Bihar Election 2025 : बिहार चुनाव के फर्स्ट फेज में वोटिंग का बना रिकॉर्ड, जानिए किसकी डूबेगी नैय्या किसका होगा बेड़ा पार, राजनीतिक दलों की बढ़ी बेचैनी

Bihar Election 2025 : बिहार के चुनावी इतिहास में रिकॉर्ड मतदान फर्स्ट फेज में हुआ है. जानिए अधिक मतदान होने के क्या है मायने. किसकी डूबेगी नैया किसी होगा बेड़ा पार......पढ़िए आगे

Bihar Election 2025 : बिहार चुनाव के फर्स्ट फेज में वोटिंग क
रिकॉर्ड वोटिंग के मायने - फोटो : SOCIAL MEDIA

PATNA : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में वोटिंग के सारे पुराने रिकॉर्ड टूटते दिख रहे हैं। शाम 6 बजे तक ही 64.46 फीसदी से ज़्यादा मतदान दर्ज किया जा चुका है, जबकि कई बूथों के आंकडें नहीं पाए है। यदि आखिरी घंटों में और वोटिंग और होती है, तो कुल मतदान प्रतिशत 67% के पार चला जाएगा। अगर ऐसा होता है, तो यह बिहार के इतिहास में पहली बार होगा कि किसी विधानसभा चुनाव में इतने ज़्यादा वोट पड़े हों, जो पिछले सात दशकों की पूरी वोटिंग ट्रेंड लाइन को ऊपर उठा देगा।

पुराने रिकॉर्ड और आज की स्थिति

राज्य में अब तक सबसे अधिक वोटिंग साल 2000 में हुई थी, जब 62.6% लोगों ने वोट डाले थे। तब राज्य राजनीतिक अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा था और राष्ट्रपति शासन लागू था। वर्तमान में, नीतीश कुमार के दो दशक की सत्ता के बाद, बिहार फिर लोकतंत्र के इस उत्सव में उमड़ा है। 2020 में 56.9% मतदान हुआ था, लेकिन इस बार का रिकॉर्ड तोड़ आंकड़ा यह सवाल खड़ा करता है कि यह पैटर्न कहता क्या है? वर्ष 2025 में मतदान 67 % (अनुमानित) है, जो रिकॉर्ड है। 2000 में 62.6% (सर्वाधिक) मतदान हुआ तब राजद सबसे बड़ी पार्टी बनी थी और राबड़ी देवी  मुख्यमंत्री बनायीं गयी थी। 2020 में 56.9% मतदान हुए तब एनडीए की वापसी हुई थी। 2005 में 46.5% मतदान हुए  (ऐतिहासिक गिरावट) तब सत्ता परिवर्तन हुआ और जेडीयू-बीजेपी (नीतीश कुमार) की एंट्री हुई।

भारी वोटिंग के मायने: नैय्या डुबोएगी या पार लगाएगी?

बिहार की राजनीति में कांटे का मुकाबला होने के कारण, मतदान प्रतिशत में छोटा सा इजाफा भी नतीजों को पलट सकता है। एक पुराना राजनीतिक मिथक यह था कि मतदान प्रतिशत बढ़ने पर सरकार के लिए मुश्किल होती है, लेकिन यह पैटर्न अब पूरी तरह बदल गया है। आंकड़ों के अनुसार बढ़े हुए मतदान वाले 11 चुनावों में से पाँच बार सत्तारूढ़ दल की सरकार में वापसी हुई है। घटे हुए मतदान वाले तीन बार में से दो बार सत्ता पलट गई (जैसे 2005 में)।इससे स्पष्ट है कि बिहार में वोटिंग का बढ़ना या घटना सीधे तौर पर यह इशारा नहीं करता कि लोग गुस्से में वोट कर रहे हैं या समर्थन में। यह रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग किसकी नैय्या डुबोएगी या पार लगाएगी, इसका फैसला जातिगत समीकरण और मतदाता की नई सोच पर निर्भर करेगा।

वोटिंग पैटर्न में बदलाव और टर्निंग पॉइंट

बिहार में 1951 से लेकर 1960 के दशक तक वोटर भागीदारी बेहद कम (40-45%) थी, जो 2000 में 62% तक पहुँच गई। लेकिन 2005 में 46.5% पर आई ऐतिहासिक गिरावट के बाद बिहार की राजनीति का चेहरा पूरी तरह बदल गया और सुशासन बाबू के युग की शुरुआत हुई। 2010 का चुनाव एक टर्निंग पॉइंट था, जब प्रशासन की सक्रियता, सड़कों के बनने और सुरक्षित माहौल के कारण वोटिंग औसत एक झटके में 5% तक बढ़ गया। इस दौरान महिलाओं की भागीदारी अचानक बढ़ी और उन्होंने लगातार पुरुषों से ज़्यादा वोटिंग की।

2025 की स्थिरता तोड़ने वाली वोटिंग

पिछले 15 सालों (2010-2020) में मतदाता भागीदारी लगभग एक समान रही थी, लेकिन 2025 का चुनाव इस स्थिरता को तोड़ता दिख रहा है। भारी संख्या में मतदाताओं का बूथों तक पहुँचना न सिर्फ एक नया रिकॉर्ड बनाएगा, बल्कि यह भी स्थापित करेगा कि सुरक्षित माहौल और बेहतर पहुँच के कारण लोकतंत्र के प्रति लोगों का उत्साह बढ़ा है। यह रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग इस बात का संकेत है कि बिहार का मतदाता अब अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए पहले से कहीं अधिक जागरूक और तत्पर है।