Patna High Court: पटना हाई कोर्ट का BPSC के लापरवाही पर चला डंडा! कहा- 8 हफ्ते के भीतर इस शख्स को दे नियुक्ति पत्र और 20 लाख का भरे जुर्माना, जानें क्या है मांजरा
पटना हाई कोर्ट ने BPSC की तरफ से फाइन आर्ट्स विषय में नियुक्ति में अनियमितता पाए जाने पर दृष्टिहीन अभ्यर्थी दुर्गेश कुमार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 20 लाख मुआवजा और नियुक्ति का आदेश दिया।

Patna High Court: पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण संवैधानिक निर्णय में बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की नियुक्ति प्रक्रिया में गंभीर खामियों को उजागर किया है। फाइन आर्ट्स एवं क्राफ्ट्स के अंतर्गत वोकल म्यूजिक विषय के व्याख्याता पद पर नियुक्ति के मामले में दृष्टिहीन अभ्यर्थी दुर्गेश कुमार को गलत तरीके से वंचित किया गया था, जबकि चयनित उम्मीदवार का विकलांगता प्रमाणपत्र आवेदन की अंतिम तिथि तक वैध नहीं था।
न्यायमूर्ति पूर्णेन्दु सिंह की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि आवेदन की अंतिम तिथि 22 जून 2016 तक सभी शैक्षणिक और मेडिकल दस्तावेज वैध होने चाहिए, अन्यथा आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता।" चयनित अभ्यर्थी के पास उस तिथि तक सिर्फ अस्थायी और अमान्य प्रमाणपत्र था, जबकि याचिकाकर्ता दुर्गेश कुमार के पास वैध स्थायी विकलांगता प्रमाणपत्र था।
सुप्रीम कोर्ट की मिसाल
अदालत ने यह भी जोड़ा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही यह स्पष्ट कर चुका है कि जब तक नियम या विज्ञापन विशेष छूट की अनुमति नहीं देते, किसी भी मानक से विचलन संभव नहीं है।"BPSC को आठ सप्ताह के भीतर दुर्गेश कुमार को वोकल म्यूजिक व्याख्याता पद की नियुक्ति देनी होगी।नियुक्ति 21 जुलाई 2020 से प्रभावी मानी जाएगी। दुर्गेश कुमार को उस तिथि से वेतन, सेवा अवधि, और अन्य सरकारी लाभ मिलेंगे।BPSC को 20 लाख रुपये मुआवजा और 20 हजार रुपये याचिका व्यय का भुगतान करना होगा।
अदालत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि दृष्टिहीन अभ्यर्थी को चार वर्षों तक मानसिक, सामाजिक और पेशेवर पीड़ा सहनी पड़ी, जिसकी भरपाई केवल क्षतिपूर्ति से ही संभव है। इसको लेकर बीपीएससी अध्यक्ष को निर्देश दिया गया और बताया गया किदोषी अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।उन्हें व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जाए।अदालत ने स्पष्ट किया कि विकलांगता आधारित आरक्षण महज एक कोटा प्रणाली नहीं है, बल्कि यह संविधान द्वारा प्रदत्त गरिमा, समान अवसर और सम्मानजनक जीवन का अधिकार है।