Bihar Politics: बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, नीतीश कुमार बिहार के सत्ता के केंद्र में हैं. प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह का उदय बिहार की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है. यदि आरसीपी और पीके जनता के बीच अपनी पहचान बनाने में सफल होते हैं तो नीतीश ने जिन्हें खड़ा किया वे हीं साल 2025 के चुनाव में तनाव बन सकते हैं.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी सहयोगी और राजनीतिक सलाहकार रहे पीके और आरसीपी के साथ उनके संबंध प्रगाढ़ हुआ करते थे. संबंधों के अंत की एक दिलचस्प कहानी है. नीतीश ने पीके को अपनी पार्टी जेडीयू में शामिल किया था, जहां उन्होंने चुनावी रणनीतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि, समय के साथ यह संबंध तनावपूर्ण हो गया.
बिहार की सियासत में दरबदर आरसीपी सिंह अब चुनावी मैदान में कूदेंगे. आरसीपी ने इसके लिए नई पार्टी बनाने का ऐलान भी कर दिया है. 2025 के चुनाव में आरसीपी किसे सबसे ज्यादा नुकसान कर पाएंगे, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन जिस सियासी पैटर्न पर आरसीपी आगे बढ़ रहे हैं, उससे उन्हें नालंदा का चिराग मॉडल कहा जा रहा है.नौकरशाही से राजनीति में आए आरसीपी सिंह को किसी समय नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी माना जाते थे आज वहीं आरसीपी नीतीश के सबसे धुर-विरोधी हो गए हैं.आरसीपी सिंह नालंदा जिले के मुस्तफापुर निवासी हैं. कुर्मी समुदाय से आने वाले आरसीपी 2010 में पहली बार राजनीति में आए. साल 2021 में आरसीपी सिंह ने नीतीश का साथ छोड़ दिया. उस वक्त पार्टी ने उन पर अवैध तरीके से जमीन खरीदने के आरोप में सफाई मांगी थी. आरसीपी तब केंद्र में मंत्री भी थे, लेकिन राज्यसभा न भेजे जाने के कारण उन्हें पद से भी इस्तीफा देना पड़ा. नीतीश के आरजेडी के साथ जाने से आरसीपी वे भाजपा का थान थाम लिया.
प्रशांत किशोर ने हाल ही में अपनी राजनीतिक पार्टी का गठन किया है और बिहार की राजनीति में सक्रियता बढ़ाई है. उनका उद्देश्य एक तीसरा विकल्प प्रस्तुत करना है, जो कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के लिए चुनौती बन सकता है.राजनीति में चुनावी गणित महत्वपूर्ण होता है. यदि प्रशांत किशोर अपने समर्थकों को संगठित करते हैं और सही मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो वे नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के लिए गंभीर चुनौती बन सकते हैं. उनकी पार्टी “जन सुराज” ने शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है, जो कि बिहार के युवाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं.
नीतीश कुमार के करीबी सहयोगियों जैसे कि पीके और आरसीपी सिंह के साथ उनके रिश्तों में खटास आ गई है। यह खटास मुख्यतः सत्ता संघर्ष और विचारधारा के मतभेदों के कारण हुई है। जब पीके ने जेडीयू छोड़ने का निर्णय लिया, तो यह स्पष्ट हो गया कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं नीतीश से भिन्न थीं। आरसीपी सिंह भी इस संघर्ष का हिस्सा बने, जिससे उनकी स्थिति कमजोर हुई.
पूर्व सीएम जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार से दूरी बनाते हुए अपनी राजनीतिक पहचान को मजबूत किया. मांझी जो पहले नीतीश के करीबी हुआ करते थे, ने नई पार्टी बनाई और अब केंद्र में मंत्री है. उपेंद्र कुशवाहा भी जेडीयू का हिस्सा थे लेकिन अब उन्होंने अपनी पार्टी रालोसपा बनाई इन दोनों नेताओं ने नीतीश कुमार की नीतियों से असहमति जताते हुए अपने-अपने तरीके से राजनीति करने का निर्णय लिया है,
पीके, आरसीपी सिंह, मांझी और कुशवाहा जैसे नेताओं ने इस अवसर का लाभ उठाया और अपने-अपने दलों को स्थापित किया. इ बिहार की राजनीति में समीकरण तेजी से बदल रहे हैं और नए नेता उभर रहे हैं जो नीतीश कुमार की चुनौती बन सकते हैं. बहरहाल बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार द्वारा सिखाई गई सियासत अब उनके लिए चुनौती बन गई है. करीबी सहयोगियों के दूर होने की कहानी इस बदलाव को दर्शाती है.