केंद्र सरकार का बड़ा कदम: UPI को बढ़ावा देने के लिए इंसेंटिव स्कीम को 2026 तक बढ़ाया

केंद्र सरकार का यह कदम डिजिटल भारत के निर्माण की दिशा में एक और अहम पहल है। जहां एक ओर छोटे दुकानदारों को लाभ मिलेगा, वहीं दूसरी ओर, यह स्कीम वैश्विक पेमेंट कंपनियों के लिए बाजार की स्थिति को चुनौतीपूर्ण बना सकती है।

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UPI- फोटो : Social Media

भारत में डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में क्रांति लाने वाले यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) को और भी मजबूती देने के लिए केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। केंद्रीय कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णय के मुताबिक, UPI को प्रमोट करने के लिए दी जा रही इंसेंटिव स्कीम को एक साल और बढ़ा दिया गया है। अब यह स्कीम 31 मार्च 2026 तक जारी रहेगी और इस पर लगभग 1,500 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।

इस योजना के तहत छोटे दुकानदारों और व्यापारियों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि इस स्कीम के अंतर्गत, रुपे डेबिट कार्ड और BHIM-UPI के जरिए पर्सन टू मर्चेंट (P2M) ट्रांजैक्शंस करने पर छोटे दुकानदारों को 0.15% इंसेंटिव मिलेगा, जो 2,000 रुपये तक के ट्रांजैक्शन पर लागू होगा। यह एक तरह से व्यापारियों के लिए अतिरिक्त लाभ के रूप में देखा जा सकता है, जो उनकी दिन-प्रतिदिन की लागत को कम करने में मदद करेगा।

लेकिन इस स्कीम के विस्तार का असर सिर्फ छोटे व्यापारियों तक सीमित नहीं रहेगा। इसके जरिए सरकार एक बड़ा संदेश दे रही है – भारत को पूरी तरह से डिजिटल भुगतान की दिशा में अग्रसर करना। एक ओर जहां यह छोटे दुकानदारों को मदद करेगा, वहीं दूसरी ओर यह वैश्विक पेमेंट कंपनियों, जैसे कि वीजा और मास्टरकार्ड के लिए नई चुनौतियाँ भी पेश करेगा। इन कंपनियों पर रुपे डेबिट कार्ड के बढ़ते प्रयोग का दबाव बढ़ेगा, जो पहले से ही ग्लोबल पेमेंट मार्केट में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

क्या है P2M ट्रांजैक्शन और इसका महत्व?

पर्सन टू मर्चेंट (P2M) ट्रांजैक्शन का मतलब है वह डिजिटल लेन-देन, जो ग्राहक और व्यापारी के बीच UPI के माध्यम से किया जाता है। यानी, जब आप अपनी खरीदारी के लिए किसी छोटे या बड़े दुकानदार को UPI के जरिए भुगतान करते हैं, तो यह एक P2M ट्रांजैक्शन कहलाता है। पहले जहां भारत में नकद भुगतान की प्रथा प्रमुख थी, अब डिजिटल लेन-देन ने अपनी मजबूत जगह बना ली है।

क्या है इसका बड़ा राजनीतिक और आर्थिक असर?

इस फैसले का राजनीतिक और आर्थिक संदर्भ भी बहुत महत्वपूर्ण है। भारत सरकार डिजिटल इंडिया के एजेंडे को तेज़ी से आगे बढ़ा रही है, और यह कदम इस दिशा में एक और मजबूत कदम साबित होगा। सरकार का लक्ष्य है कि अधिक से अधिक लोग डिजिटल भुगतान की ओर बढ़ें, जिससे भ्रष्टाचार को कम किया जा सके, टैक्स कलेक्शन को बढ़ाया जा सके और समग्र अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सके।

वहीं, वैश्विक पेमेंट कंपनियां, जैसे वीजा और मास्टरकार्ड, जो लंबे समय से भारतीय बाजार में अपने कारोबार को बढ़ा रही हैं, उनके लिए यह एक चेतावनी हो सकती है। रुपे डेबिट कार्ड के बढ़ते उपयोग से इन कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी को भी नुकसान हो सकता है, क्योंकि रुपे की फीस इन कंपनियों से कहीं कम होती है। इस स्कीम से केवल व्यापारियों को ही नहीं, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों को भी फायदा होगा। डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने से वित्तीय समावेशन में तेजी आएगी, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां अभी भी कैश लेन-देन का प्रमुख रूप से इस्तेमाल होता है। छोटे दुकानदारों को भी डिजिटल भुगतान के जरिए व्यवसाय में पारदर्शिता मिलेगी, जिससे उनकी आय में वृद्धि हो सकती है।

इस कदम से यह भी स्पष्ट हो रहा है कि सरकार डिजिटल भुगतान के मामले में भारतीय नागरिकों की आदतों को बदलने के लिए तैयार है, और इसके लिए बड़े निवेश की योजना बनाई गई है।


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