Religion: कर्मयोगी की साधना: नारद का भ्रम और परमानंद का रहस्य

नारद को कर्मयोगी किसान के आनंद का रहस्य जानने को मिला। किसान काम करते हुए भी सीताराम जपकर भगवान का सानिध्य प्राप्त करता था, जबकि नारद को वैकुण्ठ जाना पड़ता था। विष्णु ने समझाया कि सच्चा ध्यान कर्म में भी ईश्वर को याद करने में है।

नारद का भ्रम और परमानंद का रहस्य
कर्मयोगी की साधना- फोटो : social Media

Religion: नारद मुनि जहां भी जाते थे, बस ‘नारायण, नारायण’ कहते रहते थे। नारद को तीनों लोकों में जाने की छूट थी। वह आराम से कहीं भी आ-जा सकते थे। 

एक दिन उन्होंने देखा कि एक गृहस्थ कर्मवान किसान परमानंद की अवस्था में अपनी जमीन जोत रहा था। नारद को यह जानने की उत्सुकता हुई कि उसके आनंद का राज क्या है?  जब वह उस किसान से बात करने पहुंचे, तो वह अपनी जमीन को जोतने में इतना डूबा हुआ था, कि उसने नारद पर ध्यान भी नहीं दिया।

दोपहर के समय, उसने काम से थोड़ा विराम लिया और खाना खाने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठा। उसने बर्तन को खोला, जिसमें थोड़ा सा भोजन था। 

उसने सिर्फ (सीताराम सीताराम सीताराम) कहा और खाने लगा। आप जिस पल जीवन के एक आयाम से दूसरे आयाम में जाते हैं उस समय अगर आप सिर्फ अपनी जागरूकता कायम रख पाएं, तो आपको मुक्ति मिल सकती है।कर्म करते हुए आप कितने जागरूक हैं यह इस पर निर्भर करता है

नारद ने पूछा- ‘तुम्हारे इस आनंद की वजह क्या है?’ किसान बोला- ‘हर दिन भगवान  अपने असली रूप में मेरे सामने आते हैं। मेरे आनंद का बस यही कारण है।’ नारद ने उससे पूछा- ‘तुम कौन सी साधना करते हो?’ 

किसान बोला- ‘मुझे कुछ नहीं आता। मैं अपना परिवार चलाता हूं..अच्छे कर्म करता हूं।मैं एक अज्ञानी, अनपढ़ आदमी हूं। बस सुबह उठने के बाद से सीताराम नाम जब भी याद आता है कर्म करते हुए जपता हूं। अपना काम शुरू करते समय मैं तीन बार सीताराम बोलता हूं। अपने कर्म के प्रति सच्चे रहता हूं। अपना काम खत्म करने के बाद मैं फिर तीन बार सीताराम बोलता हूं। नारद ने पूछा 24 घंटे में कितनी बार भगवान का नाम लेते हो। किसान बोला को प्रभु मैं कितनी बार लूंगा लेकिन जब याद आता है तब ले हीं लेता हूं।

नारद ने गिना कि वह खुद 24 घंटे में कितनी बार ‘नारायण’ बोलते हैं। वह लाखों बार ऐसा करते थे। मगर फिर भी उन्हें नारायण से मिलने के लिए वैकुण्ठ तक जाना पड़ता था, 

जो बहुत ही दूर था। मगर खाने, हल चलाने या बाकी कामों से पहले और जब याद आए तब प्रभु का नाम लेने वाले इस किसान के सामने नारायण वहीं प्रकट हो जाते थे।

नारद को लगा कि यह ठीक नहीं है, इसमें जरूर कहीं कोई त्रुटि है। वह तुरंत वैकुण्ठ पहुंच गए और उन्होंने भगवान विष्णु से पूछा- ‘मैं हर समय आपका नाम जपता रहता हूं, मगर आप मेरे सामने नहीं प्रकट नहीं होते। 

मुझे आकर आपके दर्शन करने पड़ते हैं। मगर उस किसान के सामने आप रोज प्रकट होते हैं और वह परमानंद में जीवन बिता रहा है!’ 

विष्णु ने नारद की ओर देखा और लक्ष्मी को तेल से लबालब भरा हुआ एक बर्तन लाने को कहा।

उन्होंने नारद से कहा- ‘पहले आपको एक काम करना पड़ेगा। तेल से भरे इस बर्तन को भूलोक ले जाइए। मगर इसमें से एक बूंद भी तेल छलकना नहीं चाहिए।इसे वहां छोड़कर आइए, फिर हम इस प्रश्न का जवाब देंगे।’ नारद तेल से भरा बर्तन ले कर भूलोक गए, उसे वहां छोड़ कर वापस आ गए और बोले, ‘अब मेरे प्रश्न का जवाब दीजिए।’ भगवान विष्णु ने पूछा- ‘जब आप तेल से भरा यह बर्तन लेकर जा रहे थे, तो आपने कितनी बार नारायण बोला?’ नारद बोले, ‘उस समय मैं नारायण कैसे बोल सकता था? आपने कहा था कि एक बूंद तेल भी नहीं गिरना चाहिए, इसलिए मुझे पूरा ध्यान उस पर देना पड़ा। मगर वापस आते समय मैंने बहुत बार ‘नारायण’ कहा।’

भगवान विष्णु बोले- ‘यही आपके प्रश्न का जवाब है। उस किसान का जीवन तेल से भरा बर्तन ढोने जैसा है जो किसी भी पल छलक सकता है। उसे अपनी जीविका चलानी पड़ती है, उसे बहुत सारी चीजें करनी पड़ती हैं। मगर उसके बावजूद जब याद आता है तब वह सीताराम बोलकर मुझे याद करता है। वह कर्म भी बहुत हीं सावधानी पूर्वक करता है।

जब आप इस बर्तन में तेल लेकर जा रहे थे, तो आपने एक बार भी नारायण नहीं कहा। यानी यह आसान तब होता है जब आपके पास करने के लिए कुछ नहीं होता।’जो मनुष्य गृहस्थ जीवन में बगैर छल कपट ..काम क्रोध अहंकार वासना के बगैर प्रभु की आराधना के लिए समय देता है , विपत्ति में भी और सुख में भी ईश्वर को नहीं भूलता है वह व्यक्ति ही ईश्वर का सानिध्य पाने का अधिकारी बनता है !

कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से