भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिवसीय बैठक सोमवार, 7 अक्टूबर 2024 से शुरू हो चुकी है, और इस बार आम आदमी के साथ-साथ कारोबार जगत को भी बड़ी उम्मीदें हैं। सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या 9 अक्टूबर को आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास रेपो रेट में कटौती की घोषणा करेंगे या फिर से दरों को यथावत रखा जाएगा।
इस फैसले का सीधा असर घर, वाहन, और अन्य प्रकार के लोन पर पड़ेगा। रेपो रेट में कमी का मतलब होगा कि बैंकों को सस्ते कर्ज मिलेंगे, और वे इसे आम उपभोक्ताओं तक सस्ती ब्याज दरों में ट्रांसफर कर सकेंगे। लेकिन, मुद्रास्फीति की स्थिति और अंतरराष्ट्रीय बाजार की अस्थिरता के चलते इस बार केंद्रीय बैंक के सामने कठिन निर्णय है।
विशेषज्ञों का मानना है कि खुदरा मुद्रास्फीति (महंगाई) अब भी एक अहम मुद्दा बनी हुई है। हाल के महीनों में महंगाई दर 5% के आसपास रही है, जो आरबीआई के 4% के लक्ष्य से अधिक है। वहीं, वैश्विक तेल कीमतों में बढ़ोतरी और पश्चिम एशिया में ईरान-इजराइल संघर्ष जैसी घटनाओं ने बाजार में अस्थिरता बढ़ा दी है। ऐसे में, रेपो रेट में कटौती करना एक जोखिमभरा कदम हो सकता है, क्योंकि यह महंगाई को और भड़का सकता है।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई शायद इस बार भी ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करेगा। महंगाई के वर्तमान हालात और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए, यह मुमकिन है कि केंद्रीय बैंक फिलहाल यथास्थिति बनाए रखे। हालांकि, भविष्य में मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाने के बाद ही रेपो रेट में कटौती की संभावना नजर आती है।
आरबीआई के लिए यह बैठक इस साल की सबसे महत्वपूर्ण बैठकों में से एक है। भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी के संकेत मिलने के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति आरबीआई की नीतियों पर गहरा असर डाल रही है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दर कटौती और वैश्विक मंदी की आशंकाओं ने केंद्रीय बैंकों पर अतिरिक्त दबाव डाला है।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि रेपो रेट में कोई बदलाव न करके, आरबीआई अर्थव्यवस्था में संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर सकता है। भविष्य में, अगर महंगाई दर नियंत्रित होती है, तो दिसंबर या अगले साल की शुरुआत में ब्याज दरों में कटौती संभव हो सकती है। अब देखना यह है कि 9 अक्टूबर को आरबीआई का फैसला क्या होता है