बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

Bihar bypolls election result 2024 -बिहार में MY समीकरण धवस्त, बेलागंज, इमामगंज से लेकर रामगढ़ तक राजद चारों खाने चित्त, अब क्या करेंगे तेजस्वी

Bihar bypolls election result 2024 - बिहार में हुए चार सीटों पर हुए उपचुनाव में तेजस्वी यादव बुरी तरह से फेल साबित हुए हैं। जैसे चुनाव परिणाम सामने आये हैं. उसके बाद यह माना जा रहा है कि माय समीकरण ने उन्हें नकार दिया है।

Bihar bypolls election result 2024 -बिहार में  MY समीकरण धवस्त, बेलागंज, इमामगंज से लेकर रामगढ़ तक राजद चारों खाने चित्त, अब क्या करेंगे तेजस्वी
तेजस्वी यादव के लिए है उपचुनाव की हार सबक।- फोटो : NEWS4NATION

PATNA - बिहार विधानसभा के चार सीटों पर हुए उपचुनाव में महागठबंधन को बड़ा झटका लगा है। यहां चारों सीटों पर महागठबंधन को मिली हार ने नए समीकरण स्थापित कर दिये हैं। जिसमें तेजस्वी जिन मुद्दों को अपनी सबसे बड़े अस्त्र के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। वह अब फेल साबित हो गया है। फिर चाहे वह माय समीकरण हो या लाखों को रोजगार देने का मुद्दा। तेजस्वी यादव महागठबंधन को जीत दिलाने में नाकामयाब रहे। राजद के लिए यह हार इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि क्योंकि चार सीट में तीन पर राजद का कब्जा था।

MY समीकरण ने दिया धोखा

बिहार में 1990 में लालू प्रसाद के उदय होने के बाद से एक यादव मुस्लिमों का एक बड़ा वोट बैंक उनके साथ रहा है। जिसका फायदा उन्हें लगभग हर चुनाव में मिला। लेकिन तेजस्वी यादव यादवों मुस्लिमों के बीच वह विश्वास दिलाने में कामयाब नहीं हो पाए। बेलागंज और रामगढ़ इसके बड़े उदाहरण हैं, जहां तेजस्वी ने  खुद कमान संभाली, मुस्लिम वोट के लिए ओसामा को साथ लेकर आए, लेकिन इसके बाद भी चुनाव में उन्हें बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा है।

दक्षिण बिहार के लिए एनडीए का खुला रास्ता

वहीं दूसरी चारों सीटों पर हुए चुनाव परिणाम ने बिहार में  एनडीए को मजबूत किया है। यहां भाजपा जदयू के साथ को अपनी मंजूरी दे दी है। इसके साथ दक्षिण बिहार में एनडीए के लिए फिर से नए रास्ते भी खोल दिए हैं। 2020 के विस चुनाव में इन क्षेत्रों में एनडीए को भी एक भी सीट नहीं मिली थी। ऐसे में चार साल में यहां जनता की सोच बदलने के लिए  एनडीए ने कदम उठाए हैं, उसे समझना भी जरुरी है।

बेलागंज - 34 साल का किला ढहा

राजद को चार सीटों में  जिस सीट से सबसे बड़ा झटका लगा है. वह बेलागंज था। यहां लालू यादव के उदय से लेकर अब तक राजद अपराजित रही थी। अब यह किला ध्वस्त हो गया है। यहां बाहुबली बिंदी यादव की पत्नी और दो बार एमएलसी रहीं मनोरमा देवी ने पूर्व विधायक व जहानाबाद सांसद सुरेंद्र यादव के बेटे विश्वनाथ यादव को हराया। 

हालांकि जदयू के लिए यह सीट जीतना इतना आसान नहीं था। यहां 34 साल से सुरेंद्र यादव कभी नहीं हारे। वहीं 2020 के चुनाव में जदयू की तरफ से उम्मीदवार रहे अभय कुशवाहा अब खुद राजद के सांसद हैं, जिसका फायदा भी राजद को मिलता दिख रहा था। वहीं चारों सीटों पर बेलागंज को  राजद ने अपनी  प्रतिष्ठा की सीट बना लिया था। तेजस्वी के साथ लालू प्रसाद और गठबंधन के कई नेताओं ने यहां सभाएं की थी। जिससे भी यह किला भेदना नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती थी। 

मुस्लिम वोट के लिए ओसामा को लाए

बेलागंज में चुनाव जीतने के लिए राजद ने अपने माय समीकरण पर भरोसा जताते हुए दिवंगत सांसद मरहूम मो. शहाबुद्दीन के बेटे ओसाम शहाब के बेटे को भी चुनाव प्रचार में उतारा। पार्टी के उम्मीद कि बेटा भी पिता का जादू चलाने में कामयाब होगा। लेकिन यह गलत साबित हुआ। दो सांसदों सुरेन्द्र यादव और अभय कुशवाहा की ताकत भी जलवा नहीं दिखा सकी। वहीं इस लिहाज से गया जिले में आरजेडी एक पार्टी के तौर पर ताकतवर स्थिति में रहने के बावजूद बेलागंज की सीट नहीं बचा पाई। 

जदयू की गया में हुई इंट्री

जिले में 10 विधानसभा सीटों में से 5 सीट पर आरजेडी का कब्जा रहा है। बाकी पांच में बीजेपी और हम पार्टी का कब्जा। अब उपचुनाव में जेडीयू की जीत से गया जिले की राजनीति में जेडीयू की एंट्री हो गई है। 2020 के विधानसभा चुनाव में शेरघाटी, बोधगया, बेलागंज, गुरुआ और अंतरी पर आरजेडी की जीत हुई थी और बाराचट्टी, टेकारी, इमामगंज में हम पार्टी की, गया टाउन और वजीरगंज में बीजेपी जीती थी।

मनोरमा देवी के साथ यादव वोट

यादव 19 फीसदी के लगभग हैं तो मुसलमान 17 फीसदी के आसपास है। उसके बाद बड़ा वोट बैंक मुसहर समाज का है। मुसहर यहां 11 फीसदी हैं। सवर्णों में सर्वाधिक सात फीसदी भूमिहार हैं। राजद को उम्मीद थी कि माय का वोट उन्हें मिलेगा। लेकिन यादव वोटर्स ने मनोरमा देवी पर  भरोसा दिखाया।

वहीं कोयरी छह फीसदी, बनिया दो फीसदी और बाकी ओबीसी छह फीसदी, ईबीसी 6 फीसदी है। पासवानों का वोट बैंक ईबीसी के बराबर ही छह फीसदी है। चमार जाति के लोग पांच फीसदी हैं। इन्होंने भी एनडीए पर यकीन जताया।

इमामगंज पर  चला मांझी परिवार का जादू

गया जिले के जिन दो सीटों पर उपचुनाव हुए, उनमें एक सीट इमामगंज भी शामिल हैं। यहां केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी की बहू और बिहार में मंत्री संतोष सुमन की पत्नी दीपा मांझी ने जीत दर्ज की। यहां दूसरे नंबर पर आरजेडी के रौशन कुमार और तीसरे पर जनसुराज के जितेन्द्र पासवान रहे। 

इमामगंज की दीपा मांझी जीत का मायने इसलिए भी खास है कि क्योंकि यहां मुसहर सबसे अधिक 18.6 परसेंट, मुसलमान 15.3 फीसदी, यादव 13.2 फीसदी, कुशवाहा वोट बैंक 10.82 फीसदी हैं। अनुसूचित जाति का कुल वोट बैंक 32 फीसदी के आसपास है। ओबीसी 30 फीसदी के लगभग है। राजपूत 4.3 फीसदी, ब्राह्मण व भूमिहार की आबादी कम है। सवर्ण 6 फीसदी के लगभग हैं। 

राजद ने  दीपा मांझी को हराने  के लिए रौशन मांझी को मैदान में उतारा था। लेकिन इसका कोई फायदा पार्टी को नहीं हुआ। इमामगंज के वोटर्स ने जीतनराम मांझी के परिवार पर भरोसा जताया। वहीं जनसुराज ने पासवान वोट साधने  के लिए जितेंद्र पासवान को टिकट दिया था। जिसके कारण चिराग  पासवान ने यहां कोई  सभा भी नहीं किया। जिसका फायदा जितेंद्र पासवान को हुआ। वहीं चुनाव परिणाम बताते हैं कि मुसहरों के अलावा बीजेपी के कोर वोट बैंक वैश्यों और अतिपिछड़ों ने दीपा मांझी को वोट किया है। वहीं आरजेडी का मुसलमान वोट भी आरजेडी और जनसुराज के बीच बंटा।

रामगढ़ - जगदानंद और सुधाकर भी नहीं दिला सके जीत

रामगढ़ उपचुनाव में जीत के साथ भाजपा ने कैमूर  में अपना खाता खोल दिया। यहां भाजपा उम्मीदवार अशोक कुमार सिंह विजयी घोषित हुए। यह जीत इसलिए भी  मायने रखती है क्योंकि यहां राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे और बक्सर सांसद सुधाकर सिंह के भाई अजीत सिंह मैदान में थे।  जगदानंद सिंह का गढ़ होने के कारण यह सीट अजीत सिंह  के लिए सेफ माना जा रहा था। उपचुनाव के दो महीने पहले वह जदयू छोड़कर राजद  में आए थे। खुद तेजस्वी यादव ने उनके लिए रोड शो किया। लेकिन इसके बाद भी अजीत  सिंह को उपचुनाव में तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा। 

मुकाबले में बसपा और भाजपा

कैमूर  जिला यूपी की सीमा से सटा है। जिसके कारण यहां बसपा हमेशा से ही मजबूत रही है। रामगढ़ उपचुनाव में भी यह नजर आया। यहां बसपा प्रत्याशी बीएसपी ने सतीश यादव उर्फ पिंटू यादव दूसरे स्थान पर रहे। दूसरी तरफ पूर्व विधायक अंबिका यादव अपने भतीजे सतीश यादव को नहीं जिता पाए। दोनों परिवारवाद को लोगों ने नकार दिया। चुनाव से पहले अजीत सिंह आरजेडी में शामिल कराए गए थे। 

1985  से सिर्फ एक बार हारे जगदानंद सिंह या उनसे जुड़े लोग

रामगढ़ में जगदानंद सिंह कितने मजबूत नेता रहे हैं, यह इससे ही समझा जा सकता है कि 1985 से 2024 के बीच सिर्फ एक बार वह या उनसे जुड़े लोगों की हार हुई है। 2009 में बक्सर से सांसद बनने के बाद जगदानंद सिंह ने यह सीट छोड़ दी थी। तब आरजेडी ने जगदानंद के बेटे सुधाकर सिंह की जगह अंबिका यादव को उम्मीदवार बनाया था। वे चुनाव भी जीत गए। 2010 के चुनाव में जब अंबिका यादव को फिर से टिकट मिला तो सुधाकर सिंह ने बगावत कर दी। जगदानंद ने बागी बने पुत्र सुधाकर को हराने में ऐसी ताकत लगाई कि सुधाकर तीसरे नंबर पर चल गए। 2020 में आरजेडी ने सुधाकर सिंह को टिकट दिया और सुधाकर चुनाव जीत गए। 

यादवों का वोट आरजेडी और बसपा के बीच बंट गया। चमार जाति यहां अकेले 22 फीसदी है। दलितों के लगभग 29 फीसदी वोट बैंक का बड़ा हिस्सा बसपा के साथ गया। तेजस्वी यादव ने रामगढ़ में 40 किमी का रोड शो किया था। इस मायने में तेजस्वी की भी हार यहां हुई। 

अंबिका और जगदानंद की लड़ाई

2015 का चुनाव छोड़ दें तो इसी सीट पर साल 1985 से अब तक जगदानंद और उनसे जुड़े लोग ही जीतते रहे हैं। 2009 में बक्सर से सांसद बनने के बाद जगदानंद सिंह ने यह सीट छोड़ दी थी। तब आरजेडी ने जगदानंद के बेटे सुधाकर सिंह की जगह अंबिका यादव को उम्मीदवार बनाया था।

वे चुनाव भी जीत गए। 2010 के चुनाव में जब अंबिका यादव को फिर से टिकट मिला तो सुधाकर सिंह ने बगावत कर दी। जगदानंद ने बागी बने पुत्र सुधाकर को हराने में ऐसी ताकत लगाई कि सुधाकर तीसरे नंबर पर चल गए।

रामगढ़ में कैसा है जातीय समीकरण

रामगढ़ में  चमार जाति अकेले 22 फीसदी है। दलितों का वोट बैंक लगभग 29 फीसदी है और ये वोट बैंक जीत-हार में मायने रखता है। यह वैसे वोटर्स हैं, जो बसपा पर ज्यादा विश्वास करते हैं। वहीं दूसरी  राजपूत 8 फीसदी, ब्राह्मण 6 फीसदी हैं। सवर्ण 17.5 फीसदी हैं। जिनके खिलाफ राजद लगातार बयानबाजी करती रहा है। जिससे नुकसान हुआ। तीसरा का यादव वोट बैंक 12 फीसदी और मुसलमान 8 फीसदी हैं।  कोयरी-कुर्मी मिलाकर 8 फीसदी हैं। ओबसी 26 फीसदी हैं। तेजस्वी यादव इनका वोट भी अपने प्रत्याशी की तरफ कामयाब नहीं हुए। 

तरारी में बाहुबली के बेटे का उदय

चारों विधानसभा में  जिस एक सीट पर भाजपा की जीत पक्की  मानी जा रही थी, उनमें तरारी सीट शामिल है। यहां बीजेपी से बाहुबली सुनील पांडेय के पुत्र विशाल प्रशांत, माले से राजू यादव और जनसुराज से किरण देवी मैदान में थीं। दरअसल, बीजेपी ने पूरी प्लानिंग के साथ सुनील पांडेय और उनके बेटे विशाल प्रशांत को बीजेपी में शामिल करवाया था। उन्हें पारस गुट की राष्ट्रीय लोजपा से तोड़ा गया था। बीजेपी ने जिस रणनीति से माले की घेराबंदी की वो सफल रही। 

यह पूरी रणनीति दिलीप जायसवाल के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए बनाई गई थी। इस मायने में यह प्रदेश अध्यक्ष की बड़ी जीत है।  बेलागंज की तरह बीजेपी और जेडीयू का समन्वय ठीक दिखा। निश्चित रूप से अगले साल होनेवाले विधानसभा चुनाव में गठबंधन को बहुत फायदा होगा। 

यादव 13.9 फीसदी, ईबीसी 12.3 फीसदी, मुसलमान और भूमिहार 10 फीसदी के आसपास हैं। राजपूत 8 फीसदी, पासवान 7 फीसदी हैं। सवर्ण वोट बैंक 24 फीसदी है। ह नक्सल प्रभावित इलाका रहा है। रणवीर सेना का संस्थापक माने जाने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या मामले में सुनील पांडेय और उनके भाई का नाम भी सामने आया था। लेकिन चुनाव में जनता ने इस मुद्दे को नकार दिया।

कैसे मिली एनडीए को कामयबी

पार्टियों ने सोशल इंजीनियरिंग पर तो फोकस किया ही साथ ही पार्टियों का एजेंडा भी साथ रहा। एनडीए ने नीतीश कुमार के विकास और नरेन्द्र मोदी के विकास के एजेंडा को सामने रखा, वहीं वोटिंग के दिन पीएम मोदी का बिहार दौरा भी हुआ था। एनडीए में जेडीयू और बीजेपी के बीच बेहतर समन्वय हो इसकी कोशिश बीजेपी की तरफ से भी हुई और जेडीयू की तरफ से भी। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष जेपी नड्डा चुनाव से पूर्व कई बार बिहार दौरे पर आए। नीतीश कुमार के आवास पर एनडीए की महत्वपूर्ण बैठक में भी रणनीति बनी। कई विकास योजनाओं की शुरुआत की गई। जिसका फायदा भी एनडीए को हुआ।

एक्सपर्ट बोले- राजद के परिवारवाद को नकारा

राजनीतिक विश्लेषक कि ‘उपचुनाव में चारों सीटों पर एनडीए की जीत ने साबित कर दिया कि लोगों ने नीतीश कुमार और बीजेपी की सरकार के कामकाज पर अपनी मुहर लगाई है। आरजेडी के परिवारवाद को नकार दिया है। रामगढ़ में सुधाकर सिंह की इमेज बड़बोले नेता की हो गई, हालांकि वे बात सही बोलते हैं। इसका इफेक्ट पड़ा।

जगदानंद का दौर खत्म, तेजस्वी को नए मुद्दे की  जरुरत

महागठबंधन की पार्टी आरजेडी ने बिहार के आरक्षण को 9वीं अनुसूची में शामिल नहीं करने, स्मार्ट बिजली मीटर, तेजस्वी के 17माह की सरकार में सरकारी नौकरी को एजेंडा बनाया, माले ने भूमि सुधार, आंगनबाड़ी सेविका सहायिका आदि से जुड़े सवाल को एजेंडा बनाया था। लेकिन पहले लोकसभा और उप चुनाव में दर्जनों सभाएं करने के  बाद भी तेजस्वी सभाओं में भीड़ जुटाने में कामयाब हुए, लेकिन उसे वोट  में नहीं बदल सके. अब विधानसभा चुनाव के लिए तेजस्वी को नए मुद्दों को लेकर आना होगा। वहीं परिणाम राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह का राजनीतिक अंत के रूप में देखा जा रहा है। 


Editor's Picks