Airport user charges: दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट पर 22 गुना तक बढ़ सकते हैं चार्जेज, टिकटें होंगी महंगी; मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

Airport user charges: TDSAT के आदेश के बाद दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट पर UDF में 22 गुना बढ़ोतरी संभव है। घरेलू–अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की टिकट कीमतें भारी बढ़ेंगी। मामला सुप्रीम कोर्ट में है।

Airport user charges
एयरपोर्ट पर बढ़ेगी मंहगाई!- फोटो : social media

Airport user charges: देश के दो बड़े हवाई अड्डों—दिल्ली और मुंबई—से उड़ान भरने वाले यात्रियों के लिए आने वाले दिनों में सफर काफी महंगा हो सकता है। टेलीकॉम डिस्प्यूट्स सेटलमेंट एंड अपीलेट ट्रिब्यूनल (TDSAT) के हालिया आदेश ने यूज़र डेवलपमेंट फीस (UDF) सहित कई एयरपोर्ट चार्जेज में भारी बढ़ोतरी का रास्ता खोल दिया है। अंदेशा है कि यह वृद्धि सामान्य स्तर से कई गुना अधिक होगी।

इतनी बड़ी बढ़ोतरी क्यों हो रही है?

ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में माना कि 2009 से 2014 तक दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट को लगभग पचास हजार करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान हुआ। वजह यह बताई गई कि उस अवधि में हवाई अड्डों की संपत्तियों का सही मूल्यांकन टैरिफ तय करते समय नहीं किया गया। अब इस कमी की भरपाई यात्रियों से वसूले जाने वाले शुल्कों के माध्यम से की जा सकती है।

यात्रियों पर कितना अतिरिक्त बोझ पड़ेगा?

TDSAT का आदेश अगर लागू हो जाता है तो दिल्ली में घरेलू यात्रियों से ली जाने वाली फीस लगभग दस गुना और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों से करीब दस गुना तक बढ़ सकती है। मुंबई में यह वृद्धि और भी ज़्यादा हो सकती है। इस बदलती स्थिति का सीधा असर टिकट की कीमतों पर पड़ेगा और हवाई यात्रा सामान्य लोगों की पहुंच से बाहर होती दिख सकती है।

एयरलाइंस और AERA का विरोध—मामला अब सुप्रीम कोर्ट में

इतनी भारी वृद्धि को लेकर एयरलाइंस और एयरपोर्ट इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी (AERA) दोनों ही चिंतित हैं। कई घरेलू और विदेशी एयरलाइंस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी है। सभी का कहना है कि यात्रियों पर इतना बड़ा बोझ डालना उचित नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई अब जल्द होने वाली है।

विवाद की शुरुआत कैसे हुई?

2006 में दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट के निजीकरण के बाद टैरिफ तय करने की जिम्मेदारी 2009 में बनी AERA को मिली। उस समय एयरपोर्ट की वास्तविक संपत्तियों से जुड़ा पूरा डेटा उपलब्ध नहीं था, इसलिए एक अस्थायी मॉडल—HRAB—के आधार पर टैरिफ निर्धारित किए गए। इसी प्रक्रिया में नॉन-एरोनॉटिकल संपत्तियों को शामिल नहीं किया गया, जिनसे एयरपोर्ट को बड़े पैमाने पर कमाई हो सकती थी।एयरपोर्ट ऑपरेटरों ने इसे गलत बताते हुए वर्षों तक कानूनी लड़ाई लड़ी। पहले AERA के फैसले का समर्थन हुआ, लेकिन 2025 में TDSAT ने इसे उलट दिया और माना कि नॉन-एरोनॉटिकल एसेट्स को भी मूल्यांकन में जोड़ना चाहिए था।

यात्रियों पर इसका सीधा प्रभाव

अगर नया शुल्क लागू होता है, तो अंतरराष्ट्रीय यात्राओं का खर्च हजारों रुपये बढ़ जाएगा। घरेलू यात्रा भी पहले की तुलना में काफी महंगी हो जाएगी। एयरलाइंस को भी टिकट दरें बढ़ानी होंगी, जिसका असर यात्रियों की संख्या पर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे फैसलों से एयर ट्रैफिक में गिरावट आ सकती है और हवाई यात्रा का आकर्षण कम हो सकता है।

आगे क्या होगा?

अब पूरी स्थिति सुप्रीम कोर्ट के अगले फैसले पर निर्भर करेगी। सरकार भी इस बात से चिंतित है कि किसी भी विवाद का सबसे बड़ा नुकसान यात्रियों को नहीं झेलना चाहिए। आने वाले दिनों में यह मुद्दा देशभर के यात्रियों और विमानन क्षेत्र की दिशा तय करने वाला साबित हो सकता है।