Sanjeev Hans bail: PMLA केस में निलंबित IAS संजीव हंस को पटना हाई कोर्ट से जमानत, अदालत ने कहा — 'ED की जांच में सबूत की कमी'

Sanjeev Hans bail: पटना उच्च न्यायालय ने निलंबित IAS अधिकारी संजीव हंस को पीएमएलए मामले में जमानत दी, कोर्ट ने ईडी की जांच को अधिकार क्षेत्र और साक्ष्य की कमी वाला बताया।

Sanjeev Hans bail
निलंबित IAS अधिकारी संजीव हंस को राहत- फोटो : social media

Sanjeev Hans bail: बिहार के वरिष्ठ निलंबित IAS अधिकारी श्री संजीव हंस को पटना उच्च न्यायालय ने गुरुवार (16 अक्टूबर 2025) को जमानत प्रदान की। यह जमानत स्पेशल ट्रायल (PMLA) वाद संख्या 10/2024 (ECIR No. PTZO/04/2024) में दी गई, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने संजीव हंस पर मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया था। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों और उपलब्ध साक्ष्यों पर विस्तृत विचार करते हुए पाया कि ईडी की जांच में गंभीर कानूनी और साक्ष्यगत कमियां हैं और इस स्थिति में उनकी निरंतर हिरासत न्यायसंगत नहीं है।

कोर्ट ने कहा प्रेडिकेट केस रद्द, साक्ष्य अधूरे और कमजोर

माननीय पटना उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया कि जिस प्रेडिकेट एफआईआर (रूपसपुर थाना कांड संख्या 18/2023) के आधार पर यह ईसीआईआर दर्ज हुआ था, उसे खुद हाई कोर्ट ने 6 अगस्त 2024 को रद्द कर दिया था।

ईडी ने बाद में एक विजिलेंस एफआईआर को आधार बनाकर नया ऐडेंडम जोड़ा, लेकिन अदालत ने कहा कि वह केस भी अभी प्रारंभिक जांच के चरण में है।न्यायालय ने टिप्पणी की कि अभिलेख पर ऐसा कोई स्वतंत्र या ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं है, जिससे यह सिद्ध हो सके कि याचिकाकर्ता ने किसी अपराध से अर्जित धन का स्वामित्व, उपयोग या लेन-देन किया हो।”

व्हाट्सएप चैट और बयान पर्याप्त नहीं- कोर्ट की सख्त टिप्पणी

अदालत ने ईडी की तरफ से पेश सबूतों पर सवाल उठाते हुए कहा कि जांच मुख्य रूप से धारा 50 पीएमएलए के तहत दर्ज बयानों और कुछ व्हाट्सएप चैट्स पर आधारित थी, लेकिन ऐसे असत्यापित और असमर्थित साक्ष्य किसी व्यक्ति को लंबे समय तक हिरासत में रखने के लिए पर्याप्त आधार नहीं बन सकते।कोर्ट ने कहा कि संजीव हंस का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और उन्होंने जांच एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग किया है। इसके साथ ही उन्होंने धारा 45 पीएमएलए के तहत जमानत के दोनों आवश्यक मानदंड पूरे किए हैं।

निरंतर हिरासत अनुचित, मुकदमा प्रारंभिक अवस्था में

माननीय न्यायालय ने कहा कि यह मामला अभी प्रारंभिक अवस्था में है, जिसमें बहुत अधिक दस्तावेज़ और सामग्री सम्मिलित हैं।ऐसे में अभियुक्त की निरंतर हिरासत का कोई कानूनी उद्देश्य नहीं बनता। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस चरण पर यह प्रतीत नहीं होता कि याचिकाकर्ता ने कोई ऐसा अपराध किया है जो उन्हें निरंतर हिरासत में रखने का औचित्य सिद्ध करे। इस आधार पर अदालत ने उन्हें उचित शर्तों पर रिहाई का आदेश दिया।

न्यायपालिका ने स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा की

अपने आदेश में न्यायालय ने यह भी कहा कि बिना ठोस कानूनी आधार के किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं छीनी जा सकती।अदालत ने माना कि न तो कोई वैध प्रेडिकेट ऑफेंस मौजूद है, न कोई वित्तीय ट्रेल, और न ही ऐसा साक्ष्य जो संजीव हंस को कथित अपराध से जोड़ सके। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह फैसला पीएमएलए कानून के अंतर्गत जमानत से इंकार करने की कठोर शर्तों पर पुनर्विचार की दिशा में एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है।

सच्चाई सामने आएगी संजीव हंस का बयान

जमानत मिलने के बाद संजीव हंस ने कहा कि वे न्यायिक प्रक्रिया में पूरा विश्वास रखते हैं और जैसे-जैसे मुकदमे की सुनवाई आगे बढ़ेगी, सच्चाई सामने आ जाएगी। मैंने हमेशा कानून का सम्मान किया है। मुझे पूरा भरोसा है कि तथ्यों के आधार पर मेरी निर्दोषता साबित होगी। उनके करीबियों ने कहा कि यह फैसला न केवल संजीव हंस के लिए राहत है बल्कि न्यायपालिका में विश्वास को मजबूत करने वाला आदेश है।