नीतीश सरकार ने सुलझाया सोन नदी का जल विवाद, अब बिहार को मिलेगा झारखंड से तीन गुना ज्यादा पानी, इन जिलों को बड़ा फायदा
1973 में हुए सोन नदी जल बंटवारे में बिहार को सोन नदी का 7.75, एमपी को 5.25 और यूपी को 1.35 मिलियन एकड़ फीट पानी मिलना तय हुआ था. अब इसमें झारखंड को भी बिहार से हिस्सा देने पर सहमति बनी है.

Bihar News: ढाई दशक से चल रहा बिहार और झारखंड के बीच सोन नदी का जल विवाद अब सुलझ गया है. इसके साथ ही बिहार को झारखंड के मुकाबले तीन गुना ज्यादा पानी मिलने पर सहमति बनी है. इससे बिहार के शाहाबाद और भोजपुर के कई जिलों को बड़ा फायदा होगा. सोन नदी जल विवाद का यह मामला इसी सप्ताह रांची में हुए पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में सुलझा जिसमें बिहार की ओर से उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी शामिल रहे. गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई बैठक झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी शामिल रहे.
दरअसल, बिहार एवं झारखंड के बीच सोन नदी के पानी के बंटवारे को लेकर चला आ रहा विवाद बिहार के बंटवारे और झारखंड के गठन के समय से ही चला आ रहा था. इसके पहले बिहार सरकार 1973 के समझौते के आधार पर 7.75 मिलियन एकड़ फीट पानी अपने पास रखने पर अड़ी हुई थी। वहीं, झारखंड इसका आधा हिस्सा मांग रहा था. पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में दोनों राज्यों का हिस्सा सुनिश्चित किया गया, जिस पर बिहार और झारखंड की सरकार ने सहमति जताई. समझौते के तहत सोन नदी के कुल 7.75 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी में से 5.75 एमएएफ बिहार को और 2.00 एमएएफ पानी झारखंड को दिया जाएगा.
सोन नदी के पानी के बंटवारे के लिए बाणसागर परियोजना बनी थी. इसके तहत मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार इन तीन राज्यों के बीच 1973 में समझौता हुआ था. उस समय झारखंड अलग राज्य नहीं था, वह बिहार का ही हिस्सा था. उस समय समझौते के अनुसार बिहार को सोन नदी का 7.75, एमपी को 5.25 और यूपी को 1.35 मिलियन एकड़ फीट पानी मिलना तय हुआ था. लेकिन वर्ष 2000 में जब झारखंड अलग राज्य बना, तब से झारखंड ने इस पानी में अपनी हिस्सेदारी की मांग शुरू की. झारखंड गठन के ढाई दशक बाद अब सोन नदी से झारखंड को 2.00 एमएएफ पानी देने पर सहमति बनी है.
सोन नदी जल विवाद सुलझने से अब दोनों राज्यों में जल प्रबंधन और सिंचाई योजनाएं अधिक सुव्यवस्थित होंगी. बिहार में औरंगाबाद, सासाराम, बक्सर, आरा जैसे जिलों में सिंचाई परियोजनाओं को बेहतर तरीके से व्यवस्थित करने में इससे बड़ा लाभ मिलेगा. वहीं दोनों राज्यों के बीच जल विवाद भी नहीं रह जाएगा.