Flood in Bihar:गंगा का रौद्र रूप देख कांपे लोग, सोन-पुनपुन भी उफान पर, पटना में बाढ़ की आशंका गहराई

Flood in Bihar: बिहार की राजधानी पटना इन दिनों प्रकृति के एक और भीषण संकेत के साए में साँसें ले रही है। सावन की बरसातों से उमड़ती-घुमड़ती गंगा अब मर्यादा की सीमाओं को लांघने की तैयारी में है।

Flood in Bihar
गंगा की गर्जना- फोटो : social Media

Flood in Bihar: बिहार की राजधानी पटना इन दिनों प्रकृति के एक और भीषण संकेत के साए में साँसें ले रही है। सावन की बरसातों से उमड़ती-घुमड़ती गंगा अब मर्यादा की सीमाओं को लांघने की तैयारी में है। पटना की पावन धरा पर गंगा की मुद्रा ज्यों-ज्यों उठती है, बुद्धिजीवियों के मन में पुराणों की लीलाओं का स्मरण होता है—विस्तार, विभोरता, और अनियंत्रित उफान। पर आज यह गर्जना अभिशाप के स्वर में है, क्योंकि गांधी घाट पर गंगा का जलस्तर बुधवार को 48.14 मीटर तक चढ़ गया—जो कि खतरे के निशान 48.60 मीटर से केवल 46 सेंटीमीटर नीचे है। मानो माँ गंगा संतुलन की वैभवगतियों में लिपटी खड़ी है, किसी अंतिम उत्क्षोभ की तैयारी में।

हाथीदह घाट की कथा कुछ कम नहीं। वहाँ 41.05 मीटर का जलस्तर है, जब कि खतरे का मापदंड 41.76 मीटर—अन्यथा केवल 71 सेंटीमीटर की दूरी शेष है उस महाभय से जो लोक की भावनाएँ थर्रा देता है। दीघा घाट पर भी नदी मूसलाधार इरादों से उफान पर है—यहाँ जलस्तर बुधवार दोपहर में 49.32 मीटर था, जबकि कमी मात्र 1.13 मीटर की।

रात्रि की चुप्पियों में पुनपुन के गीत और सोन की गूँज भी तेज होती जा रही है। पुनपुन नदी श्रीपालपुर में 47.68 मीटर तक पहुँच चुकी है, जब कि यहां का खतरा 50.60 मीटर—तीन मीटर से भी कम दूरी पर परमप्रलय का संकेत। और सोन! कोइलवर में लगभग चार मीटर नीचे से भारी दबाव से ऊपर उठ रही है—जो आने वाले कल के लिए चेतावनी है।

इन सभी अलार्मों की बारीकी से निगरानी करते हुए जिला प्रशासन ने तत्काल अपने तमाम बजट और तैयारियों को सजग कर दिया है। सभी अंचलाधिकारी और बीडीओ—जिनकी निगाहें अब गंगा-घाटों पर टिकी हैं—उन्हें ‘संदेश’ दिया गया है कि वे दियारा इलाकों की नब्ज़ पकड़ें। यदि पानी ने किनारे पार कर लिए तो इनकी तत्परता विकसित होनी चाहिए जो “तुरंत बचाव” से भरपूर हो।

आपदा प्रबंधन विभाग ने भी एनडीआरएफ और एसडीआरएफ को अलर्ट कर दिया है—मानो किसी प्रलय-नाटक की आहट हो। इंतज़ार है उस पल का, जब गंगा निर्णय ले—दो हथेलियाँ बिछाकर किनारे को गले लगे, या फिर चुवायें अपनी भयावह उछाल से भूमि को।पटना के दिल में आज यही मौन प्रश्न घूम रहा है: क्या यह जल-घेरा आखिरकार नदी प्रेम का रूपलावण बनेगा, या एक विभीषिका?