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दान और विनम्रता का पाठ जरूरी, रहीम का प्रेरक प्रसंग

महान कवि रहीम खानखाना का जीवन और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि सच्चा दान वही है जो अहंकार से मुक्त हो और जिसमें देने वाले और लेने वाले, दोनों के सम्मान की रक्षा हो।

महान कवि रहीम

दान और विनम्रता को लेकर रहीम खानखाना का दृष्टिकोण हमें सिखाता है कि सच्ची उदारता अहंकार से मुक्त होती है। रहीम का यह प्रसंग हमें यह समझाता है कि संसार में देने वाला वास्तव में ईश्वर है, और मनुष्य मात्र एक माध्यम है।


दान के समय विनम्रता का भाव

रहीम प्रतिदिन गरीबों को दान देते थे, लेकिन उनके दान देने का तरीका अनोखा था। वे कभी भी दान लेने वाले को नहीं देखते थे। उनका हाथ दान के लिए उठता था, लेकिन उनकी आंखें शर्म से झुक जाती थीं। जब किसी ने उनसे पूछा कि ऐसा क्यों करते हैं, तो उन्होंने जवाब में एक प्रसिद्ध दोहा कहा:


"देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।

लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन।"


इस दोहे में रहीम कहते हैं कि देने वाला तो ईश्वर है, जो दिन-रात हर किसी को देता रहता है। लेकिन लोग यह भ्रम पाल लेते हैं कि हम दान दे रहे हैं। इसी भ्रम से बचने और विनम्रता बनाए रखने के लिए उनकी आंखें झुकी रहती थीं।


दान का असली अर्थ

यह प्रसंग यह स्पष्ट करता है कि जो कुछ हमारे पास है, वह ईश्वर की देन है। हम केवल माध्यम हैं, जिनके जरिए ईश्वर दूसरों तक मदद पहुंचाता है।


महत्वपूर्ण सीख

अहंकार से बचें: दान या मदद करते समय अपने अंदर अभिमान का भाव नहीं आने देना चाहिए।

ईश्वर का धन्यवाद करें: यह समझें कि दान देने का अवसर भी ईश्वर ने हमें दिया है।

नम्रता बनाए रखें: सहायता करते समय दूसरे को दीनता का अनुभव न होने दें।

रहीम का यह दृष्टिकोण आज के युग में भी उतना ही प्रासंगिक है। दान देना केवल संपत्ति का स्थानांतरण नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा कार्य है, जो दाता के मन में विनम्रता और कृतज्ञता का भाव पैदा करता है।

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