हिंदू धर्म में सिंदूर को सौभाग्य, शुभता और दांपत्य जीवन का प्रतीक माना गया है। सिंदूरदान रस्म विवाह के उस पवित्र क्षण को दर्शाता है, जब दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है।
सौभाग्य का प्रतीक:
यह रस्म पति की लंबी आयु और पत्नी के सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है।
पवित्रता का प्रतीक:
सिंदूरदान को इतना पवित्र माना गया है कि इसे देवी-देवताओं की उपस्थिति में संपन्न किया जाता है।
जीवन का नया अध्याय:
इस रस्म के साथ ही दूल्हा-दुल्हन के नए जीवन की शुरुआत होती है।
सिंदूरदान रस्म को देखने की मनाही क्यों?
बिहार की परंपराओं में सिंदूरदान रस्म को कुंवारी कन्याओं द्वारा देखना वर्जित है। इसके पीछे कई मान्यताएं और धार्मिक कारण बताए गए हैं:
देवी-देवताओं की उपस्थिति:
ऐसा माना जाता है कि सिंदूरदान रस्म के दौरान देवी-देवता भी इस पवित्र क्षण के साक्षी बनते हैं। यदि कोई कुंवारी कन्या इस रस्म को देखती है, तो यह रस्म अपूर्ण मानी जाती है और वधु को इसका पूर्ण फल नहीं मिल पाता।
सिंदूर का धार्मिक महत्व:
इस रस्म में सिन्होरा (सिंदूर रखने का पात्र) और अखरा सिंदूर का उपयोग होता है। इसे चार दीवारी में बेहद गोपनीय तरीके से संपन्न किया जाता है। कुंवारी कन्या की उपस्थिति से इस पवित्रता पर असर पड़ने की आशंका होती है।
सौभाग्य पर असर:
पारंपरिक मान्यता के अनुसार, सिंदूरदान के दौरान कुंवारी कन्याओं की उपस्थिति वधु के सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
नए जीवन की शुरुआत:
यह रस्म दूल्हा और दुल्हन के नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक है। इसे केवल वर-वधु और उनके परिवार की उपस्थिति में ही निभाया जाना चाहिए।
धार्मिक दृष्टिकोण:
भोपाल के ज्योतिषी और वास्तु विशेषज्ञ पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा का कहना है कि सिंदूरदान रस्म के दौरान कुंवारी कन्याओं की उपस्थिति विवाह की ऊर्जा और रस्म की शुद्धता पर प्रभाव डाल सकती है। ऐसे में इसे गोपनीय रखने और परंपराओं का पालन करना आवश्यक है।
सिंदूरदान रस्म हिंदू विवाह परंपराओं का अहम हिस्सा है, जो पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूती और पवित्रता प्रदान करता है। इस रस्म से जुड़ी मान्यताओं और परंपराओं को समझना और उनका पालन करना न केवल संस्कृति का सम्मान है बल्कि इससे जुड़े आध्यात्मिक और धार्मिक लाभ भी सुनिश्चित होते हैं। कुंवारी कन्याओं के लिए इसे देखने की मनाही इस रस्म की पवित्रता को बनाए रखने का प्रयास है। सिंदूरदान केवल एक रस्म नहीं, बल्कि विवाह की आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत है।