Places of Worship Act : भारत में कितने मंदिरों के अस्तित्व को मिटाकर उस पर मस्जिद या अन्य धर्म की स्थल बनाए गये. इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए अब प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर एक याचिका दायर दी गई है. इसमें 712 ईसवी के बाद भारत में इस्लामिक हमलावरों ने कुल कितने मंदिरों को तहस-नहस किया उसकी जानकारी जुटाने का पक्ष रखा है. कोर्ट में दायर हुई इस याचिका से अब प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की व्यवहार्यता पर सवाल उठाया गया है.
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को वकील विष्णु शंकर जैन की ओर से दायर किया गया है. इसमें इस एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 कहता है कि भारत में धार्मिक स्थलों का अस्तित्व निर्धारण 15 अगस्त, 1947 से यथावत रखा गया है. यानी 15 अगस्त, 1947 को देश में जो भी धार्मिक मंदिर जिस रूप में है और जिसके कब्जे में है वह उसी के अधिकार और धर्म का माना जाएगा.
हालांकि राम मंदिर अयोध्या पर प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 लागू नहीं होता है. इसलिए राम मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा निर्णय दिया था. अब प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को चुनौती देते हुए वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा है कि यह कानून संविधान की मूल भावना के भी खिलाफ है. इस एक्ट द्वारा गों के अदालत जाने के मूल अधिकार को ही खारिज किया गया है. इसलिए इस एक्ट को बदलने की जरूरत है.
712 का लफडा क्या है
उन्होंने कहा कि भारत में धार्मिक स्थलों के भूखंड पर दावा निर्धारण की तारीख 15 अगस्त, 1947 नहीं होनी चाहिए. भारत में सबसे पहले 712 ईसवी में मोहम्मद बिन कासिम ने हमला किया था. उसके बाद कई बार हमले होते रहे. इस दौरान कई मंदिरों को नष्ट किया गया. मंदिरों का अस्तित्व मिटाने की कोशिश कर उस पर मस्जिद जैसे धार्मिक स्थल बनाए गये. यह कई सौ साल तक चला. ऐसे में भारत में धार्मिक स्थलों के भूखंड पर दावा निर्धारण की तारीख 15 अगस्त, 1947 नहीं बल्कि 712 ईसवी होनी चाहिए. यानी 712 ईसवी के पूर्व किस धर्म का वह भूखंड या इमारत था उस अनुरूप मलिकाना हक तय होना चाहिए.
क्या कहता है कानून :
प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट को 1991 कहता है कि 15 अगस्त, 1947 को यदि कोई मस्जिद थी तो उसे वही माना जाए और यदि मंदिर था तो उसकी भी संरचना से बदलाव न किया जाए. लेकिन विष्णु जैन ने इसे इतिहास को बदलने जैसा माना है. साथ ही 712 ईसवी की अवधि से धार्मिक अधिकार का समय तय करने की बात कही है.