Patna highcourt - पटना हाईकोर्ट ने अपना ही फैसला बदला, दो न्यायाधीशों को फिर से ट्रेनिंग पर भेजने के सिंगल बेंच के आदेश पर लगाई रोक

Patna highcourt - पटना हाईकोर्ट ने अपने ही दिये फैसले को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने पूर्व दो जजो को फिर से ट्रेनिंग पर जाने का निर्देश दिया था, जिस पर अब दो जजो की पीठ ने रोक लगा दी है।

Patna highcourt - पटना हाईकोर्ट ने अपना ही फैसला बदला, दो न्

Patna  - पटना हाईकोर्ट ने राज्य के दो न्यायिक अधिकारियों को बड़ी राहत दी है।कोर्ट ने दोनों न्यायिक अधिकारी के खिलाफ की गई टिप्पणी और उनके खिलाफ जारी आदेश को निरस्त कर दिया। एक्टिंग चीफ जस्टिस  आशुतोष कुमार और जस्टिस पार्थ सारथी की खंडपीठ ने पटना हाई कोर्ट की ओर से दायर अर्जी पर सुनवाई के बाद सिंगल बेंच  के उस आदेश को रद्द कर दिया,जिसमें न्यायिक अधिकारी के खिलाफ आदेश दिया गया था।

पहला मामला किशनगंज से सम्बंधित था।एससी/एसटी कोर्ट के विशेष न्यायाधीश,कुमार गुंजन के बारे में हाई कोर्ट ने कहा कि इन्हें आपराधिक कानून के मूल सिद्धांतों को नहीं जानते हैं और उन्हें किशनगंज के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने का कोई अधिकार नहीं है। 

कोर्ट ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की सत्र शक्ति पर प्रतिबंध लगाते हुये कहा कि  केवल सिविल मामलों और अपीलों का निपटारा करने के लिए इन्हें  लगाया जाना चाहिए। यही नहीं, कोर्ट ने अगले छह महीनों तक न्यायिक कार्यों के बारे में जांच करने का आदेश हाई कोर्ट प्रशासन को दिया। कोर्ट ने हाई कोर्ट महानिबंधक को इस आदेश के आलोक में कार्रवाई करने का आदेश दिया।

दूसरा मामला रोहतास जिला के सुन्देश्वर कुमार दास की ओर से दायर अर्जी से सम्बंधित हैं।इस केस में पुलिस ने अभियुक्त को गिरफ़्तार कर अतिरिक्त जिला जज- 17 के समक्ष पेश किया। कोर्ट ने अभियुक्त को न्यायिक हिरासत में लेने से इंकार करते हुए उसे छोड़ दिया।कोर्ट ने कहा कि किसी भी मजिस्ट्रेट या विशेष न्यायाधीश का प्राथमिक कर्तव्य यह है कि अभियुक्त को हिरासत में लेना है। 

इसके बाद, यदि जमानती अपराध से संबंधित है, तो उसे जमानत देने की स्वतंत्रता है। और यदि गैर-जमानती अपराध से संबंधित है, तो उसे ज्यूडिशियल कस्टडी में लेते हुए रिमांड किया जाएगा, जब तक कि अभियुक्त की ओर से जमानत के लिए कोई जमानत अर्जी दायर नहीं की गई हो। यदि जमानत अर्जी दायर की जाती है, तो जज का यह कर्तव्य है कि वह कानून के अनुसार जमानत अर्जी का निपटारा करे और आवश्यक आदेश पारित करे। लेकिन इस केस में, अभियुक्त को हिरासत में नहीं लिया गया,जबकि  गैर-जमानती अपराध में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

कोर्ट ने कहा कि अतिरिक्त जिला न्यायाधीश 17 को दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय XI और अध्याय XXXIII के बारे में जानकारी नहीं है।कोर्ट ने इन्हें पुलिस द्वारा जांच के प्रावधानों, जांच के दौरान मजिस्ट्रेट/विशेष न्यायाधीशों की शक्ति और जमानत से संबंधित प्रावधानों के संबंध में बिहार न्यायिक अकादमी में प्रशिक्षण लेने का आदेश दिया।

कोर्ट ने जांच अधिकारी को कानूनी के प्रावधानों के तहत एक बार फिर अभियुक्त को एससी/ एसटी कोर्ट के विशेष न्यायाधीश के समक्ष पेश करने का आदेश दिया। वहीं स्पेशल जज को कानूनी के प्रावधानों का सख्ती से पालन करते हुए आदेश पारित करने का आदेश दिया।