Bihar Crime:JLNMCH'गरीबों का मसीहा' या 'घोटालेबाजों का स्वर्ग'? यहाँ तो 'सरकारी खजाने की लूट' का चल रहा है नया ओलंपिक ! जानिए कैसे हुआ अर्न लीव में लाखों का खेल
Bihar Crime: जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल सिर्फ मरीजों का इलाज ही नहीं करता, बल्कि 'सरकारी खजाने की लूट' में भी पीएचडी कर रहा है, और वह भी बड़े शातिर तरीके से!

Bihar Crime: वाह! जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) को सलाम! यह अस्पताल सिर्फ मरीजों का इलाज ही नहीं करता, बल्कि 'सरकारी खजाने की लूट' में भी पीएचडी कर रहा है, और वह भी बड़े शातिर तरीके से! कुछ दिन पहले, जब खबर आई कि एक नर्स मैडम तीन साल तक 'छुट्टी पर' रहीं और उन्हें इसके लिए 28 लाख रुपये का वेतन और प्रमोशन 'इनाम' में दिया गया, तो लगा कि बस यहीं हद है. लेकिन नहीं! जेएलएनएमसीएच के 'प्रतिभाशाली' अधिकारियों ने तो लगता है 'घोटाला' शब्द को ही नया अर्थ दे दिया है.
'रिटायरमेंट पार्टी' या 'रिश्वत-पार्टी'?
अब नया खुलासा हुआ है कि अस्पताल से रिटायर हुई चार नर्सों को 'उपार्जित अवकाश' (Earned Leave) के नाम पर जमकर 'दान' दिया गया है. एक नर्स को तो 205 दिन की जगह पूरे 300 दिन के उपार्जित अवकाश की राशि दे दी गई – यानी सीधे 95 दिन का 'एक्स्ट्रा बोनस'! और ये 'आशीर्वाद' अगस्त 2023 में ही उनके खाते में भेज दिया गया था. बाकी दो नर्सों को 3 फरवरी 2024 को 78-78 दिन अधिक और चौथी नर्स को 73 दिन अधिक उपार्जित अवकाश का लाभ दिया गया.
इन चारों 'भाग्यशाली' नर्सों को उपार्जित अवकाश के रूप में कुल आठ लाख 89 हजार 991 रुपये की 'सेवा' दी गई है. एक नर्स को 2.55 लाख, दूसरे को 2.15 लाख, तीसरे को भी 2.15 लाख और चौथी को 2.02 लाख रुपये सीधे उनके बैंक खातों में ट्रांसफर कर दिए गए. ये 'घोटाला' एक बार फिर अस्पताल के अधीक्षक कार्यालय से ही अंजाम दिया गया है, जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि 'हाथ धुले' नहीं, बल्कि 'खजाने में डूबे' हुए हैं.
पहले नर्स प्रतिमा कुमारी-6 का मामला सामने आया था, जहाँ उन्हें बिना ड्यूटी के तीन साल एक माह का करीब 28 लाख रुपये का वेतन दे दिया गया था. इस मामले में जिला अधिकारी ने भी जांच के आदेश दिए हैं. अब ये 'उपार्जित अवकाश' वाला घोटाला ऑडिट में पकड़ा गया है, जिससे साफ है कि बिल बनाने वाले ही इस 'खेल' के असली खिलाड़ी हैं.
सवाल तो उठेंगे ही...
एक के बाद एक जिस तरह के घोटाले जेएलएनएमसीएच में सामने आ रहे हैं, उससे यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अस्पताल में सब कुछ ठीक चल रहा है? या फिर ये सिर्फ 'हिमखंड का एक छोटा सा टुकड़ा' है? क्या इसी तरह का 'गबन का खेल' अस्पताल के दूसरे विभागों में भी चल रहा होगा? इससे इनकार नहीं किया जा सकता.
बहरहाल लगता है अब जेएलएनएमसीएच को सिर्फ मरीजों के इलाज के लिए नहीं, बल्कि अपने 'वित्तीय लेन-देन' की गहन जांच के लिए भी 'आईसीयू' की जरूरत है. आखिर सरकारी खजाने का यह 'खुला दरबार' कब तक चलता रहेगा?सबसे बड़ा सवाल तो यहीं है....