मुकेश सहनी की भाजपा में होगी 'घर वापसी'! तेजस्वी की नैया डुबाएंगे 'सन ऑफ मल्लाह'? ये हुई डील
भाजपा के साथ ‘सन ऑफ मल्लाह’ की री-एंट्री की चर्चा बिहार की सियासी हवाओ में तेज है. इसका बड़ा कारण निषादों के लिए सहनी की एक मांग को भाजपा का मानना माना जा रहा है.

Mukesh Sahani: बिहार की राजनीति में 'सन ऑफ मल्लाह' के नाम से मशहूर वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी एक बार फिर सुर्खियों में हैं। सूत्रों की मानें तो सहनी भाजपा में वापसी की तैयारी में हैं और दिल्ली में पार्टी के शीर्ष नेताओं से उनकी हाल ही में महत्वपूर्ण मुलाकात हुई है। चर्चा यह भी है कि निषाद समुदाय को आरक्षण देने पर केंद्र सरकार ने सहमति जताई है और इसी मुद्दे को आधार बनाकर सहनी फिर से भाजपा के पाले में लौट सकते हैं। 2023 की जाति जनगणना के अनुसार, बिहार में मल्लाह (निषाद) जाति की जनसंख्या 34,10,093 है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 2.6086% है. सहनी की ओर से 60 विधानसभा सीटों की तेजस्वी से मांग की चर्चा भी तेज है. इन सबके बीच उनके और भाजपा की नजदीकियों की अटकलबाजियां जारी है.
महागठबंधन से मोहभंग?
मुकेश सहनी ने 2024 लोकसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में वापसी की थी और राजद नेता तेजस्वी यादव के साथ उनकी नजदीकी भी खूब चर्चा में रही। चुनाव प्रचार के दौरान दोनों नेताओं की जोड़ी ने प्रमुखता पाई और अन्य सहयोगी दलों की तुलना में काफी ज्यादा दृश्यता हासिल की। सहनी को महागठबंधन का मजबूत साझेदार माना जाने लगा था। लेकिन हाल के महीनों में उनके बयानों और गतिविधियों से यह संकेत मिलने लगे हैं कि वह एक बार फिर राजनीतिक पलटी मारने की तैयारी में हैं। हाल ही में सहनी ने खुद को उपमुख्यमंत्री और तेजस्वी को मुख्यमंत्री बताकर एक नया राजनीतिक विमर्श छेड़ने की कोशिश की। महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, माले, सीपीआई और सीपीएम जैसे दलों की मौजूदगी के बावजूद सहनी का इस तरह का दावा न सिर्फ महागठबंधन के अन्य घटक दलों के नेताओं को अटपटा लगा था, बल्कि इससे उनके महत्वाकांक्षा‑पूर्ण इरादे भी उजागर हुए।
आरक्षण का मुद्दा या राजनीतिक मंच की तलाश?
सहनी अब यह कहते सुने जा रहे हैं कि उनका संघर्ष सत्ता या पद के लिए नहीं, बल्कि निषाद समुदाय को आरक्षण दिलाने के लिए है। हालांकि यह मांग केंद्र सरकार के दायरे में आती है, न कि राज्य सरकार के। जानकारों का मानना है कि यह रुख महज एक राजनीतिक बहाना है ताकि भाजपा में वापसी को 'जनहित' से जोड़ा जा सके।
भाजपा-सहनी डील की चर्चा तेज
सूत्रों के अनुसार, दिल्ली में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता से सहनी की गुप्त बैठक हुई है। बताया जा रहा है कि निषाद समुदाय को आरक्षण देने पर केंद्र सरकार की मौखिक सहमति मिल चुकी है। ऐसे में यह अटकलें तेज हो गई हैं कि सहनी जल्द ही भाजपा में शामिल हो सकते हैं।
अतीत में भी किया है पाला बदल
मुकेश सहनी का राजनीतिक सफर पलटियों से भरा रहा है। 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने महागठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए में शामिल होने का फैसला लिया था। उन्हें 11 सीटें मिली थीं, जिनमें से चार पर जीत मिली। हालांकि दो साल के भीतर ही भाजपा ने मंत्री पद, सरकारी आवास और विधान परिषद की सदस्यता सहित तमाम राजनीतिक रसूख उनसे छीन लिया। इसके बाद उन्होंने फिर महागठबंधन का रुख किया। उससे पहले मुकेश के तीन विधायक मिश्रीलाल यादव,स्वर्णा सिंह और राजू सिंह भाजपा की गोद में बैठ गये थे। इन तीनों का भाजपा से पुराना नाता था। भाजपा के निर्देश पर ही तीनों ने वीआइपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। और उसी के निर्देश पर भाजपा में लौट गये। इसके पहले इनके चौथे विधायक मुसाफिर पासवान के निधन के कारण बोचहा की सीट पर हुए उपचुनाव में राजद के टिकट पर मुसाफिर पासवान के पुत्र अमर पासवान विधायक चुने गये। मुकेश सहनी विधान परिषद की जिस सीट से विधान पार्षद चुने गये थे,उसका कार्यकाल जुलाई 2022 में खत्म होना था। भाजपा ने उन्हें दुबारे परिषद में नहीं भेजा। एक तरह से भाजपा ने मुकेश सहनी को पैदल कर दिया।
पीठ में खंजर घोंपा गया
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान मुकेश सहनी ने एक चौंकाने वाला कदम उठाते हुए महागठबंधन की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस से अचानक वॉकआउट कर लिया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके साथ धोखा हुआ है और उनकी "पीठ में खंजर घोंपा गया है"। इसके तुरंत बाद उन्होंने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया और एनडीए का दामन थाम लिया। एनडीए ने उन्हें 11 सीटें दीं, जिनमें से उनकी पार्टी ने 4 पर जीत हासिल की। जबकि महागठबंधन की ओर से दावा किया गया था कि उन्हें 15 सीटों का प्रस्ताव दिया गया था।
महागठबंधन को होगा बड़ा झटका
अगर भाजपा और सहनी के बीच डील पक्की होती है, तो यह महागठबंधन के लिए एक बड़ा झटका होगा। लेकिन यह पहली बार नहीं होगा जब सहनी ने पाला बदला हो। सवाल अब यह है कि इस बार उन्हें भाजपा में टिकने का कितना मौका मिलेगा, और क्या निषाद समुदाय के आरक्षण के वादे पर उन्हें जनसमर्थन दोबारा हासिल हो पाएगा?