Bihar Land: जमीन की आस में दर-ब-दर गरीब, 12 से ज्यादा सीओ पर लटकी कार्रवाई की तलवार,अफसरशाही की मनमानी के खुलासे से मचा हड़कंप
Bihar Land:राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की प्रारंभिक जांच में स्पष्ट संकेत मिले हैं कि बड़ी संख्या में अंचलाधिकारी और राजस्व अधिकारियों ने मनमाने ढंग से योग्य परिवारों को अपात्र ठहरा दिया।

Bihar Land: बिहार की ज़मीन से उपजे भरोसे को उस समय ठेस पहुंची, जब गरीबों के लिए आरक्षित ज़मीन पर खुद अफसरों ने ही अनदेखी और मनमानी की पटकथा रच डाली। राज्य सरकार द्वारा प्रारंभ किए गए "अभियान बसेरा-दो" का उद्देश्य भूमिहीन निर्धन परिवारों को जीवन की बुनियादी नींव – एक टुकड़ा ज़मीन – मुहैया कराना था। परंतु अब जो परतें खुल रही हैं, वे एक भीषण प्रशासनिक लापरवाही और संवेदनहीनता की ओर इशारा कर रही हैं।
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की प्रारंभिक जांच में स्पष्ट संकेत मिले हैं कि बड़ी संख्या में अंचलाधिकारी और राजस्व अधिकारियों ने मनमाने ढंग से योग्य परिवारों को अपात्र ठहरा दिया। राज्य सरकार की मंशा थी कि सुयोग्य श्रेणी के भूमिहीन परिवारों को 5 डिसमिल तक आवासीय भूमि प्रदान की जाए, जिससे वे अपने जीवन को स्थायित्व और सम्मान के साथ आगे बढ़ा सकें।
इस अभियान के तहत एक लाख पच्चीस हजार से अधिक परिवारों का सर्वेक्षण कराया गया, जिनमें से मात्र 48 हजार को ही भूमि आवंटित की गई। शेष 52 प्रतिशत परिवारों को बिना ठोस आधार के "भूमि आवंटन हेतु अयोग्य" घोषित कर दिया गया। यह आंकड़ा जैसे ही विभाग के समक्ष आया, संदेह की चिंगारी भभक उठी। क्या यह मात्र लापरवाही है, या फिर गरीबों के हक पर डाका डालने की साज़िश?
विभागीय सचिव जय सिंह ने जब इस स्थिति की समीक्षा हेतु वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपर समाहर्ताओं के साथ संवाद किया, तो ज़मीनी हकीकत और भी गंभीर रूप में सामने आई। कई जिलों के अधिकारियों ने मुसहर जैसे वंचित समुदायों तक को अयोग्य घोषित कर दिया — यह न सिर्फ़ संवैधानिक मूल्यों का अपमान है, बल्कि मानवीय करुणा की हत्या भी।
इस अनियमितता को गंभीरता से लेते हुए विभाग ने जिलों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि गैर-राजस्व संवर्गीय पर्यवेक्षकों की एक स्वतंत्र टीम गठित कर नॉट फिट करार दिए गए आवेदकों की दोबारा जांच की जाए। यह जांच मोबाइल एप आधारित होगी, और उसका ब्यौरा रि-वेरिफाई रिजेक्टेड अप्लीकेंट नामक प्रपत्र में विभाग को सौंपा जाएगा।
जिन जिलों का प्रदर्शन सर्वाधिक निराशाजनक रहा है, उनसे स्पष्टीकरण मांगा जा चुका है। अब तक की रिपोर्टों में स्पष्ट हो चुका है कि कई अंचलों में अफसरों ने नियमों की धज्जियां उड़ाई हैं। यह मामला केवल लापरवाही का नहीं, बल्कि गरीबों के जीवन की संभावना को कुचलने का अपराध है।
विभागीय सचिव का दो टूक संदेश है — "बसेरा-दो में जिन अधिकारियों ने लापरवाही या दुर्भावना से कार्य किया है, उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।"
अब समूचा राज्य इस अंतिम रिपोर्ट की प्रतीक्षा कर रहा है — क्या अफसरशाही की दीवारों के पीछे दबे इन घोटालों को उजागर कर दोषियों को सज़ा मिलेगी? क्या मुसहर और अन्य वंचित वर्गों को अपने नाम की ज़मीन मिल पाएगी? बिहार की धरती आज इसी सवाल के उत्तर की बाट जोह रही है — धरती के बेटों को उनकी ही धरती कब लौटाई जाएगी?