Bihar Crime: बिहार के अस्पताल में खून की कालाबाजारी के आरोप से मचा हड़कंप, लोगों के उम्मीद का हो रहा है कत्ल, जांच शुरु

Bihar Crime: खून, जिसे लोग नेकी, सेवा और इंसानी हमदर्दी के नाम पर दान करते हैं वही खून क्या वाक़ई ज़रूरतमंदों तक पहुँच पाता है? या फिर उसके साथ भी दुकानों की तरह मोलभाव होता है?

Muzaffarpur Blood black market scandal
अस्पताल में खून की कालाबाजारी !- फोटो : reporter

Bihar Crime: उत्तरी बिहार के सबसे बड़े अस्पताल श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल  मुज़फ्फरपुर से जो तस्वीर सामने आई है, उसने इंसानियत को झकझोर कर रख दिया है। ख़ून, जिसे लोग नेकी, सेवा और इंसानी हमदर्दी के नाम पर दान करते हैं, वही ख़ून क्या वाक़ई ज़रूरतमंदों तक पहुँच पाता है? या फिर उसके साथ भी दुकानों की तरह मोलभाव होता है? यही सवाल आज पूरे बिहार के स्वास्थ्य तंत्र पर एक बड़ा इल्ज़ाम बनकर खड़ा है।

18 नवंबर को एजुकेशनल सोसाइटी NGO द्वारा थैलेसीमिया से पीड़ित मासूम बच्चों के लिए SKMCH के उमनगर गेट नंबर 1 पर रक्तदान शिविर लगाया गया। NGO के अनुसार, कुल 15 लोगों ने रक्तदान किया जिनमें मुज़फ्फरपुर के सिटी एसपी कोटा किरण, पुलिसकर्मी और कई आम नागरिक शामिल थे। लेकिन जब SKMCH ब्लड बैंक की ओर से आधिकारिक सूची आई, तो उसमें सिर्फ 8 लोगों के नाम दर्ज थे। बाकी 7 दानदाताओं का कहीं कोई ज़िक्र नहीं। अब ज़हन में बड़ा सवाल गूंज रहा है  आख़िर वो 7 यूनिट रक्त कहाँ गया?

NGO के प्रयास के बाद मामला जिला प्रशासन और पुलिस के संज्ञान में आया। दोनों एजेंसियाँ जांच में जुटी हैं। लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब SKMCH में ब्लड की कालाबाज़ारी के आरोप लगे हों। हर बार जांच हुई, और हर बार फाइलों पर धूल जम गई। अबकी बार जनता में गुस्सा है और सवाल ज़्यादा तीखे।

SDO पूर्वी तुषार कुमार ने सख़्त कार्रवाई का भरोसा दिलाया है। वहीं अस्पताल की सुपरिटेंडेंट विभा कुमारी ने माना कि रजिस्टर में कई नामों के आगे गलत मोबाइल नंबर दर्ज मिले जो स्वयं इस गहरे खेल की ओर इशारा कर रहा है। उनका यह स्वीकारना ही यह बताने के लिए काफी है कि कहीं न कहीं सिस्टम में एक ‘काली परत’ मौजूद है, जहाँ नेकी का ख़ून भी मुनाफ़े की मंडी में बिक सकता है।

यह मामला सिर्फ SKMCH का नहीं, बल्कि उस मानवीय संवेदना का सवाल है, जो रक्तदान को एक इबादत की तरह मानती है। अगर यही ख़ून भी बाज़ार में बिकने लगे, तो फिर इंसानियत बची कहाँ?

रिपोर्ट- मणिभूषण शर्मा