Bihar politics: नीतीश के बाद बिहार की सियासत का कौन होगा शहंशाह? बिहार में सत्ता की शतरंज पर अगला मोहरा कौन? दिल्ली की बंद बैठक से पटना की गलियों तक में इस नाम की हो रही चर्चा
Bihar politics: बिहार की राजनीति इन दिनों सुकून में नहीं, बल्किकयासों और खामोश इशारों में सांस ले रही है। हाल ही में अमित शाह के आवास पर हुई एक छोटी लेकिन मायनेदार बैठक ने पटना से लेकर दिल्ली तक सियासी हलकों में सरगोशियां तेज कर दी हैं...
Bihar politics: बिहार की राजनीति इन दिनों सुकून में नहीं, बल्किकयासों और खामोश इशारों में सांस ले रही है। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आवास पर हुई एक छोटी लेकिन मायनेदार बैठक ने पटना से लेकर दिल्ली तक सियासी हलकों में सरगोशियां तेज कर दी हैं। इस बैठक में अमित शाह के साथ जेडीयू के कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह तथा पार्टी के कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा मौजूद थे। एजेंडा बीजेपी का नहीं, बल्कि नीतीश कुमार के बाद बिहार का भविष्य था।
सूत्रों के मुताबिक, अमित शाह ने साफ लहजे में पूछा अगर सेहत की वजह से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद छोड़ते हैं तो आगे की राह क्या होगी? क्या उत्तराधिकार की कुर्सी तक नीतीश के बेटे निशांत कुमार पहुंच सकते हैं? क्या उन्हें डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है? यह खबर अंग्रेजी अखबार के हवाले से सामने आई, हालांकि जेडीयू और बीजेपी दोनों ने आधिकारिक तौर पर चुप्पी साध रखी है। मगर राजनीति में खामोशी अक्सर सबसे ऊंची आवाज होती है।
इस कथित बैठक के कुछ दिन बाद पटना एयरपोर्ट पर संजय झा और निशांत कुमार का साथ दिखना महज इत्तेफाक नहीं माना गया। संजय झा का बयान—कि पार्टी कार्यकर्ता, शुभचिंतक और समर्थक निशांत को राजनीति में देखना चाहते है इस बात का इशारा था कि ऊपर से हरी झंडी मिल चुकी है, बस मुनासिब वक्त का इंतजार है। चर्चा है कि खरमास खत्म होते ही, 14 जनवरी के बाद निशांत की जेडीयू में एंट्री हो सकती है।
पार्टी के भीतर दो राय हैं। एक खेमा चाहता है कि निशांत सीधे सरकार में आएं, दूसरा मानता है कि पहले संगठन की कमान संभालें। खुद निशांत ने पत्रकारों के सवालों पर सिर्फ मुस्कुराकर चुप्पी अख्तियार की है—और यही मुस्कान आज सबसे बड़ा सियासी बयान बन गई है।
बीजेपी की फिक्र भी वाजिब है। नीतीश के बाद अति पिछड़ों का वोट बैंक बिखर न जाए, इसलिए एनडीए चाहता है कि उत्तराधिकारी का फैसला नीतीश के रहते ही हो जाए। जेडीयू के कोर वोटर भी मानने लगे हैं कि नीतीश की विरासत आगे बढ़ाने का हकदार चेहरा निशांत ही हैं। यही वजह है कि पटना की सड़कों पर पोस्टर-बैनर उग आए हैं।
मनीष वर्मा जैसे चेहरे, जिन्होंने आईएएस छोड़कर जेडीयू का दामन थामा, इस पूरी कहानी में अहम कड़ी हैं। कहा जाता है कि उन्होंने निशांत को बिहार की राजनीति का पाठ पढ़ाया है। फिलहाल निशांत विवादों से दूर, सादा और सहज दिखते हैं और शायद यही सादगी उन्हें स्वीकार्य बनाती है।