राम कथा में सन्त मुरलीधर जी महाराज ने किया प्रयागराज से चित्रकूट तक प्रभु श्रीराम ,माता सीता और लक्ष्मण की वन यात्रा का वर्णन, भक्ति में डूबे श्रद्धालु
Supaul - जिले के राघोपुर प्रखंड के सिमराही स्थित शांतिनगर में चल रहे नौ दिवसीय श्री राम कथा के आठवें दिन का आयोजन सोमवार को अत्यंत भावुक और धर्ममय वातावरण में संपन्न हुआ। संत मुरलीधर जी महाराज द्वारा प्रस्तुत कथा के प्रत्येक प्रसंग ने हजारों की संख्या में उपस्थित भक्तों को भाव-विभोर कर दिया।
आज के प्रथम सत्र में महाराज जी ने प्रयागराज से चित्रकूट तक प्रभु श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी की वन यात्रा का विस्तृत वर्णन किया। उन्होंने बताया कि वनवास की कठिनाइयों के बीच भी प्रभु राम सदैव धर्म के पथ पर अडिग रहे और यही संदेश हमें जीवन में धैर्य, संयम और सद्गुणों को अपनाने की प्रेरणा देता है।
‘गुरु ही जीवन का प्रकाश’
कथा के दौरान महाराज श्री ने वह प्रसंग सुनाया जब भगवान राम प्रयागराज पहुँचकर महर्षि भरद्वाज से मार्गदर्शन मांगते हैं। यहाँ उन्होंने चौपाई— “नाथ कहिअ हम केहि मग जाहीं” का गहन अर्थ समझाते हुए कहा कि ईश्वर स्वयं मार्ग नहीं पूछते, बल्कि वे हमें यह शिक्षा देते हैं कि सही दिशा पाने के लिए गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य है।
प्रभु की स्तुति
आगे की कथा में बताया गया कि कैसे प्रभु राम, माता सीता और लक्ष्मण जब महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पहुँचे, तो मुनि ने अत्यंत भक्ति-भाव से प्रभु की स्तुति की और उन्हें चित्रकूट को निवास हेतु उत्तम स्थान बताया। इसके बाद प्रभु चित्रकूट की पवित्र भूमि पर पर्णकुटी बनाकर रहने लगे और वनवासी जीवन का शुभारंभ किया।
कथा का भावुक मोड़

कथा का सबसे भावुक चरण तब आया जब महाराज श्री ने भरत जी के अयोध्या लौटने का प्रसंग सुनाया। ननिहाल से आते ही जब भरत जी को महाराज दशरथ के देहांत का समाचार मिला, तो पूरा वातावरण शोक से भर गया। महाराज श्री ने बताया कि भरत जी ने अत्यंत प्रेम, सम्मान और रीति-विधान से अपने पिता का अंतिम संस्कार किया और उनके प्रति अपने पुत्र धर्म का पूर्ण पालन किया।
कैकेयी पर विलाप और राम के प्रति अगाध प्रेम
राम के वनवास का कारण जानकर भरत जी का हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने अपनी माता कैकेयी के कर्मों पर गहरा दुःख व्यक्त किया और कहा कि राम के बिना अयोध्या उनके लिए शून्य है। इसी भाव से भरत जी ने निर्णय लिया कि वे सिंहासन स्वीकार नहीं करेंगे, बल्कि वन जाकर प्रभु राम को अयोध्या वापस लाने का विनम्र प्रयास करेंगे। पूरी अयोध्या की प्रजा, गुरुजन और मंत्रीमंडल भरत जी के साथ चित्रकूट की ओर प्रस्थान की तैयारी में जुट गए हैं।
18 नवंबर को कथा का भव्य समापन
मुरलीधर महाराज ने बताया कि नौ दिवसीय कथा का समापन मंगलवार यानी 18 नवंबर को सुबह 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक आयोजित होगा। अंतिम दिवस पर भरत मिलाप और राजनीति का आदर्श स्वरूप जैसे प्रेरक प्रसंगों का वर्णन किया जाएगा।
कथा स्थल पर उमड़ा श्रद्धा का सागर
आज के आयोजन में आसपास के कई गांवों और प्रखंडों से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुँचे। भक्ति-गीतों, चौपाइयों और महाराज श्री की सरल लेकिन गहन व्याख्या ने सभी के मन को छू लिया।