DESK: भगवान राम अयोध्या के राजा दशरथ के घर में उनके बड़े पुत्र के रूप में पैदा हुए थे और सीता यानी माता जानकी राजा जनक के पुत्री के रूप में। ऐसी मान्यता है कि सीता जी का जन्म पृथ्वी से हुआ था राजा जनक हाल चल रहे थे इस दौरान उन्हें एहसास हुआ की धरती के नीचे कुछ है जब उसे खोदा गया तो वहीं से उन्हें एक नन्ही बच्ची मिली जिसका नाम उन्हें उन्होंने सीता रखा था पुरातन ग्रंथ के अनुसार सीता जी को जनक नंदिनी के नाम से भी पुकारा जाता है।
कथा के अनुसार एक बार मां जानकी ने अपने ही घर में रखे शिवजी का धनुष उठा लिया था जिसे परशुराम के अतिरिक्त धरती पर कोई नहीं उठा पता था सीता जी के पिता राजा जनक ने जब यह दृश्य देखा तो उन्होंने एक फैसला लिया कि अब जो भी इस शिव धनुष को उठा पाएगा उसे योग्य वर से हम अपनी बेटी का विवाह करेंगे। मां जानकी के स्वयंवर की घोषणाएं कर दी गई। स्वयंवर में कई युवराज और राजा पहुंचे। इस स्वयंवर में भाग लेने के लिए मुनि वशिष्ट के साथ भगवान राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण जी भी पहुंचे। स्वयंवर के दौरान मौजूद विभिन्न देशों के राजकुमार और राजाओं के द्वारा शिव जी के धनुष को उठाने का प्रयास किया गया लेकिन कोई सफल नहीं हो पाया यह देख राजा जनक हताश हो गए।
उन्होंने भारी राज दरबार में पूछा क्या कोई भी मेरी पुत्री की योग्य नहीं है तब महर्षि वशिष्ठ ने सभा में मौजूद अयोध्या के राजा दशरथ नंदन के पुत्र श्री राम को महादेव के धनुष को उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाने का आदेश दिया। भगवान राम ने पल भर की देरी नहीं की गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने भगवान शंकर के धनुष की प्रतीक्षा जैसे ही चढ़ाने की कोशिश की तो धनुष टूट गया। यही वह संजोग था जो भगवान राम और सीता जी के विवाह का कारण बना।
सिर्फ सनातन धर्म में ही नहीं बल्कि भारतीय समाज में भी श्री राम और सीता को एक आदर्श दंपति के तौर पर देखा समझा जाता है। भगवान श्री राम और मां जानकी का जीवन समर्पण, आदर्श और प्रेम के मूल्य पर आधारित है। 2024 में 6 दिसंबर यानी कल भगवान राम और सीता जी का विवाह उत्सव मनाया जाएगा। धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार कल का दिन यानी शुक्रवार को अति शुभकारी होगा। बताया जा रहा है की श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्र के युग्म संयोग के साथ इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का भी उत्तम संयोग बन रहा है। इस दिन श्री सीताराम पूजा और विवाहोत्सव दर्शन के अद्भुत लाभ हैं। इस अवसर पर सभी ठाकुरबारी और खासकर भगवान राम दरबार के मंदिरों में 1650 के साथ विधिवत पूजा की जाएगी ।