Indian Rupee: मुंह के बल गिरा भारत का रुपया, डॉलर के दबाव के आगे रुपये की सांसें भारी, रिकॉर्ड निचले स्तर पर फिसली भारतीय मुद्रा, बाज़ार से पूंजी का पलायन बढ़ा

Indian Rupee: शुरुआती कारोबार में ही रुपया 91.03 प्रति डॉलर तक फिसल गया, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड गिरावट है। यह सिर्फ़ मुद्रा का आंकड़ा नहीं, बल्कि भारत की ट्रेड पोज़िशन, पूंजी प्रवाह और वैश्विक भरोसे पर मंडराते सवालों की तस्वीर है।

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डॉलर के दबाव के आगे रुपये की सांसें भारी- फोटो : social Media

Indian Rupee: मंगलवार को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बेचैन कर देने वाला संकेत सामने आया, जब रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। शुरुआती कारोबार में ही रुपया 91.03 प्रति डॉलर तक फिसल गया, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड गिरावट है। यह सिर्फ़ मुद्रा का आंकड़ा नहीं, बल्कि भारत की ट्रेड पोज़िशन, पूंजी प्रवाह और वैश्विक भरोसे पर मंडराते सवालों की तस्वीर है।

रुपये की यह कमजोरी लगातार दूसरे दिन देखने को मिली है। इससे पहले सोमवार को भी रुपया 90.74 के स्तर पर बंद हुआ था, जो पिछले बंद भाव से करीब 25 पैसे की गिरावट दर्शाता है। बाज़ार के जानकारों का कहना है कि यह गिरावट अचानक नहीं, बल्कि वैश्विक दबावों और नीतिगत अनिश्चितताओं का नतीजा है।

इस पूरी तस्वीर के केंद्र में वॉशिंगटन से आ रहा टैरिफ का दबाव है। अमेरिका की सख़्त व्यापार नीति ने भारत के निर्यात पर असर डाला है, जिससे डॉलर की मांग बढ़ी और रुपया कमजोर होता चला गया। ऊपर से विदेशी निवेशकों का लगातार भारतीय बाज़ार से बाहर निकलना चाहे वह इक्विटी हो या डेट रुपये पर दोहरा बोझ बन गया है।

इस साल रुपया एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में शामिल हो चुका है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इसमें अब तक करीब 6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। भारत की स्थिति इसलिए भी नाज़ुक मानी जा रही है क्योंकि वह अमेरिका के साथ ट्रेड डील के बिना एकमात्र बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसका सीधा असर निवेशकों की धारणा पर पड़ा है।

शेयर बाज़ार भी इस दबाव से अछूता नहीं रहा। नवंबर में ऑल-टाइम हाई के करीब पहुंचा NSE निफ्टी 50 करीब 1.7 फीसदी तक फिसल गया था। दिसंबर में ही ग्लोबल फंड्स ने लोकल इक्विटी से 1.6 बिलियन डॉलर निकाल लिए, जिससे पिछले महीनों का निवेश भी बेअसर हो गया। विदेशी निवेशक इस साल अब तक 18 बिलियन डॉलर से ज्यादा के शेयर बेच चुके हैं, जो रिकॉर्ड आउटफ्लो की ओर इशारा करता है।

भारतीय रिज़र्व बैंक बाज़ार में हस्तक्षेप कर रुपये की गिरावट को थामने की कोशिश कर रहा है, ताकि अल्पकालिक उतार-चढ़ाव को काबू में रखा जा सके। मगर आने वाले दिनों में टैरिफ वार्ता, महंगाई के आंकड़े (CPI) और वैश्विक संकेतक ही तय करेंगे कि रुपया और बाज़ार किस राह पर जाएंगे। फिलहाल, अर्थव्यवस्था की नब्ज़ तेज़ है और निवेशकों की निगाहें हर हलचल पर टिकी हुई हैं।