Bihar Politics: प्रियंका गांधी से मिले प्रशांत किशोर, गुफ़्तगू से बदलेगा विपक्षी राजनीति का नक़्शा? 10 जनपथ की खामोश मुलाक़ात के बाद बिहार का सियासी पारा हुआ गर्म
Bihar Politics: बिहार की सियासत से उठी एक मुलाक़ात की खबर ने दिल्ली के सियासी गलियारों में हलचल तेज़ कर दी है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा और जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर की दिल्ली में हुई कथित मुलाक़ात से राजनीतिक बाज़ार गर्म है
Bihar Politics: बिहार की सियासत से उठी एक मुलाक़ात की खबर ने दिल्ली के सियासी गलियारों में हलचल तेज़ कर दी है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा और जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर की दिल्ली में हुई कथित मुलाक़ात को लेकर चर्चाओं का बाज़ार गर्म है। बताया जा रहा है कि यह मुलाक़ात पिछले हफ्ते सोनिया गांधी के 10, जनपथ आवास पर हुई ऐसे वक़्त में, जब बिहार चुनाव में कांग्रेस और जन सुराज, दोनों को ही भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी जद(यू) से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है।
इस मुलाक़ात की सबसे दिलचस्प बात यही है कि दोनों पक्ष सियासी अदब के साथ ख़ामोशी ओढ़े हुए हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा ने सवाल पूछे जाने पर तल्ख़ लहजे में कहा कि उन्हें किससे मिलना है या नहीं मिलना है, इसमें किसी को दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए। उधर, पीके ने कांग्रेस नेता से किसी भी मुलाक़ात से साफ़ इनकार कर दिया। मगर सियासत में इनकार अक्सर इशारों की ज़ुबान बोलता है।
सूत्रों के मुताबिक, लगातार मिल रही चुनावी हार ने विपक्षी खेमे को आत्ममंथन के लिए मजबूर कर दिया है। 2026 में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और असम, 2027 में उत्तर प्रदेश और अंततः 2029 के लोकसभा चुनाव जहां भाजपा ऐतिहासिक चौथी जीत की तैयारी में है इन सबने रणनीतिक पुनर्संयोजन को ज़रूरी बना दिया है। बिहार के नतीजे इसकी मिसाल हैं। जन सुराज ने 238 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन खाता तक नहीं खोल पाया, जबकि कांग्रेस 61 में से सिर्फ़ छह सीटों पर सिमट गई।
प्रशांत किशोर और कांग्रेस का रिश्ता नया नहीं है। 2017 में पंजाब की जीत और उसी साल उत्तर प्रदेश की हार दोनों ही पीके की रणनीति के साथ जुड़े रहे। यूपी में कांग्रेस नेताओं ने उन पर ज़रूरत से ज़्यादा दख़ल का इल्ज़ाम लगाया, तो पीके ने भी कांग्रेस की संगठनात्मक संस्कृति और फ़ैसला लेने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए। बाद में, वह कांग्रेस में शामिल होने के क़रीब भी पहुंचे, मगर बात बन नहीं सकी।
आज हालात फिर करवट ले रहे हैं। सवाल यही है क्या 10 जनपथ की यह कथित मुलाक़ात महज़ इत्तेफ़ाक़ है या विपक्षी राजनीति में किसी नए सियासी इत्तिहाद की बुनियाद? फ़िलहाल जवाब सन्नाटे में छिपा है, लेकिन इतना तय है कि यह ख़ामोशी आने वाले दिनों में किसी बड़े एलान की आहट भी हो सकती है।