विजय कृष्ण की करिश्माई सियासत ! पहले लालू के खिलाफ नीतीश को किया खड़ा, कुर्मियों का बनाया नेता, फिर लोकसभा चुनाव में दी शिकस्त, अब राजद को कहा अलविदा...

विजय कृष्ण को करिश्माई सियासतदान के रूप में जाना जाता है जिन्होंने लालू के खिलाफ नीतीश कुमार खड़ा किया. उन्हें कुर्मी जाति का नेता बनाया और फिर नीतीश कुमार को लोकसभा चुनाव हराया.

Vijay Krishna/Nitish Kumar
Vijay Krishna/Nitish Kumar - फोटो : news4nation

Vijay Krishna : पटना के गांधी मैदान में 12 फरवरी 1994 को कुर्मी चेतना रैली बुलाई गई थी. तब कुर्मी समाज के लोग ट्रेन, बसों में भर भरकर पूरे बिहार (तब झारखंड अलग नहीं हुआ था) से पटना पहुंचे थे और इस रैली में शिरकत किया था. इस रैली ने नीतीश कुमार को ऐसा स्थापित किया कि वो 20 साल से बिहार के मुख्यमंत्री हैं.  कुर्मी चेतना रैली से नीतीश कुमार अपनी जाति के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे. इतना ही नहीं लालू यादव के खिलाफ हुंकार भरने वाले सबसे बड़े चेहरे के रूप में तब नीतीश कुमार स्थापित हुए थे. लेकिन नीतीश कुमार को लालू यादव के खिलाफ खड़ा करने और कुर्मी चेतना रैली के मंच तक पहुँचाने जिस नेता की सबसे बड़ी अहम भूमिका रही थी वह विजय कृष्ण थे.


विजय कृष्ण ने बुधवार को राजद से इस्तीफा दे दिया. विजय कृष्ण को करिश्माई सियासतदान के रूप में जाना जाता है जिन्होंने लालू के खिलाफ नीतीश कुमार खड़ा किया. उन्हें कुर्मी जाति का नेता बनाया और फिर नीतीश कुमार को लोकसभा चुनाव हराया. विजय कृष्ण हत्या के मामले में जेल भी गए, और अब उन्होंने राजद से इस्तीफा देकर सबको हैरान कर दिया है. 


विजय कृष्ण के घर पर थे नीतीश

पत्रकार संकर्षण ठाकुर अपनी किताब ' द ब्रदर्स बिहारी ' में इस रैली के बारे में विस्तार से लिखा है. कुर्मी चेतना रैली को लेकर लालू ने नीतीश को एक संदेश भिजवाया था कि यदि वह रैली में गए, तो उनके इस कृत्य को एक विद्रोह समझा जाएगा. लालू का तर्क था कि वह रैली उनकी सरकार के विरुद्ध एक षड्यंत्र है. हालांकि रैली वाले दिन नीतीश कुमार गांधी मैदान से कुछ ही दूरी पर विजय कृष्ण के छज्जू बाग स्थित मंत्री आवास में सुबह सुबह पहुंच गए.


दरअसल, विजय कृष्ण की लालू के साथ कुछ दिन पहले ही नोक-झोंक हुई थी. उन्होंने मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया था और लालू के खिलाफ सक्रिय रूप से नेताओं को एकजुट करने लगे थे. चूकी आरक्षण के मामले में कुर्मी जाति के खिलाफ लालू यादव की सोच को लेकर नीतीश कुमार से उनके मतभेद शुरू हो गए थे. ऐसे में विजय कृष्ण का मानना था कि  कुर्मियों के गुस्से से ही लालू पर पलटवार किया जा सकता है और यह काम नीतीश सबसे बेहतर तरीके से कर सकते हैं. कुर्मी चेतना रैली के दिन विजय कृष्ण ने नीतीश को सुबह-सुबह अपने घर बुला लिया था. नीतीश को नाश्ता कराया. फिर गांधी मैदान में कुर्मी चेतना रैली के मंच पर नीतीश को जाने के लिए प्र्तोसाहित करने लगे. 


नीतीश नहीं थे तैयार

कहा जाता है कि  कुर्मी चेतना रैली के मंच पर जाने के लिए शुरू में नीतीश कुमार तैयार नहीं थे. लेकिन विजय कृष्ण के बार बार अनुरोध करने, उन्हें कुछ मित्रो द्वारा मनाने के बाद वे तैयार हुए. उधर लालू यादव भी नीतीश कुमार की हर गतिविधि पर नजर बनाए थे.  12 फरवरी की सर्द सुबह में लालू यादव पटना के एक, अणे मार्ग के पीछे की लॉन में अपने कुछ खास नेताओं के साथ बैठे थे. वहीं सादी वर्दी में मौजूद एक सिपाही वॉकी-टॉकी पर लगातार गांधी मैदान में हो रही रैली में भीड़ सहित अन्य बातों की जानकारी ले रहा था. इन सबके बीच लालू यादव बार बार कहते 'आया जी नीतीशवा? पता लगाओ कहाँ है'.


ज्ञानू की गाड़ी में बैठकर गए नीतीश

नीतीश कुमार ने 1989 का संसदीय चुनाव बाढ़ लोकसभा क्षेत्र से जीता था. फिर 1991 में भी बाढ़ से वे लगातार दूसरी बार सांसद का चुनाव जीते. विजय कृष्ण उसी बाढ़ के इलाके के थे. जाति से राजपूत. और विजय कृष्ण के ही एक अन्य साथ ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू की सियासी जमीन भी बाढ़ थी. वहीं विजय कृष्ण हर पंद्रह मिनट पर किसी-न-किसी को गांधी मैदान भेजकर रिपोर्ट मँगवा रहे थे कि वहाँ जमा हुए लोगों का मिजाज कैसा है और भीड़ कितनी है. वे बार बार नीतीश को कहते ... जाओ! , इतना विशाल और बना बनाया मंच फिर कभी आपको न्यौता नहीं देगा कि आओ, बंधन की जंजीरें तोड़ो और एक स्वतंत्र इनसान के रूप में अपनी नई पहल करो। अभी नहीं गए, तो फिर कभी नहीं जा पाओगे। सोचो कि लालू क्या सोचता होगा। वह घबराया हुआ है, उसका सबसे बड़ा भय तुमको लेकर है। जाओ!’ तो नीतीश कुमार को लालू के खिलाफ कुर्मी चेतना रैली के मंच तक ले जाने में जहां विजय कृष्ण ने अहम योगदान दिया, वहीं नीतीश कुमार गांधी मैदान के किनारे साथी ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू की मारुति-800 में बैठकर गए और बार-बार मंच निहार रहे थे कि वहां जाएं या नहीं. 



रैली बाद हुआ समता पार्टी का गठन

 12 फरवरी 1994 को दोपहर में तीन बजे के आस-पास, नीतीश जैसे ही चेतना रैली के मंच पर चढ़े उनके लिए जोरदार नारेबाजी होने लगी. संकर्षण ठाकुर के अनुसार भाषण देने के दौरान नीतीश ने शुरू में गोल-मोल बात करने की कोशिश की. लेकिन फिर भीड़ के गुस्से का अहसास होते ही वह गरजे, ‘‘भीख नहीं हिस्सेदारी चाहिए’’, ‘‘जो सरकार हमारे हितों को नजरअंदाज करती है, वो सरकार सत्ता में रह नहीं सकती’’... उन्होंने चिल्ला-चिल्लाकर अपनी ललकार लालू को सुना दी. कुर्मी एकता रैली के बाद नीतीश अपनी नई पार्टी के गठन में जुट गए. इस रैली के 8 महीने बाद नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडीस ने मिलकर में समता पार्टी बनाई. लालू यादव के खिलाफ नीतीश कुमार की पॉलीटिक्स अब चरम पर पहुंच चुकी थी. और नीतीश कुमार को करीब 11 वें साल बाद अपने मिशन में सफलता हाथ लगी. नीतीश कुमार ने 2005 में लालू यादव को बिहार की सत्ता से बाहर कर दिया था. 


विजय कृष्ण ने नीतीश को हराया

लालू यादव के खिलाफ नीतीश कुमार खड़ा करने में विजय कृष्ण में बड़ी अहम भूमिका निभाई थी. लेकिन बाद में नीतीश से विजय कृष्ण के रिश्ते अच्छे नहीं रहे. विजय कृष्ण फिर से लालू यादव के साथ हो लिए. उन्होंने वर्ष 2004 का लोकसभा चुनाव भी बाढ़ से नीतीश कुमार को हराकर जीता जबकि उसके बाद 1999 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार पर धांधली पर चुनाव जीतने का आरोप लगाया था. वे इसे लेकर कोर्ट भी गए थे. 


उम्रकैद की सजा

हालांकि 23 मई, 2009 को ट्रांसपोर्टर सत्येंद्र सिंह की हत्या पटना के कृष्णापुरी थाना क्षेत्र में हुई थी. इस मामलें में पूर्व सांसद विजय कृष्ण, उनके बेटे चाणक्य व अन्य दो को आरोपी बनाया गया है. ट्रांसपोर्टर सत्येंद्र सिंह  हत्या के मामले में पटना सिविल कोर्ट ने वर्ष 2013 में इन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. करीब 10 वर्ष जेल में बिताने वाले विजय कृष्ण को बाद में पटना हाई कोर्ट से राहत मिली. मई, 2022 ट्रांसपोर्टर सत्येंद्र सिंह हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास सजायाफ्ता पूर्व सांसद विजय कृष्ण और उनके बेटे चाणक्य को पटना हाईकोर्ट ने बड़ी राहत देते हुए उन्हें आजीवन सजा से मुक्त कर दिया है. अब विजय कृष्ण ने लालू यादव को राजद छोड़ने को लेकर पत्र जारी करते हुए इस्तीफा दे दिया है.