एसआईआर करना दिखाता है कि चुनाव आयोग को "कोई व्यावहारिक ज्ञान नहीं" है.


विपक्ष कर रहा विरोध 

 एसआईआर को लेकर विपक्षी दलों की ओर से लगातार विरोध किया जा रहा है. इस मुद्दे पर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने पटना में बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ मिलकर सड़क पर प्रदर्शन किया था. वहीं बिहार विधानसभा के मानसून सत्र में पिछले तीन दिनों से इसी मुद्दे को लेकर हंगामा मचा है. अब विपक्ष के साथ ही जदयू सांसद भी इसे अव्यवहारिक बताने लगे हैं. हालांकि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसका समर्थन कर रहे हैं लेकिन उनके ही सांसद ने अब इसके खिलाफ आवाज बुलंद की है. 


52 लाख वोटरों का कटेगा नाम !

चुनाव आयोग ने कहा है कि यह संशोधन - एक संवैधानिक रूप से अनिवार्य प्रक्रिया है. खासकर उन लोगों का नाम हटाने के लिए ज़रूरी है जिनकी मृत्यु हो गई हो या जो पलायन कर गए हों, या जिनका दो बार पंजीकरण हो चुका हो. मंगलवार को चुनाव आयोग ने कहा कि लगभग 52 लाख प्रविष्टियाँ हटा दी गई हैं. पिछले हफ़्ते चुनाव आयोग ने यह भी कहा था कि काफ़ी संख्या में 'मतदाता' विदेशी देशों से हैं. 


विपक्ष का आरोप 

विपक्ष ने आरोप लगाया है कि भाजपा के आदेश पर चुनाव आयोग की यह प्रक्रिया हाशिए पर पड़े और गरीब समुदायों के मतदाताओं को निशाना बनाती है, जिन्हें वे अपना मतदाता आधार मानते हैं. विपक्ष ने मतदाता सत्यापन के लिए आधार और अपने स्वयं के पहचान पत्र सहित आम तौर पर स्वीकृत और सरकार द्वारा जारी पहचान पत्रों को बाहर करने के चुनाव आयोग के फ़ैसले की भी आलोचना की. वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर है. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने चुनाव आयोग को आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को पहचान पत्र के तौर शामिल करने का सुझाव दिया था.