Basant Panchami 2025: सरस्वती पूजा, जिसे वसंत पंचमी के नाम से भी जाना जाता है, माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व आमतौर पर जनवरी या फरवरी में पड़ता है। वसंत पंचमी न केवल मां सरस्वती की आराधना का दिन है, बल्कि यह बसंत ऋतु के आगमन का संकेत भी देता है। इस दिन प्रकृति में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार होता है।
सरस्वती पूजा की परंपरा और विधि
इस दिन प्रातः स्नान कर पीले या सफेद वस्त्र धारण करने का महत्व है। पूजा की शुरुआत मां सरस्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित कर की जाती है। देवी को पीले फूल, हल्दी, अक्षत, सफेद वस्त्र और मिठाई अर्पित की जाती है। इसके बाद "ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः" मंत्र का जाप करने से विद्या और ज्ञान की वृद्धि के लिए मां सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है।
मां सरस्वती के प्राकट्य की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया और 84 लाख योनियों की रचना की, जिसमें मानव जीवन भी शामिल था। हालांकि, आरंभ में मनुष्य बोलने, लिखने और संवाद करने की कला से अनजान था। तब ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती का आह्वान किया, जिन्होंने मानव जाति को वाणी, संगीत, वाद-विवाद और लेखन की कला प्रदान की। तभी से मां सरस्वती की पूजा की परंपरा चली आ रही है।
वसंत पंचमी को सरस्वती पूजा क्यों की जाती है?
कई लोगों को यह भ्रम है कि बसंत पंचमी पर मां सरस्वती का जन्म हुआ था, लेकिन ऐसा नहीं है। ज्योतिषाचार्य राम कुमार झा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के बाद सरस्वती माता का आह्वान किया। उन्होंने ही मनुष्यों को बोलने, पढ़ने और लिखने की शक्ति दी। इसी कारण मां सरस्वती की पूजा सदियों से होती आ रही है। वसंत पंचमी का यह पावन पर्व ज्ञान, बुद्धि और संगीत की देवी मां सरस्वती की आराधना के लिए समर्पित है।