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Sonpur Mela : गंगा और गंडक नदी के संगम पर क्यों होता है सोनपुर मेला, हरिहर नाथ मंदिर की स्थापना का क्या था कारण

पिछले डेढ़ हजार सालों तक बिहार की ग्रामीण संस्कृति और ग्रामीण कला तथा शिल्प का प्रतिनिधित्व करने वाले हरिहरक्षेत्र मेले का अब शहरीकरण होने लगा है। फिर भी यहां आज भी ऐसी बहुत सारी चीजें बची हुई हैं जिन्हें देख और महसूस कर अपनी मिट्टी और सांस्कृतिक जड़ो

Sonpur Mela
Sonpur Mela- फोटो : Social Media

Sonpur Mela : सोनपुर पशु मेला की शुरुआत 13 नवंबर को होगी. सोनपुर मेला गंगा और गंडक नदी के संगम पर आयोजित किया जाता है, इसलिए यह दिन भगवान हरिहरनाथ की पूजा के लिए बहुत शुभ माना जाता है। साथ ही इस मेले को हरिहरनाथ मेला के रूप में भी जाना जाता है. मुख्य रूप से पशुओं के लिए प्रसिद्ध यह मेला पूरे एशिया से आगंतुकों को आकर्षित करता है. मेले की महत्ता को लेकर पूर्व आईपीएस और साहित्यकार ध्रुव गुप्त कहते हैं कि सोनपुर मेला अपने धार्मिक महत्व के अलावा एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला भी है. साथ ही बिहार की ग्रामीण सभ्यता और संस्कृति का आईना भी सोनपुर पशु मेला है. 


इस मेले की पृष्ठभूमि में यह पौराणिक कथा है कि प्राचीन काल में यहां गंडक के तट पर गज और ग्राह के बीच लंबी लड़ाई चली थी। गज की पुकार पर विष्णु या हरि और शिव अथवा हर ने बीच-बचाव कर इस लड़ाई का अंत कराया था। दंत कथाओं और लोक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन भारत वैष्णवों और शैव भक्तों के बीच सदियों तक चलने वाली लड़ाई का साक्षी रहा था। अपने आराध्यों की श्रेष्ठता स्थापित करने के इस संघर्ष ने हजारों लोगों की बलि ली थी। इसकी समाप्ति के लिए गुप्त वंश के शासन काल में कार्तिक पूर्णिमा को वैष्णव और शैव आचार्यों का एक विराट सम्मेलन सोनपुर के गंडक तट पर आयोजित किया गया। यह सम्मेलन दोनों संप्रदायों के बीच समन्वय की विराट कोशिश साबित हुई जिसमें विष्णु और शिव दोनों को ईश्वर के दो रूप मानकर विवाद का सदा के लिए अंत कर दिया गया। 


उसी दिन की स्मृति में यहां विष्णु और शिव की संयुक्त मूर्तियों के साथ हरिहर नाथ मंदिर की स्थापना और गंडक नदी में स्नान कर भगवान हरिहर नाथ की पूजा शुरू हुई थी। कालांतर में यहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ पशुओं की खरीद-बिक्री का मेला लगने लगा। आधुनिक काल में इसने एक बड़े व्यावसायिक मेले का रूप धर लिया है। मेले में बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों की भी रुचि की हर चीज उपलब्ध है। खेल - खिलौने भी, मनोरंजन भी, धर्म-कर्म भी, घुमक्कड़ी भी और खेती तथा पशुपालन के सामान भी।


ग्रामीण संस्कृति की झलक : पिछले डेढ़ हजार सालों तक बिहार की ग्रामीण संस्कृति और ग्रामीण कला तथा शिल्प का प्रतिनिधित्व करने वाले हरिहरक्षेत्र मेले का अब शहरीकरण होने लगा है। फिर भी यहां आज भी ऐसी बहुत सारी चीजें बची हुई हैं जिन्हें देख और महसूस कर अपनी मिट्टी और सांस्कृतिक जड़ोंसे जुड़ने का सुख मिलता है।


इस बार में मेले में क्या है खास : इस वर्ष विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला 2024 का उद्घाटन 13 नवंबर को होगा और यह 14 दिसंबर तक चलेगा। इसकी तैयारी के लिए 14 अलग-अलग समितियां बनाई गई हैं. 32 दिनों तक चलने वाले इस मेले में 6 दिन पर्यटन विभाग, 12 दिन कला संस्कृति एवं युवा विभाग, 11 दिन जिला प्रशासन, 2 दिन सूचना एवं जनसंपर्क विभाग और 1 दिन अपराध अनुसंधान विभाग द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएंगे. इस बार के मेले में  पुस्तक मेला और साहित्यकारों की गोष्ठी के आयोजन भी खास आकर्षण होंगे. वहीं गंगा महाआरती, पेंटिंग और क्विज प्रतियोगिताएँ भी होंगी.


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