देवउठनी एकादशी आज यानी की 12 नवंबर को मनाया जा रहा है। आज से शुभ समय शुरू हो जाता है। प्राचीन काल से ही मनुष्य में अनंत ऊर्जा, अतुलनीय शक्ति और तेजस्विता आदि विद्यमान हैं, जिन्हें विवेक, अच्छे विचारों और अच्छे इरादों के माध्यम से जागृत किया जा सकता है। ये एकादशी हमारे अंदर मौजूद उन देवताओं को जागृत करने का शुभ समय है।
सत्य और धर्म के अवतार भगवान नारायण, ऐश्वर्य और जीवन के अवतार माता वृंदा (तुलसी) का वरण करने का तात्पर्य यह है कि संसार की धन, यश आदि सभी विभूतियां धर्म के अनुयायी और सच हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा के बाद जागते हैं। इसलिए इस एकादशी को देवउठनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं।
वैसे तो हर एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, लेकिन देवउठनी एकादशी पर किए गए व्रत और पूजन से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। विचारों में अनोखी शक्ति होती है। जीवन परिवर्तन के लिए वैचारिक शुद्धता और समृद्धि नितांत आवश्यक है। स्वस्थ, सकारात्मक और पवित्र विचार दिशा और दृष्टि प्रदान करते हैं।
ग्यारस के दिन ही तुलसी विवाह भी होता है। घरों में चावल के आटे से चौक बनाया जाता है। गन्ने के मंडप के बीच विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। पटाखे चलाए जाते हैं। देवउठनी कौन हैं छठी मै ग्यारस को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है। देवउठनी या देव प्रबोधिनि ग्यारस के दिन से मंगल आयोजनों के रुके हुए रथ को पुनः गति मिल जाती है।
कार्तिक शुक्ल एकादशी का यह दिन तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है और इस दिन पूजन के साथ ही यह कामना की जाती है कि घर में आने वाले मंगल कार्य निर्विघ्न संपन्न हों। तुलसी का पौधा चूंकि पर्यावरण तथा प्रकृति का भी द्योतक है। अतः इस दिन यह संदेश भी दिया जाता है कि औषधीय पौधे तुलसी की तरह सभी में हरियाली एवं स्वास्थ्य के प्रति सजगता का प्रसार हो। इस दिन तुलसी के पौधों का दान भी किया जाता है। चार महीनों के शयन के पश्चात जागे भगवान विष्णु इस अवसर पर शुभ कार्यों के पुनः आरंभ की आज्ञा दे देते हैं।