उन्नाव रेप केस: भाजपा के पूर्व विधायक को 'सुप्रीम' झटका, सर्वोच्च न्यायालय ने हाई कोर्ट के फैसले पर लगाया रोक, भेजा नोटिस
Unnao rape case: भाजपा नेता को सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला लेते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा निलंबित कर उन्हें जमानत पर रिहा करने का निर्देश..
Unnao rape case: उन्नाव रेप केस से जुड़ी बड़ी खबर सामने आ रही है। भाजपा के पूर्व विधायक को सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। जानकारी अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला लेते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा निलंबित कर उन्हें जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया था। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने इस मामले में सेंगर को नोटिस भी जारी किया है।
सुप्रीमो कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर लगाई रोक
सुनवाई के दौरान सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट के जिस जज ने यह फैसला दिया है, वे एक सक्षम न्यायाधीश हैं, लेकिन गलती किसी से भी हो सकती है। उन्होंने कहा कि पॉक्सो कानून के तहत यदि एक कांस्टेबल को लोक सेवक माना जा सकता है तो एक विधायक को अलग क्यों रखा गया, यह गंभीर चिंता का विषय है। इससे पहले सीबीआई ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को कानून के विरुद्ध, गलत और समाज के लिए गंभीर खतरा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सीबीआई ने दलील दी कि सजा निलंबित कर हाई कोर्ट ने पॉक्सो अधिनियम के उद्देश्य को नजरअंदाज किया है।
भाजपा के पूर्व विधायक को सुप्रीम झटका
जानकारी अनुसार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले पीड़िता की तबीयत बिगड़ गई थी, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया। हालांकि सुनवाई के दौरान पीड़िता अदालत में मौजूद रही। सीबीआई का कहना था कि हाई कोर्ट यह समझने में विफल रहा कि सेंगर एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि थे और जनता के विश्वास के पद पर आसीन थे, जिससे उनकी जिम्मेदारी आम नागरिक से कहीं अधिक बनती है।
सुनवाई के दौरान रखे गए तर्क
सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि यह मामला बेहद गंभीर है। घटना के समय पीड़िता 16 वर्ष से भी कम उम्र की थी। सेंगर पर आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 5 और 6 के तहत आरोप तय किए गए थे। तुषार मेहता ने कहा कि यदि कोई कांस्टेबल या सेना का अधिकारी इस तरह का अपराध करता है, तो उसे एग्रेवेटेड सेक्शुअल असॉल्ट का दोषी माना जाता है। ऐसे में अगर कोई जिम्मेदार पद पर बैठा व्यक्ति ऐसा करता है, तो उसे भी उसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए। इस पर सीजेआई ने कहा कि यदि कोई प्रभावशाली पद पर बैठा व्यक्ति मदद मांगने आई बच्ची का शोषण करता है, तो इसे गंभीर अपराध माना जाना चाहिए। तर्कों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के पक्ष में है। अदालत ने यह भी कहा कि आमतौर पर जेल से बाहर आए व्यक्ति की स्वतंत्रता का ध्यान रखा जाता है, लेकिन यह मामला विशेष है क्योंकि सेंगर एक अन्य मामले में पहले से जेल में हैं।
क्या है पूरा मामला
उन्नाव की रहने वाली पीड़िता ने वर्ष 2017 में तत्कालीन बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर बलात्कार का आरोप लगाया था। शुरुआत में पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया था। वर्ष 2018 में मुख्यमंत्री आवास के पास पीड़िता द्वारा आत्मदाह का प्रयास किए जाने के बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया। पीड़िता उस समय नाबालिग थी। वर्ष 2019 में दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने सेंगर को पॉक्सो अधिनियम के तहत एग्रेवेटेड पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट का दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। सेंगर के वकीलों ने तर्क दिया था कि विधायक को लोक सेवक मानना गलत है।
फिलहाल जेल में है आरोपी
इसी आधार पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अपील लंबित रहने तक सजा निलंबित कर सशर्त जमानत दी थी। शर्तों के अनुसार, सेंगर पीड़िता के गांव से पांच किलोमीटर के दायरे में नहीं जाएंगे और किसी भी गवाह को प्रभावित नहीं करेंगे। हालांकि पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के मामले में सेंगर को 10 साल की सजा सुनाई जा चुकी है, जिसके कारण वह फिलहाल जेल में ही हैं।