GST on insurance: GST 2.0 लागू होने के बाद भी क्यों नहीं सस्ता हुआ इंश्योरेंस? ग्राहकों में दिखी नाराज़गी

GST on insurance: GST 2.0 के तहत पर्सनल लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस पर 18% GST हटाया गया, लेकिन हजारों ग्राहकों को राहत नहीं मिली। सर्वे में 43% ने शिकायत की। पूरी रिपोर्ट पढ़ें।

 GST on insurance
हेल्थ इंश्योरेंस में लूट!- फोटो : social media

 GST on insurance:  साल 2025 में जीएसटी 2.0 लागू होने के साथ ही सबसे बड़ा बदलाव यह था कि सरकार ने व्यक्तिगत लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस पर लगने वाला 18% GST पूरी तरह खत्म कर दिया। इसका उद्देश्य स्पष्ट था—बीमा को हर परिवार की पहुँच में लाना, पहली बार बीमा लेने वालों को बढ़ावा देना और मध्यम वर्ग पर बढ़ते खर्च का बोझ हल्का करना। भारत में आज भी हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस की पहुंच विकसित देशों जितनी नहीं है। महंगे अस्पताल खर्च और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले करोड़ों लोगों को देखते हुए सरकार लंबे समय से बीमा को आवश्यक और सुलभ सेवा बनाना चाहती थी। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह राहत केवल व्यक्तिगत पॉलिसियों के लिए लागू हुई है। 

कंपनियों के ग्रुप हेल्थ कवर, कॉर्पोरेट मेडिक्लेम और संस्था-आधारित लाइफ इंश्योरेंस पर पुराना 18% GST पहले की तरह जारी है। सरकार का तर्क है कि कंपनियां इस टैक्स को अपने व्यावसायिक खर्च में समायोजित कर सकती हैं, इसलिए राहत सीधे आम नागरिकों को दी गई, लेकिन वास्तविकता यह है कि बहुत से लोगों को यह फायदा अब तक नहीं मिला। कई ग्राहकों ने शिकायत की कि GST हटने के बावजूद उनका प्रीमियम या तो कम नहीं हुआ या कंपनियों ने बेस कीमत ही बढ़ा दी। सवाल यह है कि ऐसा क्यों हुआ?

ग्राहकों को लाभ क्यों नहीं मिला? 

Local Circles की तरफ से किए गए एक राष्ट्रीय सर्वे में लगभग अठारह हजार से ज्यादा लोगों ने भाग लिया। इनसे पूछा गया कि सितंबर 2025 के बाद पॉलिसी खरीदने या रिन्यू कराने पर उन्हें GST हटने का वास्तविक लाभ मिला या नहीं। सर्वे के आकड़ों ने बड़ी असमानता दिखा दी। लगभग चार में से दो लोग इस फैसले का कोई फायदा नहीं उठा पाए। कई लोगों को पूरा टैक्स चार्ज कर दिया गया, जबकि कुछ के लिए प्रीमियम का बेस अमाउंट ही बढ़ा दिया गया। कुछ ग्राहकों ने कहा कि उनके इनवॉइस में अभी भी GST जोड़ा जा रहा है, जबकि टैक्स हट चुका है। 

सबसे अहम बात यह रही कि करीब तैंतालीस प्रतिशत लोगों को किसी भी रूप में राहत नहीं दी गई। इससे लगता है कि या तो कंपनियों ने निर्देशों को ठीक से लागू नहीं किया या फिर प्राइस एडजस्टमेंट इस तरह किया कि छूट का प्रभाव ही दिखाई नहीं दिया। कई बीमाधारकों ने यह भी बताया कि एजेंट पुराने रेट कार्ड से काम कर रहे थे और उन्हें अपडेट समय पर नहीं मिला। कुछ लोगों को कंपनी की तरफ से गलत इनवॉइस भेजी गई, जिससे भ्रम और बढ़ा।

GST खत्म होने पर भी बीमा प्रीमियम क्यों बढ़ा?

जो ग्राहक यह उम्मीद कर रहे थे कि GST हटने के बाद उनका प्रीमियम आसानी से कम हो जाएगा, उन्हें बेस कीमत बढ़ने से बड़ा झटका लगा। इसके पीछे बीमा क्षेत्र की कई आर्थिक चुनौतियाँ काम कर रही हैं। भारत में चिकित्सा सेवाओं की कीमत हर साल तेज़ी से बढ़ रही है। सर्जरी, दवाइयां, ICU और अस्पताल के कमरे का किराया पिछले कुछ वर्षों में लगातार ऊपर गया है। इस मेडिकल इंफ्लेशन का असर सीधे बीमा कंपनियों की लागत पर पड़ता है।

कोविड के बाद से क्लेम रेशियो में बढ़त

कोविड के बाद से क्लेम रेशियो भी कई उत्पादों में काफी बढ़ गया है। कई कंपनियों को प्रीमियम का बड़ा हिस्सा क्लेम चुकाने में लग जाता है और उन्हें लाभ मुश्किल से मिलता है। ऐसी स्थिति में टैक्स हटने के साथ-साथ अगर प्रीमियम कम कर दिया जाए, तो कंपनियों को बड़े राजस्व घाटे का खतरा हो सकता है।इसी कारण कई कंपनियों ने प्रीमियम के बेस रेट को बढ़ाकर अपने नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की। साथ ही, IRDAI की तरफ से  नए नियमों के तहत कवरेज बढ़ाने और डिजिटल सुविधाएँ बेहतर करने का दबाव भी कंपनियों की लागत बढ़ा रहा है। कंपनियां यह भी स्वीकार नहीं करना चाहतीं कि GST हटने से उनकी आय पर असर पड़े, इसलिए प्रीमियम संरचना में बदलाव करके उन्होंने लाभधारकों तक राहत पूरी तरह नहीं पहुँचने दी।

मध्यम वर्ग उलझा, सरकार की मंशा अधूरी

सरकार चाहती थी कि टैक्स हटने के कारण व्यक्तिगत पॉलिसियाँ सस्ती हों और लोग अधिक संख्या में इंश्योरेंस खरीदें। लेकिन कंपनियों की ओर से प्रीमियम बढ़ाए जाने और छूट का लाभ स्पष्ट रूप से न देने से आम लोगों को वह राहत नहीं मिल रही जिसकी उम्मीद की गई थी।