मोक्षदा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु के विशेष आशीर्वाद प्राप्ति के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन श्रीहरि विष्णु का पूजन और व्रत करने से व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्त हो सकता है। यह तिथि गीता जयंती के रूप में भी जानी जाती है, क्योंकि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा:
प्राचीन समय में गोकुल नामक राज्य में वैखानस नाम के राजा ने अपने पिता को नर्क में यातनाएं सहते हुए सपना देखा। इस सपने से दुखी होकर राजा ने अपने पिता को मुक्ति दिलाने का उपाय जानने के लिए त्रिकालदर्शी पर्वत महात्मा से संपर्क किया। महात्मा ने राजा को मोक्षदा एकादशी का व्रत करने का परामर्श दिया। राजा ने विधि-विधान से व्रत किया और इसके प्रभाव से उनके पिता को नर्क से मुक्ति मिल गई। यह कथा इस व्रत की महिमा को दर्शाती है।
मोक्षदा एकादशी से जुड़े धार्मिक तथ्य:
यह व्रत मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
व्रत रखने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।
इस दिन दान करने से कई गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
मोक्षदा एकादशी व्रत का महत्व:
व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है।
पितृदोष से मुक्ति के लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी माना गया है।
इस दिन पंचकोषीय परिक्रमा करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है।
व्रत विधि:
प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराएं।
धूप, दीप, पुष्प और फल अर्पित कर पूजा करें।
व्रत रखें और पूरी श्रद्धा से भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत का पारण करें।
मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से न केवल व्यक्ति के पापों का नाश होता है, बल्कि उसे आध्यात्मिक शांति और पितरों के मोक्ष का आशीर्वाद भी मिलता है। यह व्रत आत्मा को शुद्ध करने और ईश्वर से जुड़ने का अद्भुत अवसर प्रदान करता है। इस पावन दिन पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा कर अपने जीवन को सफल बनाएं।